देव कवित्त और सवैया हिंदी मीनिंग Mahakavi Dev Kavitt Savaiya Hindi Meaning NCERT Kshtij Class 10
महाकवि देव बृज भाषा को गौरान्वित करने वाले कवी हैं जिनका पुरा नाम देवदत्त है. भावविलास ग्रन्थ से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रसिद्ध देव कवि का जन्म सं. १७३० में उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था.
"द्यौसरिया कवि देव का नगर इटावो बास"
कवी देव को किसी निश्चित दरबार या व्यक्ति का प्रशय नहीं मिला लेकिन उन्होंने कई प्रशयदाताओं के यहाँ कार्य किया. औरंगजेब के पुत्र आजमशाह के प्रशय में कवी देव ने अष्टयाम का की रचना की. कवी देव ने भावविलास की रचना को दिल्लीपति आजमशाह के प्रशय में लिखा है. कवी देव ने 16 वर्ष की अवस्था में ”विलास” नमक ग्रन्थ की रचना की. रीतिकाल कवियों में महाकवि देव का स्थान अत्यंत ही विस्तृत माना जाता है. महाकवि देव का प्रथम ग्रन्थ भाव विलास है जिसमे श्रींगार का सर्वांगींण विवेचन किया गया है. महाकवि देव का दुसरा ग्रन्थ अष्टयाम है जिसमे नायक और नायिका के चौसठ के विभिन्न विलासों का वर्णन प्राप्त होता है.
महाकवि देव का सवैया
पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री ब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री ब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥
Paanyani Noopur Manju Bajai, Kati Kinkini Kai Dhuni Kee Madhuraee.
Saanvare Ang Lasai Pat Peet, Hiye Hulasai Banamaal Suhaee.
Maathe Kireet Bade Drg Chanchal, Mand Hansee Mukhachand Junhaee.
Jai Jag-mandir-deepak Sundar, Shree Brajadoolah ‘dev’ Sahaee.
Saanvare Ang Lasai Pat Peet, Hiye Hulasai Banamaal Suhaee.
Maathe Kireet Bade Drg Chanchal, Mand Hansee Mukhachand Junhaee.
Jai Jag-mandir-deepak Sundar, Shree Brajadoolah ‘dev’ Sahaee.
देव के पद का हिंदी भावार्थ Dev Pad Hindi Meaning :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवी देव ने श्री कृष्ण के सुंदर रूप का चित्रण किया है. श्री कृष्ण जी के पैरों में घुंघरू और कमर में करघनी बंधी हुई है एंव मधुर ध्वनि बज रही है. श्री कृष्ण जी के सांवले रंग पर पीले रंग के वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं. गले में वैजयन्ती माला सुशोभित हो रही है. श्री कृष्ण जी के मस्तक पर मुकुट और आँखें बड़ी बड़ी और चंचल हैं. श्री कृष्ण जी के मुख पर मंद मंद मुस्कुराहट है जो चंद्रमा की किरणों के समान है. श्री कृष्ण जगत रूपी मंदिर के सुन्दर दीपक हैं. श्री कृष्ण बृज के दुल्हे के समान प्रतीत हो रहे हैं. भाव है की जैसे मंदिर में दीपक प्रकाश उत्पन्न करता है वैसे ही श्री कृष्ण जगत में प्रकाश फैलाते हैं और अज्ञान का अन्धकार दूर करते हैं। उनकी सुंदरता है की वे ब्रिज के दूल्हे के समान दिखाई देते हैं। कवी कह रहे हैं की श्री कृष्ण उनके सदा सहायक बने रहें। इस पद की "कटि किकिंनि कै, पट पीत" में अनुप्रास अलंकार और "जग मंदिर दीपक, मुखचंद" में रूपक अलंकार का उपयोग हुआ है।
महाकवि देव : कवित्त
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
Daar Drum Palana Bichhauna Nav Pallav Ke,
Suman Jhingoola Sohai Tan Chhabi Bhaaree Dai.
Pavan Jhoolaavai, Kekee-keer Bataraavain ‘dev’,
Kokil Halaavai Hulasaavai Kar Taaree Dai..
Poorit Paraag Son Utaaro Karai Raee Non,
Kanjakalee Naayika Lataan Sir Saaree Dai.
Madan Maheep Joo Ko Baalak Basant Taahi,
Praatahi Jagaavat Gulaab Chatakaaree Dai.
Suman Jhingoola Sohai Tan Chhabi Bhaaree Dai.
Pavan Jhoolaavai, Kekee-keer Bataraavain ‘dev’,
Kokil Halaavai Hulasaavai Kar Taaree Dai..
