तो तो करै त बाहुड़ों दुरि दुरि करै तो जाउँ मीनिंग
तो तो करै त बाहुड़ों, दुरि दुरि करै तो जाउँ।
ज्यूँ हरि राखैं त्यूँ रहौं, जो देवै सो खाउँ॥
To To Kare Te Bahudo, Duri Duri Kare To Jaau,
Jyu Hari Rakhe Tyu Raho, Jo Deve So Khau.
तो तो करै : तू तू करने पर (कुत्ते को तू तू करके बुलाया जाता है, देसज शब्द है )
त बाहुड़ों : लौट आता हूँ, मुड़ आता हूँ। बावड़्ना से आशय मुड़ना से है जो की एक राजस्थानी भाषा का शब्द है।
दुरि दुरि : दुरे दुरे करने पर दूर चला जाता हूँ।
करै तो जाउँ : तो चला जाता हूँ।
जाउँ-चला जाता हूँ।
ज्यूँ-जो
, जैसा भी।
ज्यूँ हरि राखैं : जैसे स्वामी रखे/मालिक रखे।
त्यूँ रहौं : वैसे रहते हैं।
जो देवै सो खाउँ : जो देता है वह खाते हैं।
सो-वह।
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब का सन्देश है की वह राम के प्रति पूर्ण समर्पित भक्त है, वह कुत्ते की तरह से अपने स्वामी के प्रति वफादार है. तू तू करने पर वह स्वामी के पास चला आता है और दूर दूर करने पर दूर चला जाता है. जैसे हरी मुझे रखता है वैसे ही मैं रहता हूँ. इस साखी का भाव है की साधक ने अपने अहम् को पूर्ण रूप से समाप्त कर लिया है और अब वह जैसे एक कुत्ता/स्वान अपने मालिक के प्रति समर्पित हो जाता है और उसी की आज्ञाओं का पालन करता है, वैसे ही साधक भी भक्ति मार्ग पर स्वामी के बताए मार्ग का अनुसरण करता है. जैसा स्वामी रखता है, वैसे ही साधक रहता है और जैसे वह खाने को देता है, वैसा ही खाना वह खाता है. साधक का अपना कुछ नहीं है, जो भी है इश्वर का है, उसी के प्रति वह पूर्ण समर्पित है. कुत्ते का रूपक देकर भक्ति भावना में समर्पण को दर्शाया गया है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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