हम भी पाहन पूजते होते रन के रोझ मीनिंग
हम भी पाहन पूजते, होते रन के रोझ।
सतगुर की कृपा भई, डार्या सिर थैं बोझ॥
Hum Bhi Pahan Pujate, Hote Ran Ke Rojh,
Satgur Ki Kripa Bhai, Darya Sir The Bojh.
हम भी पाहन पूजते : जो हम भी पत्थर को पूजते.होते रन के रोझ : हम भी वन, जंगल के रोज होते.सतगुर की कृपा भई : सतगुरु की कृपा हो गई.डार्या सिर थैं बोझ : सर पर जो बोझ था उसे उन्होंने उतार दिया.हम भी : कबीर साहेब भी.पाहन : पत्त्थर.पूजते : पूजा करते, पत्थर की पूजा करते.होते : हो जाते.रन : वन, जंगल.रोझ : नीलगाय.सतगुर : गुरु.की कृपा : सतगुरु की कृपा, आशर्वाद.भई : हो गई.डार्या : दूर किया.सिर : सर.थैं : से.बोझ : सांसारिकता का बोझ. कबीर साहेब की वाणी है की हम पर यदि सतगुरु की कृपा नहीं होती तो हम भी पत्थर को पूजते रहते तो हम भी जंगली गाय की तरह से फिरते रहते. सतगुरु की कृपा हो गई है नहीं तो जीवन व्यर्थ ही गँवा देता. सतगुरु ने कृपा करके मेरे सर से व्यर्थ के आडम्बर का बोझ उतार दिया है. यह बोझ सांसारिक कर्मकांड का है और आडम्बर का है जो व्यक्ति अपने सर पर लिए फिरता है और सोचता है की उसे मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन यह संभव नहीं होता है. भक्ति आडम्बरों और कर्मकांड से पूर्ण रूप से व्यर्थ है, ऐसे ही पत्थर की मूर्ति की पूजा करना भी व्यर्थ ही है. भक्ति तो हृदय से इश्वर का सुमिरन करने पर ही प्राप्त हो सकती है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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