बेसनों भया तौ क्या भया बूझा नहीं बबेक मीनिंग Besano Bhaya To Kya Bhaya Kabir Dohe

बेसनों भया तौ क्या भया बूझा नहीं बबेक मीनिंग Besano Bhaya To Kya Bhaya Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

बेसनों भया तौ क्या भया, बूझा नहीं बबेक।
छापा तिलक बनाइ करि, दगध्या लोक अनेक॥
Besano Bhaya To Kya Bhaya Bujha Nahi Babek,
Chhapa Tilak Banaai Kari, Dagdhya lok Anek.

बेसनों भया तौ क्या भया : वैष्णव हो गए तो क्या हुआ.
बूझा नहीं बबेक : विवेक और बुद्धि का तुमने बोध नहीं किया, पता नहीं किया.
छापा तिलक बनाइ करि : तिलक छाप करके (मस्तक पर तिलक लगा करके)
दगध्या लोक अनेक : अनेकों लोक में यातनाएं सहन की हैं.
बेसनों : वैष्णव.
भया : हुआ.
तौ क्या भया : तो क्या हुआ (क्या उपलब्धि प्राप्त की)
बूझा पता नहीं किया.
नहीं बबेक : विवेक को प्राप्त नहीं किया.
छापा तिलक : तिलक छाप करके.
बनाइ करि : बना करके.
दगध्या : दग्ध रहा, संताप ग्रहण किया.
लोक अनेक : अनेकों लोकों में (लम्बे समय तक)

वैष्णव मतावलम्बी विभिन्न तरह के आडम्बर रचते हैं और स्वंय को श्रेष्ठ भक्त दिखाने के लिए अपने मस्तक पर तिलक छाप लिया लेकिन विवेक को प्राप्त नहीं किया है.  भाव है की मस्तक पर तिलक छाप करके वह भक्ति को प्राप्त नहीं करता है. दिखावे की भक्ति को प्राप्त करके वह अनेकों जन्मों तक यातनाएं सहन करता रहता है.  आडम्बर में पड़ा हुआ साधक विवेक का ध्यान नहीं रखता है की क्या लाभकारी है और क्या उसके लिए श्रेष्ठ नहीं है. सच्ची भक्ति तो हृदय से होनी होती है जिसमें बाह्य
आडम्बर का कोई स्थान नहीं होता है. यह पूर्ण रूप से आत्मिक होती है. समस्त कर्मकांड, धार्मिक तीर्थान्टन, मूर्तिपूजा आदि सभी व्यर्थ होते हैं, इनका कोई विशेष महत्त्व नहीं होता है. अतः साधक को इश्वर भक्ति में अपना पूर्ण चित्त लगाना चाहिए और हरी सुमिरन में अपना ध्यान लगाना चाहिए.
 
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