राम रसाइन प्रेम रस पीवत मीनिंग Raam Rasaayan Prem Ras Pivat Adhik Rasaal Meaning
राम रसाइन प्रेम रस पीवत, अधिक रसाल।कबीर पीवण दुलभ है, माँगै सीस कलाल॥
Raam Rasayan Prem Ras Pivat Adhik Rasaal,
Kabir Peevan Dulabh Hai, Mange Sheesh Kalaal.
कबीर दोहा साखी हिंदी शब्दार्थ Kabir Doha/Sakhi Hindi Shabdaarth (Hindi Word Meaning)
- राम रसाइन- राम नाम रूपी रसायन।
- प्रेम रस- भक्ति रस।
- पीवत- पीना।
- अधिक- ज्यादा।
- रसाल- रसीला, रस से परिपूर्ण।
- पीवण - पीना /ग्रहण करना।
- दुलभ-विरल, दुर्लभ।
- माँगै- मांगता है।
- सीस- शीश।
- कलाल- मदिरा विक्रेता, जो मदिरा का कारोबार करता है। यहाँ कलाल से आशय गुरु से है।
कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kabir Doha/Sakhi Hindi Arth (Hindi meaning)
राम रसायन, भक्ति रस पीने में अधिक मधुर और मीठा होता है। लेकिन यह भक्ति रस पीना, ग्रहण करना अत्यंत ही दुर्लभ होता है। गुरु रूपी कलाल इसके लिए शीश की मांग करता है। शीश देने से आशय है की भक्ति में पूर्ण समर्पण की आवश्यकता होती है, यह कोई आसान कार्य नहीं है जिसे हर व्यक्ति प्राप्त कर ले। अहम् को समाप्त करना पड़ता है, स्वंय को अस्तित्व को ईश्वर में लीन करने के उपरान्त ही इस मधुर रस को प्राप्त किया जा सकता है। इस दोहे में व्यक्तिरेक अलंकार की व्यंजना हुई है।
व्यक्तिरेक अलंकार :
जहाँ पर कारण स्पष्ट करते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई जाए उसे व्यतिरेक अलंकार कहते हैं। शाब्दिक रूप से व्यक्तिरेक का अर्थ
आधिक्य होता है। व्यतिरेक अलंकार में कारण प्रधान होता है। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का श्रेष्ठ हो
वहां पर व्यक्तिरेक अलंकार होता है।
स्वर्ग कि तुलना उचित ही है यहाँ,
किन्तु सुर सरिता कहाँ सरयू कहाँ।
वह मरों को पार उतारती,
यह यहीं से सबको ताँती।।
जन्म सिंधु पुनि बंधु विष,दीनन मलिन सकलंक|
सीय मुख समता पाव किमी चंद्र बापूरो रंक ||
सम सुबरन सुखमाकर सुखद न थोर।
सीय अंग सखि कोमल कनक कठोर।।
काव्य/पद्य में जहाँ उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
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व्यक्तिरेक अलंकार :
जहाँ पर कारण स्पष्ट करते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई जाए उसे व्यतिरेक अलंकार कहते हैं। शाब्दिक रूप से व्यक्तिरेक का अर्थ
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वहां पर व्यक्तिरेक अलंकार होता है।
स्वर्ग कि तुलना उचित ही है यहाँ,
किन्तु सुर सरिता कहाँ सरयू कहाँ।
वह मरों को पार उतारती,
यह यहीं से सबको ताँती।।
जन्म सिंधु पुनि बंधु विष,दीनन मलिन सकलंक|
सीय मुख समता पाव किमी चंद्र बापूरो रंक ||
सम सुबरन सुखमाकर सुखद न थोर।
सीय अंग सखि कोमल कनक कठोर।।
काव्य/पद्य में जहाँ उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।
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Author - Saroj Jangir
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