बिहसि लखनु बोले मृदबानी हिंदी मीनिंग Bihasi Lakhanu Bole Mridubani Hindi Meaning

बिहसि लखनु बोले मृदबानी हिंदी मीनिंग Bihasi Lakhanu Bole Mridubani Hindi Meaning

 
बिहसि लखनु बोले मृदबानी हिंदी मीनिंग Bihasi Lakhanu Bole Mridubani Hindi Meaning

बिहसि लखनु बोले मृदबानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि डरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी ॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारे॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ, छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि, बोले गिरा गभीर॥

तुलसीदास पद के शब्दार्थ Word Meaning of Tulsidas Pad- बिहसि = हँस कर, व्यंग्य रूप में मुस्कुराते हुए । मृदु = कोमल, विनम्र। मुनीसु = महान मुनि। महाभट = महान योद्धा, पराक्रमी, मानी = प्रसिद्ध। कुठारू = फरसा (हाथ में पकड़ कर चलाया जाने वाला अस्त्र), परशु राम हमेशा अपने पास फरसा रखते थे, चहत = चाहते हो। पहारू = पहाड़। कुम्हड़बतिया =कमजोर, छुईमुई, दुर्बल व्यक्ति। कोउ = कोई। जे = जो। तरजनी = छोटी अंगुली, सरांसन = धनुष, बाना = बाण। भृगुसुत = भृगु ऋषि के वंशज। जनेउ = जनेऊ, ब्राह्मण द्वारा कंधे पर धारण किया जाने वाला धागा, बिलोकी = देखकर। सहौं = सह रहा हूँ। रिस = क्रोध, गुस्सा, रोकी = रोककर। सुर = देवता। महिसुर = ब्राह्मण। हरिजन = भगवान के भक्त। गाई = गाय। कुल = वंश। सुराई = शूरता, वीरता। बधे = मारने से। अपकीरति = अपयश, पाप। मारतहुँ = मारने पर भी। पा = पैर। परिअ = पड़ेंगे। कोटि = करोड़ों। कुलिस = वज्र। सम =के समान। बचनु = शब्द, वाणी। ब्यर्थ = बेकार। धरहु = धारण करते हो। धीर = धैर्यवान। सरोश = क्रोध से। भृगुबंसमनि = भृगु के वंश में श्रेष्ठ, परशुराम। गिरा = वाणी। गभीर = गंभीर/गहरी, भारी।

तुलसीदास पद का हिंदी भावार्थ Tulsidas Pad Hindi Meaning : तुलसीदास कृत रामचरित मानस के बाल काण्ड में यह पद परशु राम और लक्ष्मण के वार्ता को दिखलाता है. धनुष तोड़े जाने के उपरान्त जब परशुराम जी क्रोधित होकर स्वंय के बारे में दंभ बात करते हैं और लक्षमण जी से कहते हैं की उन्होंने विश्व से कई बार योद्धाओं का विनाश किया है और वे अत्यंत ही क्रोधी स्वभाव के हैं, इस पर लक्ष्मण जी हंसकर मृदु वाणी में कहते हैं की अहा मुनि!, आप बार बार कुठार/फरसा दिखा कर मुझे डरा रहे हो.

आप तो फूँक से पहाड़ को उडाना चाहते हो. यहाँ पर कोई कुम्हड़बतिया, कुम्हड़े की बतिया (छोटा कच्चा फल) नहीं है जो आपकी तर्जनी अंगुली (सबसे छोटी अंगुली) से डर जाए. मैंने आपके कुठार और धनुष बाण को देखकर आपको क्षत्रिय समझ कर अभिमान सहित कुछ बातें कह दी हैं. मुझे अब बोध हुआ है की आप तो भ्रगु के वंसज हैं लेकिन आपने तो ब्राह्मणों की भाँती जनेऊ धारण कर रखी है. आपने व्यर्थ ही फरसा/कुठार धारण कर रखी है।

आप जो भी कह रहे हैं वह मैं क्रोध को रोककर सह रहा हूँ. क्षत्रिय कुल, हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भक्तजन और गाय पर वीरता दिखाना उचित नहीं है, परम्परा नहीं है. इनसे हार जाने पर अपयश मिलता है और इनको मारने पर पाप लगता है. आपकी वाणी करोड़ों वज्र के समान हैं.
इन्हे धनुष बाण और कुठार को, देखकर जो भी मैंने कहा, जो अनुचित कहा वह हे धीर महामुनि क्षमा कर दीजिये। यह सुनकर भृगुवंशी क्रोधित होकर गंभीर होकर बोले। 


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1 टिप्पणी

  1. Arya