Poorit Paraag Son Utaaro Karai Raee Non,
Kanjakalee Naayika Lataan Sir Saaree Dai.
Madan Maheep Joo Ko Baalak Basant Taahi,
Praatahi Jagaavat Gulaab Chatakaaree Dai.
महाकवि देव के कवित्त का हिंदी मीनिंग :
महाकवि देव ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों की तुलना नव शिशु के आगमन से की है. जैसे परिवार में शिशु के आने पर सबके चेहरे खुशियों से खिल जाते हैं वैसे ही बसंत ऋतू के आने पर चारों तरफ अद्भुद उमंग और रौनक छा जाती है. बसंत के आगमन हो जाने के उपरान्त मानों शिशु नए नये पत्तों के पलने में झूल रहा है. फूलों का ढीला ढाला झबला (वस्त्र) नव शिशु के तन पर शोभित है. हवा मानों उसके पलने को झूला रही है. भाव है की बसंत के आने पर पेड़ पौधों के नए नए पत्ते और फूल आ गए हैं. मोर और तोते उससे बातें कर रहे हैं. कोयल उसके पलने को झुला रही है और ताली देकर उससे बातें कर रही है. कमल कली रूपी नायिका सिर पर लता रूपी साड़ी से सिर ढक कर अपने पराग कणों से शिशु बसंत की नजर उतार रही है। भाव है की वह बसंत रूपी बालक को बुरी नजर से बचाने की कोशिश कर रही है. बसंत कामदेव महाराज का शिशु है जिसे सुबह होने पर वे गुलाब की चुटकियाँ देकर जगाते हैं.
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
Phatik Silaani Saun Sudhaarayau Sudha Mandir,
Udadhi Dadhi Ko So Adhikai Umage Amand.
Baahar Te Bheetar Laun Bheeti Na Dikhaie ‘dev’,
Doodh Ko So Phen Phailyo Aangan Pharasaband.
Taara See Taruni Taamen Thaadhee Jhilamilee Hoti,
Motin Kee Joti Milyo Mallika Ko Makarand.
Aarasee Se Ambar Mein Aabha See Ujaaree Lagai,
Pyaaree Raadhika Ko Pratibimb So Lagat Chand.
Udadhi Dadhi Ko So Adhikai Umage Amand.
Baahar Te Bheetar Laun Bheeti Na Dikhaie ‘dev’,
Doodh Ko So Phen Phailyo Aangan Pharasaband.
Taara See Taruni Taamen Thaadhee Jhilamilee Hoti,
Motin Kee Joti Milyo Mallika Ko Makarand.
Aarasee Se Ambar Mein Aabha See Ujaaree Lagai,
Pyaaree Raadhika Ko Pratibimb So Lagat Chand.
महाकवि देव के कवित्त का हिंदी मीनिंग :
इस कवित्त में चाँदनी रात की सुंदरता का वर्णन किया गया है। चांदनी का प्रकाश/तेज ऐसे चमक रहा है जैसे स्फटिक का प्रकाश। स्वच्छ सुधामयी चाँदनी रात में चारों ओर फैले उज्ज्वल प्रकाश में आसमान को देखने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे पारदर्शी शिलाओं, स्फटिक से बना हुआ कोई सुधा मंदिर हो। इसकी दीवारें पारदर्शी होने के कारण भीतर-बाहर सब कुछ अत्यंत सुंदर दिखाई दे रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे दही फेन/समुद्र उमड़ रहा हो. इस फेन की गति किसी रूप से कण नहीं हो पा रही है. महाकवि देवदत्त कहते हैं की इस स्वच्छ सुधामयी चांदनी का सौन्दर्य स्वच्छ और निर्मल है कि सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा है. इसमें भीतर और बाहर के मध्य को दीवार या रुकावट नहीं होती है. स्वच्छ सुधामयी चाँदनी चारों तरफ इस भाँती फैली हुई है जैसे दूध के झाग / पारदर्शी दूध के झाग फैले हुए हों. तारों से भरी रात कुछ ऐसे झिलमिल कर रही है/चमक रही है जैसे तारों/सितारों जडित किसी युवती के वस्त्र चमकते हैं. तारे और मोतियों की आभामिश्रित मल्लिका के सफेद फूलों के साद्रश्य पराग-कण जैसे लग रहे हैं. स्वच्छ आकाश जो दर्पण के समान हैं, ऐसे आकाश में चाँद अनुपम सौंदर्य से युक्त राधा रानी जैसा प्रतीत हो रहा है.
