पाणी मांहे प्रजली भई अप्रबल आगि मीनिंग कबीर के दोहे

पाणी मांहे प्रजली भई अप्रबल आगि हिंदी मीनिंग Paani Manhe Prajali

 
पाणी मांहे प्रजली, भई अप्रबल आगि।
बहती सलिता रहि गई, मेछ रहे जल त्यागि॥

Paani Mahe Prajali, Bhai Aprabal Aagi,
Bahati Salita Rahi Gai, Mechh Rrahe Jal Tyagi.
 
पाणी मांहे प्रजली, भई अप्रबल आगि। बहती सलिता रहि गई, मेछ रहे जल त्यागि॥

कबीर दोहा शब्दार्थ हिंदी Kabir Doha Hindi Word Meaning. 
  • पाणी -पानी, चेतन अवस्था।
  • मांहे - माहीं, के अंदर।
  • प्रजल- प्रजवल्लित हो गई, जल गई।
  • भई-हुई।
  • अप्रबल - महान, तीव्र।
  • आगि-अग्नि।
  • सलिता - सरिता।
  • रहि गई- रह गई।
  • मेछ रहे -मच्छ जीव, मछली।
  • जल त्यागि-जल

कबीर दोहा/साखी हिंदी मीनिंग Kabir Doha/Sakhi Hindi meaning

विरह की अवस्था में ज्ञान की अग्नि प्रबल हो गई है। विषय वासनाओं की जो अग्नि जीवात्मा में बह रही थी वह, अब स्वंय ही बिरह की अग्नि में जलने लगी है। विषय वासनाओं की सरिता में जब विरह ज्ञान की आग लग गई तो समस्त विषय वासनाओं रूपी मछलियां जल कर नष्ट हो गई हैं। विषय वासना रूपी मछलिया जीवात्मा को छोड़ कर दूर हट चुकी हैं। 

माया के समस्त सहायक तत्व, विषय विकार नष्ट हो गए हैं। कबीर की इस साखी में अन्योक्ति अलंकार का उपयोग हुआ है।  दोहे का मूल भाव है की जब जीवात्मा ईश्वर की विरह अग्नि में जलती है तो समस्त विषय और विकार नष्ट हो जाते हैं। जैसे मछलियों को जल में आश्रय मिलता है, वैसे ही विषय विकारों को माया के रंग में रंग चुकी जीवात्मा में अपना आश्रय लेते हैं। गुरु के द्वारा जब ज्ञान दिया जाता है तो साधक बेचैन हो उठता है और पूर्णता को प्राप्त करने के लिए उत्सुक हो उठता है। यही विरह की अग्नि है जिसमे जीवात्मा दिन रात जलती रहती है। 
 
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
+

एक टिप्पणी भेजें