जा कारणि मैं जाइ था सोई पाई ठौर कबीर के दोहे
जा कारणि मैं जाइ था सोई पाई ठौर Ja Karani Main Jaayi Tha Kabir Ke Dohe
जा कारणि मैं जाइ था, सोई पाई ठौर।
सोई फिर आपण भया, जासूँ कहता और॥
सोई फिर आपण भया, जासूँ कहता और॥
Ja karani Main Jaai Tha, Soi Paai Thour,
Soi Phir Aapana Bhaya, Jasu Kahata Aur.
- जा कारणि- जिस कारण से, जिस निमित्त से, जिस उद्देश्य से।
- मैं जाइ था- जन्म हुआ था, जन्मा था।
- सोई- वही।
- पाई - प्राप्त किया।
- ठौर- ठौर ठिकाना, स्थान।
- सोई फिर - वही फिर।
- आपण- अपना।
- भया- हुआ।
- जासूँ- जिससे।
- कहता और- अन्य कुछ कहना शेष नहीं रहा है।
दोहे का भाव है की अनेकों रूपों में जन्म लेने के उपरांत मानव के रूप में जीवात्मा जन्म लेती है। उसके जीवन का उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति करना होता है। लेकिन वह माया के भरम में पड़कर उसे तीर्थ, किताबों और कर्मकांड में ढूंढने में व्यस्त रहती है। जब आत्म ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तो वह स्वंय के अंदर ही ईश्वर को प्राप्त कर लेती है। यह भटकाव तभी तक रहता है, जब तक हृदय में अज्ञान का अन्धकार रहता है। जब सत्य का उजाला हृदय में उतपन्न हो जाता है तो साधक को बाहर भटकने की आवश्यकता नहीं रह जाती है। जीवात्मा को बोध प्राप्त होता है की वह ब्रह्म का ही अंश है। जो है वह अंदर ही है, बाहर कुछ नहीं। बाहर सब दिखावा है, जिसका भक्ति से कुछ भी लेना देना नहीं है।
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