Word Meaning of Dev Padya कठिन शब्दों के अर्थ
पाँयनी - पैरों में, पावों में, नूपुर - पायल, घुघरू, मंजु - अत्यंत सुंदर, कटि - कमर, किंकिनि - करधनी, कमर पर, धुनि - ध्वनि, मधुराई - मधुरता/सुंदरता, साँवरे - सांवले रंग, अंग - शरीर/तन, लसै - सुभोषित हो रही है, पट - वस्त्र, कपडे, पीत - पीला, हिये - ह्रदय पर, हुलसै - प्रसन्नता से विभोर, किरीट - मुकुट, मुखचंद - मुख रूपी चन्द्रमा, जुन्हाई - चाँदनी, द्रुम - पेड़/वृक्ष, सुमन झिंगुला - फूलों का झबला, केकी - मोर, कीर - तोता, हलवे-हुलसावे - बातों की मिठास, उतारो करे राई नोन -नज़र उतारने का टोटका, बुरी नजर से बचाने के लिए राई और नमक को शिशु के ऊपर घुमाना, कंजकली - कमल की कली, चटकारी - चुटकी, फटिक (स्फटिक) - प्राकृतिक क्रिस्टल, सिलानी - शीला पर, उदधि - समुद्र, उमगे - उमड़ना, अमंद - जो कम ना हो, भीति - दीवार, मल्लिका - बेल की जाती का एक सफेद फूल, मकरंद - फूलों का रस, आरसी - आइना।
महाकवि देव के पद्य के महत्वपूर्ण पश्न/उत्तर
कवि ने 'श्रीब्रजदूलह' किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
महाकवि देव ने श्री ब्रज दुलह का उपयोग श्री कृष्ण जी के लिए किया है। श्री कृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक कहने का आशय है जैसे दीपक मंदिर को प्रकाशित करता है वैसे ही श्री कृष्ण का प्रकाश सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है। श्री कृष्ण ही जगत का अज्ञान रूपी अंधकार दूर करते हैं।
महाकवि देव ने श्री ब्रज दुलह का उपयोग श्री कृष्ण जी के लिए किया है। श्री कृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक कहने का आशय है जैसे दीपक मंदिर को प्रकाशित करता है वैसे ही श्री कृष्ण का प्रकाश सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है। श्री कृष्ण ही जगत का अज्ञान रूपी अंधकार दूर करते हैं।
'प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै "इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
बसंत ऋतू में ग़ुलाब का फूल पूर्ण रूप से खिल जाता है। प्रातः काल में फूल खिलने के उपरान्त अपनी खुशबू फैलाता है जिसे आधार मान कर कवि वर्णन करता है की बसंत ऋतू शिशु को गुलाब अपनी सुगंध फैला कर चुटकी से जगा रहा हो।
बसंत ऋतू में ग़ुलाब का फूल पूर्ण रूप से खिल जाता है। प्रातः काल में फूल खिलने के उपरान्त अपनी खुशबू फैलाता है जिसे आधार मान कर कवि वर्णन करता है की बसंत ऋतू शिशु को गुलाब अपनी सुगंध फैला कर चुटकी से जगा रहा हो।
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
चांदनी रात की सुंदरता को स्वच्छ निर्मल दर्पण के रूप में, फर्श पर सफ़ेद झाग के फैले जाने पर, सफ़ेद दही के साथ उमड़ते समुद्र के रूप में और स्फटिक शिला के प्रकाश के रूप में देखा जा सकता है।
'प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद'-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन सा अलंकार है?
उक्त पंक्तियों में स्वच्छ आकाश में चमकते चाँद की चांदनी के प्रतिबिम्ब के रूप में दर्शाया गया है।चन्द्रमा की तुलना राधा जी के प्रतिबिम्ब से की गई है जिसमे उपमान को निम्न और उपमेय को श्रेष्ठ बताया गया है अतः पंक्तियों में व्यतिरेक अलंकार की व्यंजना की गई है।
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
दूध का फेन, सुधा मंदिर, दही का उमड़ता समुद्र, उदधि-दधि, स्फटिक शिला आदि।
कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
महाकवि देव रीतिकालीन कवी हैं जिनके काव्य में श्रृंगार रस का उपयोग हुआ है और इनके काव्य का प्रधान विषय प्रेम है। कवि ने प्राकृतिक वर्णन भी अत्यंत सुंदरता के साथ किया है। महाकवि देव के कवित्त और सवैया में अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार, और उपमा अलंकारों का सुंदरता से उपयोग हुआ है। काव्य की भाषा ब्रिज भाषा है और काव्य को कवित्त और सवैया रूप में लिखा गया है।
चांदनी रात की सुंदरता को स्वच्छ निर्मल दर्पण के रूप में, फर्श पर सफ़ेद झाग के फैले जाने पर, सफ़ेद दही के साथ उमड़ते समुद्र के रूप में और स्फटिक शिला के प्रकाश के रूप में देखा जा सकता है।
'प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद'-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन सा अलंकार है?
