कबीर पढीबो दूरि करि आथि पढ़ा संसार मीनिंग Kabir Padhibo Duri Kari Meaning Kabir Dohe
कबीर पढीबो दूरि करि आथि पढ़ा संसार मीनिंग Kabir Padhibo Duri Kari Meaning Kabir Dohe Hindi Arth Sahit, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning/Hindi Bhavarth
कबीर पढीबो दूरि करि, आथि पढ़ा संसार।पीड़ न उपजी प्रीति सूँ, तो क्यूँ करि करै पुकार॥
Kabir Padhibo Duri Kari, Aathi Padha Sansaar,
Peed Naa Upaji Preet Su, To Kyu Kari Kare Pukaar.
कबीर पढीबो दूरि करि : कबीर साहेब कहते हैं की पढना दूर करो.
आथि पढ़ा संसार : सम्पूर्ण संसार ही पढ़ा हुआ है.
पीड़ न उपजी प्रीति सूँ: यदि प्रिय के प्रति पीड, प्रेम नहीं है तो.
तो क्यूँ करि करै पुकार : तो तुम किस भाँती पुकार करोगे.
पढीबो दूरि : कबीर साहेब कहते हैं की पढना दूर करो.
करि, करो.
आथि : सम्पूर्ण.
पढ़ा संसार : पढ़ा हुआ है, (संसार पहले से ही पढ़ा हुआ है)
पीड़ : पीड़ा, विरह वेदना.
न उपजी : पैदा नहीं हुई.
प्रीति सूँ : प्रीत से, इश्वर से प्रीत.
तो क्यूँ करि करै पुकार : तो तुम कैसे पुकार करोगे, हरी के सुमिरन/उच्चारण.
आथि पढ़ा संसार : सम्पूर्ण संसार ही पढ़ा हुआ है.
पीड़ न उपजी प्रीति सूँ: यदि प्रिय के प्रति पीड, प्रेम नहीं है तो.
तो क्यूँ करि करै पुकार : तो तुम किस भाँती पुकार करोगे.
पढीबो दूरि : कबीर साहेब कहते हैं की पढना दूर करो.
करि, करो.
आथि : सम्पूर्ण.
पढ़ा संसार : पढ़ा हुआ है, (संसार पहले से ही पढ़ा हुआ है)
पीड़ : पीड़ा, विरह वेदना.
न उपजी : पैदा नहीं हुई.
प्रीति सूँ : प्रीत से, इश्वर से प्रीत.
तो क्यूँ करि करै पुकार : तो तुम कैसे पुकार करोगे, हरी के सुमिरन/उच्चारण.
कबीर साहेब की वाणी है की तुम संसार को शास्त्रीय ज्ञान मत बताओ, किताबी ज्ञान की उनको आवश्यकता नहीं है. वे पहले से ही बहुत कुछ पढ़ चुके हैं. सम्पूर्ण संसार ही पढ़ा हुआ है. यदि हृदय में हरी मिलन की पीड़ा नहीं है तो व्यर्थ में उसके नाम का उच्चारण करने से क्या लाभ होने वाला है.
अतः हृदय से भक्ति करना वांछनीय है. जब हृदय में हरी मिलन की वेदना होगी तो स्वतः ही इश्वर का नाम आएगा जिसे बोलकर कहने की आवश्यकता नही होती है. वस्तुतः कबीर साहेब ने अनेकों स्थान पर कहा है की भक्ति आंतरिक है, हृदय से भक्ति होती है. यह दिखावे और आडम्बर की वस्तु नहीं है. किसी तीर्थ, कर्मकांड, पूजा पाठ या किताबों की कोई आवश्यकता नहीं है. यह शुद्ध रूप से आंतरिक है. हृदय से की गई भक्ति का ही महत्त्व होता है.
अतः हृदय से भक्ति करना वांछनीय है. जब हृदय में हरी मिलन की वेदना होगी तो स्वतः ही इश्वर का नाम आएगा जिसे बोलकर कहने की आवश्यकता नही होती है. वस्तुतः कबीर साहेब ने अनेकों स्थान पर कहा है की भक्ति आंतरिक है, हृदय से भक्ति होती है. यह दिखावे और आडम्बर की वस्तु नहीं है. किसी तीर्थ, कर्मकांड, पूजा पाठ या किताबों की कोई आवश्यकता नहीं है. यह शुद्ध रूप से आंतरिक है. हृदय से की गई भक्ति का ही महत्त्व होता है.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग