कबीर काजी स्वादि बसि मीनिंग Kabir Kaji Swadi Basi Meaning Kabir Dohe

कबीर काजी स्वादि बसि मीनिंग Kabir Kaji Swadi Basi Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

कबीर काजी स्वादि बसि, ब्रह्म हतै तब दोइ।
चढ़ि मसीति एकै कहै, दरि क्यूँ साचा होइ॥
Kabir Kaaji Swadi Basi, Bram Hate Tab Doi,
Chadhi Maseeti Eke Kahe, Dari Kyu Sancha Hoi.

कबीर काजी स्वादि बसि : कबीर साहेब के अनुसार काजी स्वाद के बस में आकर ब्रह्म के जीव की हत्या करता है.
ब्रह्म हतै तब दोइ : ऐसे में वह एक ब्रह्म की संतान को द्वेतभाव से देखता है.
चढ़ि मसीति एकै कहै : मस्जिद पर चढ़कर वह ब्रह्म के एक होने की घोषणा करता है.
दरि क्यूँ साचा होइ : ऐसे में वह इश्वर के दरबार में सच्चा कैसे हो सकता है.
काजी : काजी जो नमाज अदा करता है और धार्मिक होने का ढोंग रचता है.
स्वादि : स्वाद के कारण, (पशुओं को खाने के सन्दर्भ में)
बसि : परबस होकर, बस में आया जाना, के कारण.
ब्रह्म हतै : ब्रह्म के जीव की हत्या करता है,
तब दोइ : ऐसे में वह दोयम का भाव रखता है. इश्वर के जीवों में उसका भाव अलग होता है.
चढ़ि : चढ़कर.
मसीति : मस्जिद.
एकै कहै : एक कहता है.
दरि : दरबार.
क्यूँ : कैसे, किस तरह से.
साचा होइ : सच्चा हो सकता है.

कबीर साहेब की वाणी है की हम भक्ति में भी ढोंग करते हैं, पवित्र हृदय से इश्वर की भक्ति नहीं करते हैं. जैसे काजी अपने स्वाद के बस में होकर, स्वाद परबस होकर जीव हत्या करता है (खाने के लिए). इसके उपरान्त वह मस्जिद पर चढ़कर घोषणा करता है की सभी एक हैं, इश्वर एक है. जबकि ब्रह्म के अंश की हत्या करते हुए यह नहीं सोचता है की सभी जीव में जब उसी ब्रह्म का अंश है तो इनकी हत्या ब्रह्म हत्या ही हुई. ऐसे में वह इश्वर के दरबार में (जब व्यक्ति के कार्यों का हिसाब होता है) कैसे हम स्वंय को सच्चा साबित कर सकते हैं. प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब के इस विचार का बोध होता है जिसमें वे यह मानते हैं की इस श्रष्टि के सभी जीव एक ही हैं. सभी जीवों का मालिक एक ही है, हमें सभी जीवों पर दया भाव रखना चाहिए. सभी जीवों में मनुष्य को श्रेष्ठ माना गया है.  जीव हत्या को ब्रह्म हत्या के समान ही माना गया है.
 
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