इत प्रधर उत घर बड़जण आए हाट मीनिंग

इत प्रधर उत घर बड़जण आए हाट मीनिंग

इत प्रधर उत घर बड़जण आए हाट।
करम किराणाँ बेचि करि, उठि ज लागे बाट॥
It Pradhar Ut Ghar Badjan Aae Haat.
Karam Kiraano Bechi Kari, Uthi Na Laage Baat.

इत : यहाँ, इस स्थान पर.
प्रधर : पर घर, दुसरे का घर.
उत : उस स्थान पर, वहां.
बड़जण : व्यापार, सौदा, बहुत से लोगों के द्वारा वाणिज्यकरण.
हाट : बाजार, दुकान.
करम : कर्म.
किराणाँ : रोज मर्रा की आवश्यकता की सामग्री.
बेचि करि : बेच कर.
उठि : उठना, समेटना.
ज लागे बाट : अपने राह को पकड़ लो.

कबीर साहेब ने इस जगत को एक तरह का का बाजार कहकर सन्देश दिया है की जैसे विभिन्न व्यापारी बाजार में आकर अपनी हाट लगाते हैं और अपना अपना सौदा करते हैं और समय आने पर अपने सौदे को समेट कर अपनी राह पकड़ लेते हैं, ऐसे ही इस जगत में मानव को राम नाम रूपी कर्मों का सौदा करना चाहिए और कर्म रूपी किराना बेच कर अपनी राह (मुक्ति पथ) को प्रशस्त कर लेना चाहिए.
इस जगत में आकर व्यक्ति को विवेक और बुद्धि का उपयोग करके अपने जीवन मुक्ति का करम यहीं पर कर लेना चाहिए. मुर्ख व्यक्ति अपने कर्मों को जगत से जोड़ कर रखता है और कुछ भी हासिल नहीं कर पाता है. मानव जीवन के हरी के नाम का सुमिरण करना ही मुक्ति मार्ग को प्रशस्त करना है और इसके लिए राम नाम का सहारा ही श्रेष्ठ होता है. प्रस्तुत साखी में रूपक और रुप्कातिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है. 
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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