कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा हिंदी मीनिंग Kaheu Lakhan Muni Sheel Tumhara Hindi Meaning

कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा हिंदी मीनिंग Kaheu Lakhan Muni Sheel Tumhara Hindi Meaning Tulsidas Ramcharitmanas Baalkand Parshuram Lakshman Sanvaad

कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहिं जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भए नीकें। गुरु रिनु रहा सोचु बड़ जीकें॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखावहु मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही॥
मिले न, कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सब लोग पुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे॥
लखन उतरे आहुति सरिस, भृगुबर कोपु कृसानु॥
बढ़त देखि जल सम बचन, बोले रघुकुल भानु॥
 

तुलसीदास के पद के शब्दार्थ Tulsidas Ke Pad Ke Shabdarth (word Meaning)

कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा हिंदी मीनिंग Kaheu Lakhan Muni Sheel Tumhara Hindi Meaning

 
सील = स्वभाव, व्यवहार। बिदित = ज्ञात, विख्यात। उरिन = ऋण से मुक्त। भए = हो गए हैं । नीकें = अच्छे से। गुरु रिनु = गुरु का ऋण। सोचु = चिंता। बड़ = बड़ा। जी = हृदय। सो = वह। हमरेहि = हमारे। माथे काढ़ा = मत्थे मढ़ दिया, हम पर निकाल दिया। चलि गए = बीत गए। बड़ = बहुत। बाढ़ा = बढ़ गया। आनिअ = ले आईए। ब्यवहरिआ = हिसाब लगाने वालामुनीम, तुरत = तुरंत, अभी। कटु = कड़वे। सुधारा = सँभाल लिया। भृगुबर = परशुराम। मोही = मुझे। बिप्र = ब्राह्मण। बिचारि = जानकर। बचउँ = बेच रहा हूँ, छोड़ रहा हूँ। नृपद्रोही = राजाओं या क्षत्रियों से द्वेष रखने वाला। सुभट = अच्छे योद्धा। रन = युद्ध। गाढ़े = दृढ़, लड़ाकू। द्विज देवता = ब्राह्मण देवता। घरहि के = घरे के ही। बाढ़ = बढ़े हुए, श्रेष्ठ बने हुए। रघुपति = राम। सयनहिं = नेत्रों के संकेत से। नेवारे = रोका, मना किया। आहुति = हवनम में डाली जाने वाली सामग्री, अग्नि को भड़काने वाली सामग्री। संरिस = समाने। भृगुबर कोपु = परशुराम का क्रोध। कृसानु = आग, अग्नि। रघुकुल भानु = श्री राम, सूर्य वंशी.

तुलसीदास पद हिंदी मीनिंग Tulsidas Pad Hindi meaning

प्रस्तुत पद जो की तुलसीदास कृत राम चरित मानस के बाल काण्ड में परशुराम और लक्ष्मण के संवाद से सबंधित है.
परशुराम के वचन को सुनकर लक्ष्मण जी पुनः परशुराम जी से कहते हैं की आप के शील (व्यवहार) को समपूर्ण जगत जानता है. आपके शील के विषय में कौन नहीं जानता है, सम्पूर्ण संसार आपके शील के विषय में जानकारी रखता है. आप माता पिता के ऋण से तो मुक्त हो गए हैं लेकिन गुरु ऋण बाकी रह जाने से आप बड़े ही चिंतित हैं. वह ऋण आपने हमारे माथे पर मंढ दिया है, हमारे माथे पर उसका बोझ डाल दिया है. बहुत दिन बीत गए हैं इसलिए ब्याज अधिक बढ़ गया है. अब आप किसी मुनीम/गणना करने वाले को बुला लीजिये मैं थैली (पैसों से भरा बोरा) खोलता हूँ, आप अपना ऋण चुकता कीजिए. 

इन बातों को सुनकर परशुराम अपने कुठार को लेकर लक्ष्मन की तरफ बढ़ते हैं तो सम्पूर्ण सभा में हाहाकार मच जाता है. लक्ष्मन जी पुनः परशुराम से कहते हैं की हे भृगुवंशी क्या आप मुझे फरसा दिखा कर डराना चाहते हैं. आप ब्राह्मण हैं इसलिए मैं आपसे युद्ध से बच रहा हूँ, युद्ध नहीं करना चाहता हूँ. आगे लक्ष्मण जी कहते हैं की मुझे लगता है आपका युद्ध के दौरान किसी शूरवीर से सामना नहीं हुआ है, पाला नहीं पड़ा है. 
 
