गुरु गोविन्द तौ एक है हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

गुरु गोविन्द तौ एक है हिंदी मीनिंग Guru Govind To Ek Hai Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit

गुरु गोविन्द तौ एक है, दूजा यह आकार।
आपा मेट जीवत मरै, तो पावै करतार॥

Guru Govind Tau Ek Hai, Dooja Yah Aakaar.
Aapa Met Jeevat Marai, To Paavai Karataar.
 
गुरु गोविन्द तौ एक है, दूजा यह आकार। आपा मेट जीवत मरै, तो पावै करतार॥

कबीर के दोहे का शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha.

गुरु गोविन्द तौ एक है-गुरु और गोविन्द (इश्वर) एक ही हैं.
दूजा यह आकार-दोनों के मध्य में केवल आकार का भेद है.
आपा मेट जीवत मरै-अहंकार को समाप्त करके उपरान्त.
तो पावै करतार-इश्वर (करतार) की प्राप्ति संभव है.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग : गुरु और गोविन्द दोनों एक ही हैं. दोनों के मध्य कोई भेद नहीं है. दोनों के मध्य मायाजनित दैहिक भेद है. अहंकार को मिटाने के उपरान्त इश्वर की प्राप्ति संभव है. 
 
कबीर साहेब इस साखी में गुरु की महत्ता को स्थापित करते हुए कहते हैं की गुरु और गोविन्द (इश्वर) के मध्य में कोई अंतर नहीं है. दोनों के मध्य में रूप (दैहिक) का ही भेद है. यह भेद भी तभी द्रष्टिगत होता है जब अहम् शेष रहता है. अहम् के शांत हो जाने पर गुरु और गोविन्द भी एक ही प्रतीत होते हैं और इश्वर की प्राप्ति भी तभी संभव हो पाती है. 
 
गुरु शुद्ध चेतैन्य की अवस्था में पहुच जाता है जिसमे गुरु और गोविन्द एकाकार हो जाते हैं, भेद समाप्त हो जाता है. साधक के लिए आवश्यक है की वह स्वंय के अहंकार (स्वंय के होने का भाव/स्वंय का प्रथक अस्तित्व) को पूर्ण रूप से नष्ट कर दे. अहंकार के समाप्त हो जाने पर ही द्वेत भाव की समाप्ति हो पाती है. साहेब ने अनेकों स्थान पर वाणी दी है की अहंकार भक्ति मार्ग में बाधक है यथा " प्रेम गली अति सांकरी" भक्ति का मार्ग अत्यंत संकरा है जिसमे अहम् और इश्वर दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं. 
 
गुरु गोविन्द में अनुप्राश अलंकार तथा जीवत मरै में विरोधाभास अलंकार की व्यंजना हुई है. मायाजनित भरम का परिणाम ही है की जीवात्मा और परमात्मा दोनों स्वतंत्र अस्तित्व रखते हुए प्रतीत होते हैं. 

यह तत् वह तत् एक है, एक प्राण दुइ जात।
अपने जिय से जानिये, मेरे जिय की बात॥
 
Kabir Couplet (Doha) Meaning in English : Both Guru and Govind are same. There is no difference between Guru and God. There is a somatic distinction between the two. It is possible to attain God after erasing the ego.

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