कबिरा पढ़िबा दूरि करि पुस्तक देइ बहाइ मीनिंग
कबिरा पढ़िबा दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ।
बांवन अषिर सोधि करि, ररै ममैं चित लाइ॥
Kabira Padhiba Duri Kari, Pustak Dehi Bahaai,
Bawan Akhir Sodhi Kari, Rare Mame Chitt Laai
कबिरा पढ़िबा दूरि करि : पढ़ना दूर करो, महज किताबी ज्ञान से कोई फायदा नहीं होने वाला है.
पुस्तक देइ बहाइ : पुस्तकों को नदी/पानी में बहा दो.
बांवन अषिर सोधि करि : बावन अक्षरों को शोध करने के उपरान्त.
ररै ममैं चित लाइ : राम नाम में चित्त को लगाओ. "र" कार और "म" कार ध्वनी.
पढ़िबा : पढना, किताबों का अध्ययन.
दूरि करि : दूर करो.
देइ : दो.
बहाइ : बहा दो.
बांवन अषिर : वर्णमाला के बावन अक्षर.
सोधि करि : शोध करने के उपरान्त.
ररै ममैं : रकार और मकार.
चित लाइ : हृदय को लगाओ, चित्त को लगाओ.
कबीर साहेब की वाणी है की महज शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त कर लेने से क्या फायदा होने वाला है, कुछ भी नहीं. चारों वेदों को पढ़ लो, गीता पढ़ लो, ऋचाएं पढ़ लो लेकिन इनसे क्या लाभ होने वाला है. अतः साहेब कहते हैं की किताबों को, पुस्तकों को नदी में बहा दो. बावन अक्षरों में से रकार और मकार में चित्त लगाओ. हृदय से इश्वर के नाम का सुमिरन समस्त भक्ति माध्यमों का सार है. चित्त से हरी के सुमिरन के उपरान्त किसी अन्य भक्ति मार्ग की आवश्यकता शेष नहीं रहती है.
अतः साहेब कहते हैं की इस जगत में आडम्बर अधिक हैं, कर्मकांड अधिक हैं लेकिन सच्ची भक्ति बहुत ही कम है. सच्ची भक्ति के अभाव में जीवात्मा इधर से उधर भटकती रहती है.
वह किसी लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाती है. तो साहेब कहते हैं की किसी पूजा अर्चना की कोई आवश्यकता नहीं है, किसी तीर्थ का कोई महत्त्व नहीं है, किसी आडम्बर का कोई स्थान नहीं है, जप माला छापा तिलक का कोई महत्त्व नहीं है, तो महत्त्व किसका है. महत्त्व है हृदय से/ चित्त से इश्वर की भक्ति करना ही मुक्ति का द्वार है.