जल में बसे कमोदनी चंदा बसे आकाश हिंदी मीनिंग Jal Me Base Kumodini Chanda Meaning

जल में बसे कमोदनी चंदा बसे आकाश हिंदी मीनिंग Jal Me Base Kumodini Chanda Meaning

कबीर के दोहे हिंदी में जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश।
जो है जा को भावना सो ताहि के पास।

Jal Mein Base Kamodanee, Chanda Base Aakaash .
Jo Hai Ja Ko Bhaavana So Taahi Ke Paas .
 
जल में बसे कमोदनी चंदा बसे आकाश हिंदी मीनिंग Jal Me Base Kumodini Chanda Meaning

शब्दार्थ : Word Meaning Kabir Doha
  • जल में बसे कमोदनी-कुमोदिन/ का पुष्प जल में स्थापित है।
  • चंदा बसे आकाश- चन्द्रमा आकाश में स्थित है।
  • जो है जा को भावना/भावता-जो जिसको प्रसंद करता है।
  • सो ताहि के पास-वह उसी के पास है।
कुमोदिनी/कमल का पुष्प जल में उत्पन्न होता है और चंदा आकाश में रहता है, चन्द्रमा का प्रतिबिंब आकाश से जल में उत्पन्न होता है, जल और चन्द्रमाँ दूर होते हुए भी पास हैं। जो जिसको पसंद करता है वह उसके पास होता है। भाव है की यदि कोई हृदय में समाया हुआ है तो दूरी कोई मायने नहीं रखती है और वह सदा उसके पास होता है। प्रेम का दायरा असीमित है। प्रेम व्यक्त अव्यक्त और जड चेतन से परे हैं जब भक्त हरी से सच्ची आस्था रखता है और ईश्वर के चरणों में रहता है तो उनकी निकटता अधिक होती है भले ही भौतिक रूप से दूर रहें। यह भक्ति की पराकाष्ठा होती है जब साधक अपने मालिक से दूर होते हुए भी समीप महसूस करता है। दोनों के मध्य भौतिक दूरी समाप्त हो जाती है, यही प्रेम भी है। ऐसी अवस्था में किसी को किसी के पास जाने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। यह स्थिति ऐसे ही है जैसे बौद्ध धर्म में निर्वाण की होती है, जब व्यक्ति जीवन और मरण से ऊपर उठ जाता है।

चन्द्रमा और कमल दोनों काफी दूर होते हुए भी एक दूसरे के नज़दीक हैं, यह उनके मध्य प्रेम को दर्शाता है। जहाँ प्रेम है वहाँ स्वतः ही निकटता उत्पन्न हो जाती है। अपने आराध्य से प्रेम करो, सच्चे मन से सुमिरण करो तो उसे कहीं ढूंढ़ने की आवश्यकता नहीं रहती है, वह सदैव ही आस पास ही रहता है। इश्वर कहाँ है ? क्या ईश्वर मंदिर मस्जिद, गुरुद्वारे या तीर्थ तक ही सीमित है ? नहीं वह तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी है और इस ब्रह्माण्ड के जितने भी प्राणी हैं वे उसी के बनाए हुए हैं तो सभी में उसका अंश भी है। घट घट में राम है, लेकिन उस राम को देखा कैसे जाए इस पर साहेब की वाणी है घट के अंदर सत्य का प्रकाश उत्पन्न करो फिर जो उजाला उत्पन्न होगा उससे तुम्हे दिखाई देगा की एक गुफा है जिसमे एक व्यक्ति रहता है जिसके कोई शरीर नहीं है, उसके मुंह माथा नहीं है, जो अच्छाई और बुराई से भी ऊपर है, वह फूलों की खुशबु से भी पतला है जिसे देखा नहीं जा सकता लेकिन महसूस अवश्य ही किया जा सकता है।

कबीर तहाँ न जाइए, जहाँ कपट का हेत।
जालूँ कली कनीर की, तन रातों मन सेत॥
Kabeer Tahaan Na Jaie, Jahaan Kapat Ka Het.
Jaaloon Kalee Kaneer Kee, Tan Raato Man Set.
 
दोहरे और कपट पूर्ण व्यवहार से सतर्क होने की आवश्यकता है। कपटी प्रेमी कनेर की कली की भाँती होता है जो ऊपर से लाल और अन्दर से सफ़ेद रंग का होता है ऐसे ही जाली लोग होते हैं जिनके व्यवहार में दोहरापन होता है, वे करते कुछ हैं और अंदर से उनकी भावना कुछ अलग ही होती है। कपटी लोगों का प्रेम भी अलग अलग होता है, वास्तविक नहीं होता है।
संसारी साषत भला, कँवारी कै भाइ।
दुराचारी वेश्नों बुरा, हरिजन तहाँ न जाइ॥
Sansaaree Saashat Bhala, Kanvaaree Kai Bhai.
Duraachaaree Veshnon Bura, Harijan Tahaan Na Jai.
 
