जाइबे को जागह नहीं रहिबे कौं नहीं ठौर हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

जाइबे को जागह नहीं रहिबे कौं नहीं ठौर हिंदी मीनिंग Jaaibe Ko Jagah Nahi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)

जाइबे को जागह नहीं, रहिबे कौं नहीं ठौर।
कहै कबीरा संत हौ, अबिगति की गति और॥
Jaaibe Ko Jaagah Nahi, Rahibe Ko Nahi Thour.
Kahe Kabira Sant Ho, Abigati Ki Gati Aur.

जाइबे को : इश्वर के पास जाने के लिए, भक्ति मार्ग के लिए.
जागा नहीं : जागा नहीं, चेतन अवस्था को प्राप्त नहीं किया.
रहिबे कौं नहीं : रहने के लिए.
ठौर : जगह नहीं है, स्थान नहीं है.
कहै कबीरा : कबीर साहेब कहते हैं की.
संत हौ : सुनों संतों.
अबिगति की गति : अविगति कुछ और ही है.
और : प्रथक है, भिन्न है. (अव्यक्त ब्रह्म की दशा भिन्न है)

कबीर साहेब की इस साखी में बानी है की जहाँ जाने की जगह नहीं है और रहने को कोई स्थान भी नहीं है, उस अविगत की स्थिति कुछ भिन्न ही है. उस पूर्ण परम ब्रह्म की स्थिति कुछ भिन्न ही है. जैसे संसार में रहने के लिए जगह की आवश्यकता होती है ऐसा वहां पर कुछ भी नहीं है. भौतिक रूप में वहां पर कुछ भी नहीं है. पूर्ण ब्रह्म इन्द्रियों से परे है. उसमें सांसारिक विषय वासनाओं का कोई स्थान नहीं है. कबीर साहेब का भाव है की साधक भक्ति की परिकल्पना सांसारिक रूप में करता है, यथा इश्वर का स्थान कैसा होगा, वह स्वंय कैसा दीखता होगा आदि. लेकिन इश्वर तो इन सभी से परे है. उसका ना तो कोई रूप है और नाहीं कोई स्थान विशेष. वह मुक्त है, कण कण में है. वह तो राई के पीछे छुपा हुआ पहाड़ रूप में है.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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