स्याम म्हाने चाकर राखो जी मीनिंग

स्याम म्हाने चाकर राखो जी मीनिंग

स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसन पास्यूँ, सुमरन पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बनावँ बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ ,पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण ,दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीरा।
 
Syaam Mhaane Chaakar Raakho Jee,


मीरा के पद का शब्दार्थ - Word Meaning of Shyam Mhane Chakar Rakho Ji Hindi
  • स्याम - श्री कृष्ण भगवान्
  • चाकर - नौकर/दास
  • रहस्यूँ - रहूंगी.
  • नित - हमेशा/रोज
  • दरसण - दर्शन/दर्शन देना
  • जागीरी -जागीर.
  • कुंज -लता और फूलों से घिरा हुआ.
  • पीताम्बर - पीले वस्त्र (श्री कृष्ण)
  • धेनु - गाय
  • बारी - बगीचा
  • पहर - पहनना/पहन कर.
  • तीरा - किनारा
  • अधीरा - व्याकुल/अधीर होना
श्याम म्हाने चाकर राखो जी

श्री कृष्ण जी की परम भक्त मीरा बाई श्री भगवान् से विनय करते हुए कहती हैं की हे इश्वर (श्याम) आप मुझे अपना नौकर बना लो. मीरा बाई श्री कृष्ण भक्त थी इसलिए उनके प्रति पूर्ण समर्पण को दर्शाते हुए वे श्री कृष्ण भगवान् को विनती कर रही हैं की वे उनको चाकर रख लें. नौकर रहकर वे श्री कृष्ण भगवान् के लिए पुलों के बाग़ लगाएंगी और रोज सुबह उठकर श्री कृष्ण भगवान् के दर्शन प्राप्त करेंगी. नौकर रहते हुए मैं वृन्दावन की कुञ्ज गलिन (लताओं और फूलों से घिरी हुई गलियों में ) में हरी के यश का गुणगान करुँगी, गोविन्द की लीला का बखान करुँगी. इस प्रकार से भक्ति करने पर मीरा बाई को तीन फायदे होंगे प्रथम तो उन्हें हरी के दर्शन होते रहेंगे और दसरा उनको खर्च करने के लिए हरी सुमिरण मिलेगा और भाव और भक्ति की जागीर, साम्राज्य प्राप्त होगा. श्री कृष्ण जी के रूप का वर्णन करते हुए मीरा बाई कहती हैं की भगवान् श्री कृष्ण जी के वस्त्र पीले हैं और उनके गले में वजैन्ति माला शोभित हैं. 
 
मेरा मोहन मुरली वाला वृन्दावन में गायों को चराता है. आगे मीरा बाई कहती हैं की वे एक बड़ा महल बनवाएंगी और बीच में एक खिड़की लगवाएँगी. वे हरी के दर्शन के लिए स्वंय रंग बिरंगे वस्त्र पहनना चाहती हैं और हरी का अभिनंदन करना चाहती हैं. मीरा बाई दर्शन के लिए इतनी अधीर हो चुकी हैं की वे कहती हैं की हे हरी आप आधी रात को यमुना के किनारे मुझे दर्शन दो और मेरे दुखों को हर लो. मेरे गिरधर नागर, श्री कृष्ण आपसे मिलने को मेरा हृदय बहुत अधीर है. मीरा के इस पद का मूल भाव है की भक्त हरी के चरणों में जगह का अभिलाषी हैं जिससे उसको अपने स्वामी के रोज दर्शन हो सके. इस पद में विरह का भाव दर्शाया गया है. मीरा बाई के इस पद की भाषा ब्रज मिश्रित राजस्थानी है भाषा है। 'र' ध्वनि का कई बार उपयोग हुआ है जिससे 'हरि' शब्द में श्लेष अलंकार का उपयोग हुआ है.


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