हरी से विनय है की भक्त जनों को दर्शन लाभ से ही सुख प्राप्ति होने वाली है। नहीं तो, जीवात्मा दर्शन के अभाव में दुखों में, विरह में यह जीव, आत्मा घबरा जाता है और दुखी रहता है। दर्शन की प्यासी आपकी भक्त सभी स्थानों पर आपके दर्शन के लिए भटकी है। मीरा बाई हरी की खोज में सभी स्थानों, देस विदेश में घूमी है और ऐसा करते हुए उसके काले केस, बाल भी सफ़ेद हो गए हैं। इस पद का भाव है की मीरा बाई हरी के दर्शन पाने के लिए विरह में दग्ध होकर यहाँ वहां खोज में भटक रही है लेकिन कहीं भी उनको हरी के दर्शन प्राप्त नहीं हुए हैं। ऐसा करते हुए वह वृद्ध हो गई है और उनके काले बाल भी अब पक चुके हैं।
जोगी म्हाँने, दरस दियाँ सुख होइ । नातरि दुख जग माहिं जीबड़ो, निस दिन झूरै तोइ । दरद दिवानी भई बावरी, डोली सबही देस । मीराँ दासी भई है पंडर, पलटया काला केस ।।
Jogee Mhaanne, Daras Diyaan Sukh Hoi . Natari Dukh Jag Maahin Jeebado, Nis Din Jhoorai Toi . Darad Divaanee Bhee Baavaree, Dolee Sabahee Des . Meeraan Daasee Bhee Hai Pandar, Palataya Kaala Kes
म्हाँने = हमको, मुझे। दियाँ = देने से। होइ = होगा। नातरि = नहीं तो। झूरै = दुःख से घबरा जाता है, शोकाकुल हो रहा है। तोइ = तुझे, तेरे लिए। डोली = घूमती फिरी। पंडर = सफेद में। पलट्या = बदल गए।
म्हारे नैणां आगे रहाजो जी, स्याम गोविन्द।।टेक।। दास कबीर घर बालद जो लाया, नामदेव की छान छबन्द। दास धना को खेत निपाजायो, गज की टेर सुनन्द। भीलणी का बेर सुदामा का तन्दुल, भर मुठड़ी बुकन्द। करमाबाई को खींच आरोग्यो, होई परसण पाबन्द। सहस गोप बिच स्याम विराजे, ज्यो तारा बिच चन्द। सब संतो का काज सुधारा, मीरा सूँ दूर रहन्द।।
मीरा बाई पद के शब्दार्थ-बलद = बैल। कबीर = निर्गुणी सन्त कबीर। नामदेव = एक भक्त का नम। छान छबंद = छप्पर छा दिया। दास बना = धन्ना भक्त। निपजाओ = पैदा करना। सुनंद = सुनली। मीलणी = शवरी नामक भीलनी। तन्दुल = चावल। बुकन्द = चबाया। खींच = खींचड़ी। आरोग्यो = प्राप्त की। परसण = आनंदित । पावंद = पाया, खाया। रहंद = रहता है।