दुर्जन और दुराचारी वैष्णव से भला तो सांसारिक शाक्त व्यक्ति है क्योंकि वह जो है वहीं प्रदर्शित करता है। भाव है की शाक्त बाह्य रूप से संसार में लिप्त रहता है लेकिन अन्दर से वह हरी सुमिरण में ही लगा रहता है। इसके विपरीत दुराचारी वैष्णव जन पूर्ण रूप से माया के भ्रम जाल में फंसे रहते हैं।

ऐसा कोई ना मिले, राम भगति का मीत।
तनमन सौपे मृग ज्यूँ, सुने बधिक का गीत॥
Aisa Koee Na Mile, Raam Bhagati Ka Geet.
Tanaman Saupe Mrg Jyoon, Sune Badhik Ka Meet.
 
ऐसा कोई नहीं मिला जो अपना तन और मन पूर्ण रूप से ईश्वर को सौंप दे। जिस तरह से शिकारी की तंत्रनाद सुनते हुए मृग पूर्ण रूप से उसी में मन्त्र मुग्ध हो जाती है और यह भी भूल जाती है की उसकी मृत्यु भी हो सकती है, ऐसे ही भक्त भी पूर्ण रूप से ईश्वर में रम जाते हैं बगैर सांसारिक लाभ और हाणी पर विचार किये। भाव है की भक्ति ऐसी होनी चाहिए जिसमे व्यक्ति हरी चरणों में अपने अस्तित्व को भी समाप्त करके एक मेक हो जाए, रत्ती भर की भी गुन्जाईस शेष नहीं रहती है।

ऐसा कोई ना मिले, अपना घर देइ जराइ।
पंचूँ लरिका पटिक करि, रहै राम ल्यौ लाइ॥
Aisa Koee Na Mile, Apana Ghar Dei Jarai.
Panchoon Larika Patik Kari, Rahai Raam Lyau Lai.
 
साहेब की वाणी है की मुझे ऐसा कोई नहीं मिला जो पूर्ण भक्ति हो और भक्ति के लिए अपने घर को आग के हवाले कर दे और अपने पाँचों पुत्रों काम क्रोध मद मोह माया (लोभ और माया ) को पटक दे, समाप्त कर दे और राम के नाम की ही रटन लगाए रखे। भाव है की ऐसे भक्त बिरले ही होते हैं जो भक्ति के लिए अपने अहम् को जला दे समाप्त कर दें और विषय वासनाओं रूपी पुत्रों को समाप्त कर दे और पूर्ण रूप से राम की भक्ति में रटन लगाए रखे। भक्ति के लिए आवश्यक है की वह भक्ति को पूर्ण रूप से संपन्न करे और विषय वासनाओं से दूर रहकर अपने चित्त को भक्ति में ही लगाए रखें। यदि दोहरा भाव है तो भक्ति में कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। यदि मन विषय वासनाओं में उलझा रहता है तो भक्ति पूर्ण नहीं होती है।


ऐसा कोई ना मिले, जासौ रहिये लागि।
सब जग जलता देखिये, अपणीं अपणीं आगि॥
Aisa Koee Na Mile, Jaasau Rahiye Laagi.
Sab Jag Jalata Dekhiye, Apaneen Apaneen Aagi.
 
जगत में सभी व्यक्ति अपनी अपनी चिंताओं में लीन हैं और सभी अपनी ही उधेड़ बुन में लगे रहते हैं, ऐसा कोई भी नहीं मिला है जो अपनी चिताओं से परे हो। सभी लोग चिंता की अग्नि में दग्ध हैं। भाव है की सांसारिक व्यक्ति जगत की चिंताओं में उलझे पड़े रहते हैं क्योंकि वे माया के पाश में पूर्ण रूप से उलझे पड़े हैं। यदि माया को समझ लिया जाए तो चिंताओं का स्वतः ही अंत हो जाता है। जब तक मोह माया है तब तक व्यक्ति चिंता ग्रस्त ही रहता है।

कबीर गुर बसै बनारसी, सिष समंदा तीर।
बिसार्‌या नहीं बीसरे, जे गुंण होइ सरीर॥
Kabeer Gur Basai Banaarasee, Sish Samanda Teer.
Bisaar‌ya Nahin Beesare, Je Gunn Hoi Sareer.
 
