ओम श्री महा "गं" गणपतये नमह (नमः), ओम् श्रीं उमामहेश्वराभ्यां नमह (नमः), वाल्मीकि गुरु देव ने, कर पंकज तिर नाम, सुमिरे मात स्वरस्वती, हम पर हो सहाय, मात पिता की वन्दना, करते बारम बार, गुरु-जन राजा प्रजा जन, नमन करो स्वीकार, हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की, हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की, ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की, जम्बू द्वीपे भारत खण्डे, आर्यावर्ते भारत वर्षे, एक नगरी है विख्यात, अयोध्या नाम की, यही जनम भूमि है, परम पूज्य श्री राम की, हम कथा सुनाते,रामसकल गुण धाम की, ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की, ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की, रघुकुल के राजा धर्मात्मा, चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा, संतति हेतु यज्ञ करवाया, धरम यज्ञ का शुभ फल पाया, नृप घर जन्मे चार कुमारा, रघुकुल दीप जगत आधारा, चारों भ्रातों के शुभ नाम, भरत शत्रुघ्न लक्षमण राम, गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके, अल्प काल विद्या सब पाके, पूरण हुई शिक्षा, रघुवर पुराण काम की, हम कथा सुनाते, राम सकल गुण धाम की, यह रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की, यह रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की, मृदु स्वर कोमल भावना, रोचक प्रस्तुति ढंग, एक एक कर वर्णन करे, लव कुश राम प्रसंग, विश्वामित्र महामुनि राई, इनके संग चले दोउ भाई, कैसे राम तड़का, कैसे नाथ अहिल्या तारी, मुनिवर विश्वामित्र तब, संग ले लक्ष्मण राम, सिया स्वंवर देखने, पहुंचे मिथिला धाम, जनकपुर उत्सव है भारी, जनकपुर उत्सव है भारी, अपने वर का चयन करेगी, सीता सुकुमारी, जनकपुर उत्सव है भारी, जनक राज का कठिन प्रण, सुनो सुनो सब कोई, जो तोड़े शिव धनुष को, सो सीतापति होये, जो तोड़े शिव धनुष कठोर, सब की दृष्टी राम की ओर, राम विनयगुण के अवतार, गुरुवर की आज्ञा शिरोधार्य, सहज भाव से शिव धनु तोड़ा, जनक सुता संग नाता जोड़ा, रघुवर जैसा और न कोई, सीता की समता नहीं होई, दोउ करे पराजित कांति कोटि रति काम की, हम कथा सुनाते, राम सकल गुण धाम की, यह रामायण है, पुण्य कथा सिया राम की, सब पर शब्द मोहिनी डाली, मंत्र मुघ्द भये सब नर नारी, यूँ दिन रेन जात हैं बीते, लव कुश ने सबके मन जीते, वन गमन सीता हरण हनुमत मिलन, लंका दहन रावण मरण, अयोध्या पुनरागमन, सब विस्तार कथा सुनाई, राजा राम भये रघुराई, राम राज आयो सुख दायी, सुख सृमद्धि श्री घर घर आयी, काल चक्र ने घटना क्रम में, ऐसा चक्र चलाया, राम सिया के जीवन में, फिर घोर अँधेरा छाया, अवध में ऐसा, ऐसा एक दिन आया, निष्कलंक सीता पे प्रजा ने, मिथ्या दोष लगाया, अवध में ऐसा, ऐसा एक दिन आया, चल दी सिया जब तोड़कर, सब स्नेह नाते मोह के, पाषाण हृदयो में न, अंगारे जगे विद्रोह के, ममतामयी माओं के, आँचल भी सिमट कर रह गए, गुरुदेव ज्ञान और नीति के, सागर भी घट कर रह गए, न रघुकुल न रघुकुल नायक, कोई न हुआ सिया सहायक, मानवता को खो बैठे जब, सभ्य नगर के वासी, तब सीता को हुआ सहायक, वन का एक सन्यासी, उन ऋषि परम उदार का, वाल्मीकि शुभ नाम, सीता को आश्रय दिया, ले आये निज धाम, रघुकुल में कुलदीप जलाये, राम के दो सुत सिया ने जाएँ, श्रोतागण, जो एक राजा की पुत्री है, एक राजा की पुत्रवधु है, और एक चक्रवर्ती सम्राट की पत्नी है, वोही महारानी सीता, वनवास के दुखो में, अपने दिनों कैसे काटती है, अपने कुल के गौरव और, स्वाभिमान की रक्षा करते हुए, किसी से सहायता मांगे बिना, कैसे अपना काम वोह स्वयं करती है, स्वयं वन से लकड़ी काटती है, सवयं अपना धान काटती है, स्वयं अपनी चक्की पीसती है, और अपनी सन्तानो को, स्वाभलम्बी बनने की, शिक्षा कैसे देती है, अब उनकी करुण झानी देखिये, जनक दुलारी कुलवधू दशरथ जी, की राज रानी हो के, दिन वन में बिताती है, रहती थी घेरि जिसे, दास दासिया आठोयाम, दासी बनी अपनी, उदासी को छुपाती है, धरम प्रवीण सती, परम कुलीना सब, विधि दोष हिना, जीना दुःख में सिखाती है, जगमाता हरी प्रिया लक्ष्मी स्वरूप सिया, कूटती है धान भोज स्वयं बनाती है, कठिन कुल्हाड़ी लेके लकडिया काटती है, करम लिखे को पर काट नहीं पाती है, फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था, दुःख भरी जीवन का बोझ वो उठाती है, अर्धागिनी रघुवीर की वोह धरे धीर, भरती है नीर नीर जल में नहलाती है, जिसके प्रजा के अपवादों, के कुचक्रो में, पीसती है चक्की, स्वाभिमान बचाती है, पालती है बच्चौं को, वो कर्मयोगी की भाति, स्वालम्बी सफल बनाती है, ऐसी सीता माता की परीक्षा लेती, निठुर नियति को दया भी नहीं आती है, ओ ओ उस दुखिया के राज दुलारे, हम ही सुत श्री राम तिहारे, ओ सीता मा की आँख के तारे, लव कुश है पितु नाम हमारे, हे पितु भाग्य हमारे जागे, राम कथा कहे राम के आगे,
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