जीव बिलब्या जीव सों अलख न लखिया जाइ

जीव बिलब्या जीव सों अलख न लखिया जाइ

जीव बिलब्या जीव सों, अलख न लखिया जाइ।
गोबिंद मिलै न झल बुझै, रही बुझाइ बुझाइ॥
Jeev Bilvya Jeev So, Alakh Na Lakhiya Jaai,
Govind Mile Na Jhal Bujhe, Rahi Bujhai Bujhai.
जीव बिलव्या जीव सों : जीव जीव के ऊपर आश्रित है.
अलख न लखिया जाइ : अलक्ष्य/अलख दिखाई नहीं देता है.
गोबिंद मिलै न झल बुझै : गोविन्द की प्राप्ति नहीं होने पर दाह/ताप शांत नहीं होता है.
रही बुझाइ बुझाइ : चाहे किसी भी प्रकार से बुझा लिया जाए.
जीव : जीवात्मा, सांसरिक जीव.
बिलब्या : सहारा लिया, आश्रय लिया.
जीव सों : जीव का.
सों : का.
अलख : अलक्ष्य, जो अलख है.
न लखिया जाइ : पहचाना नहीं जाता है.
गोबिंद : इश्वर
मिलै न : नहीं मिलता है, प्राप्त नहीं होता है.
झल बुझै : दाह, अग्नि लपट (दुःख संताप)
रही बुझाइ बुझाइ : कैसे भी बुझा लिया जाए.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी है की इस जगत में/संसार में प्रत्येक जीव दुसरे जीव पर आश्रित है. वह स्वतंत्र नहीं है. सांसारिक जिव उस अलक्ष्य और निराकार पूर्ण परम ब्रह्म को पहचान नहीं पाता है, प्राप्त नहीं कर पाता है. जब तक गोविन्द नहीं मिलता है, गोविन्द की प्राप्ति के अभाव में सांसारिक/ दैहिक संताप रूपी अग्नि की ज्वाला शांत नहीं होती है. चाहे इस अग्नि को किसी भी भाँती से बुझाने का प्रयत्न किया जाय. अतः भाव है की समस्त सांसारिक क्रियाएं और व्यवहार संताप ही उत्पन्न करती हैं. एकमात्र भक्ति ही ऐसा साधन होता है जिससे व्यक्ति को शान्ति मिलती है. प्रस्तुत साखी में (बुझी बुझाई) पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की व्यंजना हुई है.
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