सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसें लिरिक्स Sakhi Madhy Siy Sohati Kaise Lyrics

सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसें लिरिक्स Sakhi Madhy Siy Sohati Kaise Lyrics

 
सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसें लिरिक्स Sakhi Madhy Siy Sohati Kaise Lyrics

संग सखीं सुंदर चतुर गावहिं मंगलचार,
गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार,

सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसें। छबिगन मध्य महाछबि जैसें,
कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई,

तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू,
जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुअँरि चित्र अवरेखी,

चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई,
सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई,

सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला,
गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली,

सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसें। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥
sang sakheen sundar chatur gaavahin mangalachaar,
gavanee baal maraal gati sushama ang apaar,

sakhinh madhy siy sohati kaisen. chhabigan madhy mahaachhabi jaisen,
kar saroj jayamaal suhaee. bisv bijay sobha jehin chhaee,

tan sakochu man param uchhaahoo. goodh premu lakhi pari na kaahoo,
jai sameep raam chhabi dekhee. rahi janu kuanri chitr avarekhee,

chatur sakheen lakhi kaha bujhaee. pahiraavahu jayamaal suhaee,
sunat jugal kar maal uthaee. prem bibas pahirai na jaee,

sohat janu jug jalaj sanaala. sasihi sabheet det jayamaala,
gaavahin chhabi avaloki sahelee. siyan jayamaal raam ur melee,




संग सखीं सुंदर चतुर गावहिं मंगलचार।
गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार॥263॥

भावार्थ:-साथ में सुंदर चतुर सखियाँ मंगलाचार के गीत गा रही हैं, सीताजी बालहंसिनी की चाल से चलीं। उनके अंगों में अपार शोभा है॥263॥

सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसें। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥
कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई॥1॥

भावार्थ:-सखियों के बीच में सीताजी कैसी शोभित हो रही हैं, जैसे बहुत सी छवियों के बीच में महाछवि हो। करकमल में सुंदर जयमाला है, जिसमें विश्व विजय की शोभा छाई हुई है॥1॥

तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥
जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुअँरि चित्र अवरेखी॥2॥

भावार्थ:-सीताजी के शरीर में संकोच है, पर मन में परम उत्साह है। उनका यह गुप्त प्रेम किसी को जान नहीं पड़ रहा है। समीप जाकर, श्री रामजी की शोभा देखकर राजकुमारी सीताजी जैसे चित्र में लिखी सी रह गईं॥

चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥
सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥3॥

भावार्थ:-चतुर सखी ने यह दशा देखकर समझाकर कहा- सुहावनी जयमाला पहनाओ। यह सुनकर सीताजी ने दोनों हाथों से माला उठाई, पर प्रेम में विवश होने से पहनाई नहीं जाती॥3॥

सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥
गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली॥4॥

भावार्थ:-(उस समय उनके हाथ ऐसे सुशोभित हो रहे हैं) मानो डंडियों सहित दो कमल चन्द्रमा को डरते हुए जयमाला दे रहे हों। इस छवि को देखकर सखियाँ गाने लगीं। तब सीताजी ने श्री रामजी के गले में जयमाला पहना दी॥ 

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