
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
थिति पाई मन थिर भया सतगुर करी सहाइ Thiti Paayi Man Thir Meaning
कबीर दोहा हिंदी मीनिंग - सतगुरु ने साधक की सहायता की जिससे उसने परम पद प्राप्त कर लिया है और मन में स्थिरता आ गई है. अब साधक का मन विषय और वासनाओं की तरफ नहीं दौड़ता है. उसके हृदय में अनन्य इश्वर की कथा/कार्यों का चरितार्थ हो गया है. उसने भक्ति के परम पद को प्राप्त कर लिया है. भटकाव समाप्त होकर उसका चित्त पूर्ण परमात्मा में रम गया है. समस्त सांसारिक जगत के कार्यों को छोड़कर अब साधक अंतर्मुखी हो गया है और सहज अवस्था को प्राप्त कर चूका है. साधक के हृदय में त्रिलोकपति का निवास हो गया है.
इस दोहे का भाव है की सतगुरु देव ने साधक को ज्ञान दिया जिससे वह भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़कर ऐसी अवस्था में आ गया है जहाँ पर उसे किसी मान सम्मान, सांसारिक क्रियाओं की आवश्यकता शेष नहीं रही है. यह भक्ति की ऐसी अवस्था है जहाँ पर मौखिक भक्ति, नाम जाप आदि भी महत्त्व गौण हो जाता है. हृदय में ही मनका चलता है. स्वांस स्वांस में भक्ति की सुगंध व्याप्त हो जाती है, तन और मन राममय हो जाते हैं. समस्त मानसिक चंचलता ऐसी अवस्था में शून्य हो जाती है. ऐसी अवस्था को प्राप्त करना ही परम पद कहलाता है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |