कबीर गुरु की भक्ति का, मन में बहुत हुलास ।
मन मनसा मा जै नहीं , होन चहत है दास ।।
मन मनसा मा जै नहीं , होन चहत है दास ।।
Kabeer Guru Kee Bhakti Ka, Man Mein Bahut Hulaas .
Man Manasa Ma Jai Nahin , Hon Chahat Hai Daas
दोहे का हिंदी में भावार्थ : व्यक्ति को सर्वप्रथम अपने विषय विकारों को दूर करने के उपरान्त ही भक्ति मार्ग की और अग्रसर होना चाहिए। मन को मांजे बिना भक्ति को प्राप्त करना संभव नहीं है। जब तक मन में वासना, तृष्णा, क्रोध और अन्य विषय विकार भरे पड़े हैं, सच्ची भक्ति संभव नहीं है।
तिमिर गया रवि देखते, कुमति गयी गुरु ज्ञान ।
सुमति गयी अति लोभते, भक्ति गयी अभिमान ।।
Timir Gaya Ravi Dekhate, Kumati Gayee Guru Gyaan .
Sumati Gayee Ati Lobhate, Bhakti Gayee Abhimaan
आचरण की शुद्धता के बगैर व्यक्ति भक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता है।जैसे सूरज के दिखने मात्र से ही अन्धकार दूर हो जाता है वैसे ही गुरु के ज्ञान के प्राप्त हो जाने पर कुमति और कुबुधि नष्ट हो जाती है। ज्यादा लोभ के करने पर विवेक नष्ट हो जाता है और अभिमान के आने पर भक्ति समाप्त हो जाती है।
भाव बिना नहिं भक्ति जग , भक्ति बिना नहिं भाव ।
भक्ति भाव इक रूप है , दोऊ एक सुझाव ।।
भक्तन की यह रीति है, बंधे करे जो भाव ।
परमारथ के कराने , यह तन रहो कि जाव ।।
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