लखन कही हसि हमरे जाना हिंदी मीनिंग Lakhan Kahi Hasi Hamre Jaana Hindi Meaning

लखन कही हसि हमरे जाना हिंदी मीनिंग Lakhan Kahi Hasi Hamre Jaana Hindi Meaning


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लखन कही हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरे॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महि देवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस, करसि महीस किसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन, परसु मोर अति घोर॥

Word Meaning Tulsi Das Pad तुलसीदास जी के पद के शब्दार्थ

हसि = हँसकर। जाना = जाना है, समझा । का = क्यों। छति = क्षति, हानि/नुकसान। लाभु-लाभ/मुनाफा, जून = पुराना, जीर्ण। तोरे = तोड़ने से। नयन = नवीन, नया। भोरें = भ्रम में, धोखे में। छुअत = छूते ही। काज = कारण, काम। करिअ = करते हो। कत = क्यों। रोसू = क्रोध। चितई = देखकर। परसु = फरसा, हाथ में पकड़ कर चलाये जाने वाला अस्त्र। ओरा = ओर, की तरफ। सठ = मूर्ख, धूर्त। सुभाउ = स्वभाव। बोलि = जानकर। बधउँ =मारता। जड़ = मूर्ख। बाल ब्रह्मचारी = बचपन से संयमित. कोही = क्रोधी। बिस्व बिदित = संसार भर में ज्ञात। क्षत्रियकुल = क्षत्रियों के वंश का। द्रोही = दुश्मन/शत्रु। भुजबल = भुजाओं के बल पर/शारीरिक बल, पराक्रम से। भूप = राजा। बिपुल = बहुत बार । महि देवन्ह = ब्राह्मणों को। भुज = भुजा, हाथ। छेदनिहारा = काटने वाला, मारने वाला। बिलोकु = अवलोकन करके, देख कर। महीपकुमारा = राजा का पुत्र, राजकुमार। जनि = मत। सोचबस = शोकमग्न, दु:खी। करसि = करे। महीसकिसोर = राजपुत्र, राजकुमार। गर्भन्ह के = गर्भ में स्थित। अर्भक = भ्रूण, गर्भ में पल रहा शिशु। दंलन = नष्ट करने वाला। अति घोर = अत्यंत भयंकर।

Hindi Meaning of Tulsi Das Pad तुलसीदास जी के पद का हिंदी मीनिंग/भावार्थ

तुलसीदास कृत रामचरित मानस के इस पद में लक्ष्मण और राम का संवाद है जिसमे लक्ष्मण परशुराम का व्यंग्य कर रहे हैं और परशु राम क्रोधित होकर कटु वचनों का उपयोग कर रहे हैं. यह प्रसंग श्री राम के द्वारा स्वंयवर में धनुष के तोड़े जाने के बाद का है. लक्ष्मण जी हंसकर परशु राम जी से कहते हैं की हे देव, हमने तो जाना है की सभी धनुष एक समान ही होते हैं. एक पुराने जीर्ण हो चुके धनुष को तोड़ने से किसे लाभ या हानि हो सकती है. श्री राम ने तो इसे नया समझ कर भ्रम में परखा था. यह धनुष तो रघुपति/श्री राम के छूते ही टूट गया है इसमें श्री राम का दोष नहीं है. हे मुनि आप तो बिना कारण के ही क्रोधित हो रहे हो।

इस पर परशु राम जी ने क्रोधित होकर अपने फरसे की और देखकर बोला की अरे मुर्ख तुमने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना है. मैं तो तुम्हे बालक जान कर मार नहीं रहा हूँ और तुम मुझे साधारण मुर्ख मुनि समझ रहे हो. मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूँ और अत्यंत ही क्रोधित स्वभाव का हूँ. यह पुरे विश्व को पता है की मैं क्षत्रिय कुल का विरोधी हूँ. मैंने अपनी भुजाओं के बल पर कितनी बार इस धरती को राजाओं के विहीन किया है. मैंने अनेकों बार धरती पर से क्षत्रिय कुल के राजाओं को समाप्त किया है और कई बार उनके राजाओं की भूमि को ब्राह्मणों को दान स्वरुप में दिया है. अरे राजकुमार तुम मेरे इस बरसे को देख लो जिसने सहस्रबाहु का नाश किया था. भाव है की मुझे क्रोधित करने से पहले मेरे फरसे की तरफ भी देख लो, अवलोकन कर लो. अरे राजकुमार तुम मुझे क्रोधित करने से पूर्व मेरे फरसे का भी विचार कर लो और अपने माता पिता को शोकग्रस्त मत करो. मेरा यह फरसा तो गर्भ के बच्चे /भ्रूण को भी समाप्त कर सकता है . मेरा यह फरसा इतना अधिक शक्तिशाली है. इस पद में अनुप्राश अलंकार की व्यंजना हुई है. इस पद में अवधि भाषा का उपयोग हुआ है. इस पद में परशुराम जी के स्वभाव से क्रोधी और अहंकारी (आत्म प्रशंसा ) होने का पता चलता है.


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1 Comments
  • Unknown
    Unknown 10/20/2021

    Sab galat ha

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