कथणीं कथी तो क्या भया हिंदी मीनिंग Kathani Kathi To Kya Bhaya Meaning Kabir Dohe Hindi Arth Sahit, Kabir Ke Dohe Hindi Bhavarth/Hindi Arth/Hindi Meaning
कथणीं कथी तो क्या भया, जे करणी नाँ ठहराइ।कालबूत के कोट ज्यूँ, देषतहीं ढहि जाइ॥
Kathani Kathi To Kya Bhaya, Je Karani Na Thahraai,
Kaalboot Ke Kot Jyu, Dekhatahi Dhahi Jaai.
Kathani Kathi To Kya Bhaya, Je Karani Na Thahraai,
Kaalboot Ke Kot Jyu, Dekhatahi Dhahi Jaai.
कथणीं कथी तो क्या भया : कथनी का क्या लाभ, मात्र कथन करने से क्या लाभ हो सकता है.
जे करणी नाँ ठहराइ : यदि उसे किया नहीं जाए, यदि उसे कर्म में नहीं उतारा जाए.
कालबूत के कोट ज्यूँ : कंगूरे बनाने का कच्चे आधार के समान.
देषतहीं ढहि जाइ : देखते ही देखते ढह जाता है.
कथणीं : कहना, उपदेश, कथन, मात्र कहना.
कथी तो : कहा तो, यदि कह दिया जाए तो.
क्या भया : तो क्या हुआ.
जे करणी नाँ ठहराइ : यदि उसे कर्म में परिणीत ना किया जाए.
कालबूत : परकोटे बनाने, कंगूरे बनाने में पहले मिटटी का एक ढांचा बनाया जाता है जिसके सहारे, माप के अनुसार पक्का कंगूरा बनाया जाता है. पक्के कंगूरे बनाने के बाद इसे ध्वस्त कर दिया जाता है. यहाँ अस्थाई के भाव में इसका प्रयोग हुआ है.
के कोट : किला.
ज्यूँ : जैसे.
देषतहीं : देखते देखते ही, बहुत ही अल्प समय में.
ढहि जाइ : ढह जाता है समाप्त हो जाता है.
जे करणी नाँ ठहराइ : यदि उसे किया नहीं जाए, यदि उसे कर्म में नहीं उतारा जाए.
कालबूत के कोट ज्यूँ : कंगूरे बनाने का कच्चे आधार के समान.
देषतहीं ढहि जाइ : देखते ही देखते ढह जाता है.
कथणीं : कहना, उपदेश, कथन, मात्र कहना.
कथी तो : कहा तो, यदि कह दिया जाए तो.
क्या भया : तो क्या हुआ.
जे करणी नाँ ठहराइ : यदि उसे कर्म में परिणीत ना किया जाए.
कालबूत : परकोटे बनाने, कंगूरे बनाने में पहले मिटटी का एक ढांचा बनाया जाता है जिसके सहारे, माप के अनुसार पक्का कंगूरा बनाया जाता है. पक्के कंगूरे बनाने के बाद इसे ध्वस्त कर दिया जाता है. यहाँ अस्थाई के भाव में इसका प्रयोग हुआ है.
के कोट : किला.
ज्यूँ : जैसे.
देषतहीं : देखते देखते ही, बहुत ही अल्प समय में.
ढहि जाइ : ढह जाता है समाप्त हो जाता है.
कबीर साहेब की वाणी है की जो लोग महज उपदेश देते हैं, बोलते हैं उनके उपदेश देने, ज्ञान वितरित करने से क्या लाभ होगा, कुछ नहीं. उनके उपदेश और कथनी तो अल्प समय के लिए होती है. यदि कथनी को अपने व्यवहार में नहीं उतारा जाए तो उसका महत्त्व स्थाई नहीं होता है. जैसे कालबूत का अपना कोई स्थाई महत्त्व नहीं होता है और वह शीघ्र ही समाप्त हो जाता है, ऐसे ही महज उपदेश और वाणी का कोई महत्त्व नहीं होता है यदि उसे अपने आचरण में ना उतारा जाए.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी का मूल भाव है की ज्ञान तभी उपयोगी होता है जब उसे हम आचरण में उतार कर उसका पालन करे. कहने, पढने और सुनने का जब तक कोई महत्त्व नहीं है जब तक की हम उसे अपने व्यवहार में शामिल ना करें.
प्रस्तुत साखी में द्रष्टान्त अलंकार और उदाहरण अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब की वाणी का मूल भाव है की ज्ञान तभी उपयोगी होता है जब उसे हम आचरण में उतार कर उसका पालन करे. कहने, पढने और सुनने का जब तक कोई महत्त्व नहीं है जब तक की हम उसे अपने व्यवहार में शामिल ना करें.
प्रस्तुत साखी में द्रष्टान्त अलंकार और उदाहरण अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
कबीर के दोहे हिंदी भावार्थ/हिंदी अर्थ/ हिंदी मीनिंग सहित। श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग