मन प्रतीति न प्रेम रस नां इस तन मैं ढंग लिरिक्स मीनिंग Man Pratiti Na Prem Ras Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Bhavarth)
मन प्रतीति न प्रेम रस, नां इस तन मैं ढंग।
क्या जाणौं उस पीव सूं, कैसे रहसी रंग॥
क्या जाणौं उस पीव सूं, कैसे रहसी रंग॥
Man Pratiti Na Prem Ras, Na Is Tan Me Dhang,
Kya Jaano Us Peev Su, Kaise Rahasi Rang.
मन हृदय, चित्त.
प्रतीति : प्रेम, स्नेह.
न प्रेम रस : हृदय में प्रेम रस नहीं है.
नां इस तन मैं ढंग : इस तन में ढंग नहीं है.
क्या जाणौं : क्या जाने.
उस पीव सूं : उस प्रिय से, उस स्वामी से.
कैसे रहसी रंग : उसके साथ रहने का उत्सव/उमंग कैसे पूर्ण होगी.
रंग-व्यवहार.
रहसी : रहेगा.
प्रतीति : प्रेम, स्नेह.
न प्रेम रस : हृदय में प्रेम रस नहीं है.
नां इस तन मैं ढंग : इस तन में ढंग नहीं है.
क्या जाणौं : क्या जाने.
उस पीव सूं : उस प्रिय से, उस स्वामी से.
कैसे रहसी रंग : उसके साथ रहने का उत्सव/उमंग कैसे पूर्ण होगी.
रंग-व्यवहार.
रहसी : रहेगा.
कबीर साहेब की वाणी है की ना तो इस मन में पूर्ण विश्वास और निष्ठां है और नाहीं प्रीती है. स्वामी को खुश करने का ढंग भी जीवात्मा को नहीं आता है. ना जाने वह प्रिय कैसा है और मैं कैसे उससे मिलन का रस मना पाऊंगा. साधक का विनय है की भागवत प्रेम के प्रति पूर्ण जानकारी नहीं है, ना ही उसमे पूर्ण प्रीती है, ऐसे में कैसे वह प्रभु से मिलन के वक़्त हरी के रंग में रंगेगी, मिलेगी. अभी जीवात्मा को प्रभु मिलन की रीति का ही बोध नहीं है.
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