उक्त पंक्तियों में स्वच्छ आकाश में चमकते चाँद की चांदनी के प्रतिबिम्ब के रूप में दर्शाया गया है।चन्द्रमा की तुलना राधा जी के प्रतिबिम्ब से की गई है जिसमे उपमान को निम्न और उपमेय को श्रेष्ठ बताया गया है अतः पंक्तियों में व्यतिरेक अलंकार की व्यंजना की गई है।
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
दूध का फेन, सुधा मंदिर, दही का उमड़ता समुद्र, उदधि-दधि, स्फटिक शिला आदि।
कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
महाकवि देव रीतिकालीन कवी हैं जिनके काव्य में श्रृंगार रस का उपयोग हुआ है और इनके काव्य का प्रधान विषय प्रेम है। कवि ने प्राकृतिक वर्णन भी अत्यंत सुंदरता के साथ किया है। महाकवि देव के कवित्त और सवैया में अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार, और उपमा अलंकारों का सुंदरता से उपयोग हुआ है। काव्य की भाषा ब्रिज भाषा है और काव्य को कवित्त और सवैया रूप में लिखा गया है।
श्री कृष्ण के मुख की तुलना किससे की गई है?
श्री कृष्ण की तुलना महाकवि देव ने मंदिर के दीपक से की है। जैसे मंदिर का दीपक मंदिर के अन्धकार को दूर कर देता है वैसे ही श्री कृष्ण जगत में प्रकाशित हैं जो अज्ञान के अन्धकार को दूर करते हैं।
श्रीकृष्ण का शरीर कैसा है? उसका सौंदर्य किस कारण बढ़ गया है?
श्रीकृष्ण का शरीर साँवला सलोना है। श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र और गले में पुष्पों की माला जो उनके हृदय तक शोभित है के कारन से श्री कृष्ण जी का सौंदर्य बढ़ जाता है।
कवि देव को चाँदनी रात में तारे कैसे दिख रहे हैं?
चांदनी रात में तारे युवती के वस्त्रों पर चमकीले नगीनों की तरह से झिलमिल दिख रहे हैं।
कवि देव अपनी सहायता के लिए किसका आह्वान कर रहे हैं?
महाकवि देव श्री कृष्ण जी को अपनी सहायता के लिए आव्हान कर रहे हैं और कहते हैं की श्री कृष्ण सदा उनके सहायक बने रहें।
कवि देव अपनी सहायता के लिए किसका आह्वान कर रहे हैं?
महाकवि देव श्री कृष्ण जी को अपनी सहायता के लिए आव्हान कर रहे हैं और कहते हैं की श्री कृष्ण सदा उनके सहायक बने रहें।
कवि देव ने वसंत को राजा कामदेव का पुत्र क्यों कहा है?
जैसे कामदेव का पुत्र हर्ष और उल्लास को उत्पन्न करता है वैसे ही वसंत के आ जाने पर चारों और उल्लास का वातावरण होता है और खुशिया छा जाती हैं।
कवि ने गुलाब का मानवीकरण किस तरह किया है?
प्रातः होते ही गुलाब का फूल चटक कर खिलता है। मानों वह हाथों से चुटकी बजा कर बसंत को जगा रहा हो. इस प्रकार से गुलाब की क्रियाओं का मानवीकरण किया गया है।
बालक वसंत का बिस्तर किस तरह सजा है?
बालक बसंत का पालना (बिस्तर) नई नई पत्तियों से सजा हुआ है। बालक बसंत का नयी पत्तियों के पालने से सजा हुआ है।
बालक बसंत का पालना (बिस्तर) नई नई पत्तियों से सजा हुआ है। बालक बसंत का नयी पत्तियों के पालने से सजा हुआ है।
श्री कृष्ण के शरीर पर कौन-कौन से आभूषण मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं?
श्रीकृष्ण के शरीर/तन पर कई आभूषण शोभित हैं। श्री कृष्ण के पैरों में नूपुर और कमर में बँधी करधनी शोभित हैं और इन आभूषणों से उसे समय मधुर ध्वनि उप्तन्न हो रही है।
बालक वसंत का पालना कहाँ है? उसमें सजा बिस्तर किस तरह का है?
बालक बसंत का पालना वृक्षों पर है और नयी नयी पत्तियों से उसका पालना सुसज्जित है।
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