जोगी म्‍हाँने दरस दियाँ सुख होइ लिरिक्स Jogi Mhane Daras Diya Sukh Hoi Lyrics Meera Bai Padawali

जोगी म्‍हाँने दरस दियाँ सुख होइ लिरिक्स Jogi Mhane Daras Diya Sukh Hoi Lyrics Meera Bai Padawali

हरी से विनय है की भक्त जनों को दर्शन लाभ से ही सुख प्राप्ति होने वाली है। नहीं तो, जीवात्मा दर्शन के अभाव में दुखों में, विरह में यह जीव, आत्मा घबरा जाता है और दुखी रहता है। दर्शन की प्यासी आपकी भक्त सभी स्थानों पर आपके दर्शन के लिए भटकी है। मीरा बाई हरी की खोज में सभी स्थानों, देस विदेश में घूमी है और ऐसा करते हुए उसके काले केस, बाल भी सफ़ेद हो गए हैं। इस पद का भाव है की मीरा बाई हरी के दर्शन पाने के लिए विरह में दग्ध होकर यहाँ वहां खोज में भटक रही है लेकिन कहीं भी उनको हरी के दर्शन प्राप्त नहीं हुए हैं। ऐसा करते हुए वह वृद्ध हो गई है और उनके काले बाल भी अब पक चुके हैं।
 
जोगी म्‍हाँने दरस दियाँ सुख होइ लिरिक्स Jogi Mhane Daras Diya Sukh Hoi Lyrics Meera Bai Padawali

जोगी म्‍हाँने, दरस दियाँ सुख होइ ।
ना‍तरि दुख जग माहिं जीबड़ो, निस दिन झूरै तोइ ।
दरद दिवानी भई बावरी, डोली सबही देस ।
मीराँ दासी भई है पंडर, पलटया काला केस ।।

Jogee M‍haanne, Daras Diyaan Sukh Hoi .
Na‍tari Dukh Jag Maahin Jeebado, Nis Din Jhoorai Toi .
Darad Divaanee Bhee Baavaree, Dolee Sabahee Des .
Meeraan Daasee Bhee Hai Pandar, Palataya Kaala Kes 

म्हाँने = हमको, मुझे। दियाँ = देने से। होइ = होगा। नातरि = नहीं तो। झूरै = दुःख से घबरा जाता है, शोकाकुल हो रहा है। तोइ = तुझे, तेरे लिए। डोली = घूमती फिरी। पंडर = सफेद में। पलट्या = बदल गए।

Jogi Mhane Daras Dikhajoji


मीरा बाई के अन्य पद /भजन
म्हाँ सुण्या हरि अधम उधारण।
अधम उधारण भव भय तारण।।
 गज बूड़तां अरज सुण धावां, भगतां कष्ट निवारण।
द्रुपद सुताणओ चीर बढ़ायां, दुसासण मद मारण।
प्रहलाद पतरग्या राख्यां, हरणाकुश णओ उद्र विदारण।
थें रिख पतणी करिपा पायां, विप्र सुदामा विपद विदारण।
मीराँ रे प्रभु अरजी म्हारी, अब अबेर कुण कारण।
 
मीरा बाई पद के शब्दार्थ- म्हाँ सुण्याँ = मैने सुना। अधम उधारण = पापियों का उद्धार करने वाले हैं। भव भय तारण = संसार के दुखों से पार करना। मद मारण = घमंड का दमन करना। उद्र = उदर, पेट। विदारण = फाड़ना, चीरना । रिख पतणी = ऋषि-पत्नि, अहिल्याबाई। अबेर = देर। कुण = किसलिए।

स्याम म्हां बांहड़िया जो गह्यां।।
 भोसागर मझधारां, बूड्या थारो सरण लह्या।
म्हारे अवगुण पार अपारा थें बिण कूण सह्यां।
मीराँ रे प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद री बह्यां।
 
मीरा बाई पद के शब्दार्थ-वाँहडिया = बाँह, हाथ। भोसागर = संसार-सागर। थें विण = आपके बगैर, आपके सिवाय । बह्याँ = रक्खो।

म्हारे नैणां आगे रहाजो जी, स्याम गोविन्द।।टेक।।
दास कबीर घर बालद जो लाया, नामदेव की छान छबन्द।
दास धना को खेत निपाजायो, गज की टेर सुनन्द।
भीलणी का बेर सुदामा का तन्दुल, भर मुठड़ी बुकन्द।
करमाबाई को खींच आरोग्यो, होई परसण पाबन्द।
सहस गोप बिच स्याम विराजे, ज्यो तारा बिच चन्द।
सब संतो का काज सुधारा, मीरा सूँ दूर रहन्द।।
 
मीरा बाई पद के शब्दार्थ-बलद = बैल। कबीर = निर्गुणी सन्त कबीर। नामदेव = एक भक्त का नम। छान छबंद = छप्पर छा दिया। दास बना = धन्ना भक्त। निपजाओ = पैदा करना। सुनंद = सुनली। मीलणी = शवरी नामक भीलनी। तन्दुल = चावल। बुकन्द = चबाया। खींच = खींचड़ी। आरोग्यो = प्राप्त की। परसण = आनंदित । पावंद = पाया, खाया। रहंद = रहता है।

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