चौराहे पर लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वजीर
चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग झर गया
तिनके टूटे हुये बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं ?
प्यादे से पिट गया वजीर
चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग झर गया
तिनके टूटे हुये बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं ?
अटल बिहारी बाजपेयी राह कौन सी जाऊँ मैं Chourahe Par Lutata Cheer
Chaurahe Parchauraahe par lutata cheer
pyaade se pit gaya vajeer
chaloon aakhiree chaal ki baajee chhod virakti sajaoon?
raah kaun see jaoon main?
sapana janma aur mar gaya
madhu rtu mein hee baag jhar gaya
tinake toote huye batoroon ya navasrshti sajaoon main?
raah kaun see jaoon main?
do din mile udhaar mein
ghaaton ke vyaapaar mein
kshan-kshan ka hisaab loon ya nidhi shesh lutaoon main?
raah kaun see jaoon main ?
यह कविता जीवन के संघर्ष और निर्णयों के कठिन क्षणों को गहराई से व्यक्त करती है। इसमें कवि , अटल बिहारी बाजपेयी जी ने अपने अंतर्द्वंद्व, जीवन की कठिनाइयों और असमंजस को खूबसूरती से शब्दों में ढाला है।
जब हमारे आत्मसम्मान और महत्वाकांक्षाएं किसी छोटी सी विफलता या परिस्थिति के आगे झुक जाती हैं। जीवन की बिसात पर बड़े खिलाड़ी (वजीर) भी कभी-कभी मामूली दिखने वाले (प्यादे) से हार जाते हैं।
क्या वह अंतिम प्रयास करे या जीवन के खेल से पीछे हटकर संतोष और वैराग्य का मार्ग चुने। यह गहरी मानसिक कशमकश का प्रतीक है।
जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हमारे सपने अधूरे रह जाते हैं। यहां कवि कहता है कि जिस समय में फलने-फूलने की उम्मीद थी, उसी समय निराशा ने घेर लिया।
क्या वह बिखरे हुए खंडहरों को समेटने में लग जाए या फिर नई शुरुआत करे और कुछ नया रचे।
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क्या वह अंतिम प्रयास करे या जीवन के खेल से पीछे हटकर संतोष और वैराग्य का मार्ग चुने। यह गहरी मानसिक कशमकश का प्रतीक है।
जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हमारे सपने अधूरे रह जाते हैं। यहां कवि कहता है कि जिस समय में फलने-फूलने की उम्मीद थी, उसी समय निराशा ने घेर लिया।
क्या वह बिखरे हुए खंडहरों को समेटने में लग जाए या फिर नई शुरुआत करे और कुछ नया रचे।
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Author - Saroj Jangir
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