आप तो अपने मन में ही वीर बने हुए हैं. लक्ष्मण के अनुचित वचनों पर सारी सभा उनकी निंदा करने लगी तब श्री राम ने नेत्रों से उन्हें इशारा किया की वे अधिक नहीं बोले. परशुराम जी की क्रोध की अग्नि को लक्ष्मण जी के उत्तर हवन में आहुति की भाँती भड़का रहे थे. ‘ब्याज बड़ बाढ़ा’, ‘बिप्र बिचारि बचउँ’ में अनुप्रास ’हाय हाय’ में पुनरुक्ति प्रकाश, ‘लखन उतर आहुति सरिस’, ‘जल सम वचन’ में उपमा तथा रघुकुल भानु’ में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है. यह छंद चौपाई और दोहे रूप में हैं. इस पद्य में रौद्र रस का उपयोग हुआ है. ‘मात पितहिं उरिन भए नीके’ में वक्रोक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है 
 


10 class 2 तुलसीदास -6 कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा।

इस पद्यांश में व्यंजित अलंकारों का संक्षिप्त परिचय
रूपक अलंकार : जब गुण की समानता के कारण उपमेय को ही उपमान घोषित कर दिया जाए, उपमेय ओर उपमान में एकरूप दर्शाया जाए तब उसे रूपक अलंकार कहते हैं.
वक्रोक्ति अलंकार : जहाँ किसी उक्ति का अर्थ जान बूझकर/समझते हुए वक्ता के अभिप्राय से अलग लिया जाता है, अभिप्रेत अर्थ ग्रहण न कर श्रोता अन्य ही कल्पित या चमत्कारपूर्ण अर्थ लगा लिया जाता है उसे वक्रोक्ति अलंकार होता है। दुसरे शब्दों में यदि अभिप्रेत अर्थ ग्रहण न कर श्रोता अन्य ही कल्पित या चमत्कारपूर्ण अर्थ ग्रहण कर लें तो वह वक्रोक्ति अलंकार होता है.
अनुप्रास अलंकार : जब एक वर्ण की बार बार आवर्ती होती है उसे ही अनुप्रास अलंकार कहते हैं. अनुप्रास शब्द दो शब्दों के मेल से बना हुआ है - अनु + प्रास,  जहाँ पर अनु का अर्थ बार बार  और प्रास का तातपर्य - वर्ण से है। अर्थात जब किसी वर्ण की बार-बार आवर्ती हो उपयोग किया जाए उसे ही अनुप्रास अलंकार कहा जाता है.
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार : जब किसी शब्द को दो बार या तीन बार काव्य में दोहराना दोहराया जाता है उसे पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार कहते है।
Kaheu Lakhan Muni Seel Tumhaara. Ko Nahin Jaan Bidit Sansaara.
Maata Pitahi Urin Bhe Neeken. Guru Rinu Raha Sochu Bad Jeeken.
So Janu Hamarehi Maathe Kaadha. Din Chali Gae Byaaj Bad Baadha.
Ab Aani Byavaharia Bolee. Turat Deun Main Thailee Kholee.
Suni Katu Bachan Kuthaar Sudhaara. Haay Haay Sab Sabha Pukaara.
Bhrgubar Parasu Dekhaavahu Mohee. Bipr Bichaari Bachun Nrpadrohee.
Mile Na, Kabahun Subhat Ran Gaadhe. Dvij Devata Gharahi Ke Baadhe.
Anuchit Kahi Sab Log Pukaare. Raghupati Sayanahin Lakhanu Nevaare.
Lakhan Utare Aahuti Saris, Bhrgubar Kopu Krsaanu.
Badhat Dekhi Jal Sam Bachan, Bole Raghukul Bhaanu.
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1 Comments
  • Unknown
    Unknown 9/18/2021

    धन्यवाद गुरू जी

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