यदि शिष्य ने अपने गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण किया है, तो भले ही गुरु वाराणसी/बनारसी में हो और शिष्य किसी समुद्र के तीर (किनारे) पर हो, वह एक पल भी अपने गुरु को / गुरु के बताये मार्ग को नहीं भूलेगा। यह जरुरी नहीं की जो शिष्य गुरु के पास ही रहे वही गुरु को याद करता है / नेक राह का अनुसरण करता हो, यदि शिष्य ने गुरु के बताये मार्ग का हृदय से अनुसरण किया है तो उसे हरदम गुरु के सानिध्य की आवश्यकता नहीं है। भाव है हृदय से सबंध होने पर भौतिक दूरी कोई स्थान नहीं रखती है।

जो है जाका भावता, जदि तदि मिलसी आइ।
जाकी तन मन सौंपिया, सो कबहूँ छाँड़ि न जाइ॥
या,
जो है जाका भावता, जब-तब मिलिहैं आय।
तन-मन ताको सौंपिए, जो कबहुँ न छाँडि़ जाय॥

जो जिसको पसंद करता है वह समय समय पर आकर उससे मिलता है, ऐसे प्रेमी को मन देना चाहिए जिससे वह पुनः कभी दूर नहीं हो। भाव है की ईश्वर को अपना तन और मन ऐसे सौंप देना चाहिए जिससे वह कभी दूर नहीं हो।

स्वामी सेवक एक मत, मन ही मैं मिलि जाइ।
चतुराई रीझै नहीं, रीझै मन कै भाइ॥
Svaamee Sevak Ek Mat, Man Hee Main Mili Jai.
Chaturaee Reejhai Nahin, Reejhai Man Kai Bhai.
कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi Meaning :-
या
सवेक स्वामी एक मत, मत में मत मिली जाय।
चतुराई रीझै नहीं, रीझै मन के भाय।

स्वामी और सेवक का एक ही मत होना चाहिए, दोनों के मतों में भिन्नता नहीं होनी चाहिए। चतुराई से स्वामी रीझते नहीं है बल्कि स्वामी को प्रशन्न करने के लिए हार्दिक भाव का होना, पूर्ण और सच्चा समर्पण होना आवश्यक है।

सतगुरु शब्द उलंघ के, जो सेवक कहुँ जाय |
जहाँ जाय तहँ काल है, कहैं कबीर समझाय ||
Sataguru Shabd Ulangh Ke, Jo Sevak Kahun Jaay।
Jahaan Jaay Tahan Kaal Hai, Kahain Kabeer Samajhaay।
 
गुरु की महिमा के विषय में कथन है की हमें सतगुरु देव जी के आदेशों और सलाह को मानना चाहिए। जो साधक अपने गुरु के बताए मार्ग का अनुसरण ना करके अन्य किसी मत/मार्ग का अनुसरण करता है वह अवश्य ही काल को प्राप्त होता है। भाव है की गुरु के बताये गए मार्ग से विमुख नहीं होना चाहिए। सेवक से आशय भक्त से है।

आशा करै बैकुंठ की, दुरमति तीनों काल |
शुक्र कही बलि ना करीं, ताते गयो पताल ||
Aasha Karai Baikunth Kee, Duramati Teenon Kaal।
Shukr Kahee Bali Na Kareen, Taate Gayo Pataal।।
 
जीव आशा तो बैकुंठ की करता है लेकिन कर्म और गुरु के आदेशों से विमुख हो जाता है। लेकिन तीनों ही लोक में दुरमति / कुबुद्धि को नहीं छोड़ता है और अपने परिणाम को प्राप्त होता है। जैसे बली ने शुक्राचार्य जी के आदेशों का पालन नहीं किया जिसके कारण से उसे अपने राज्य से वंचित होकर पाताल लोक के लिए जाना पड़ा। भाव है की साधक लो सद्बुद्धि अपनाकर अपने गुरु के बताए मार्ग का ही अनुसरण करना चाहिए और भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ता रहना चाहिए ।


ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत।
Te Din Gae Akaarath Hee, Sangat Bhee Na Sang.
Prem Bina Pashu Jeevan, Bhakti Bina Bhagavant.
 
ईश्वर की भक्ति के बिना जो दिन गए हैं, बीत चुके हैं वे बिना किसी उद्देश्य के समाप्त हो गए हैं। सही समय में तुमने हरी से भक्ति नहीं की और अपने समय को व्यर्थ में ही गवां दिया है। सत्संगति के बिना मानव जीवन व्यर्थ है और प्रेम के बगैर भक्ति को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। भाव है संतजनों की संगती और भक्ति से ही मानव जीवन श्रेष्ठ बनता है।

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