मन मेवासी मूँड़ि ले केसौं मूड़े काँइ मीनिंग Man Mewasi Mudi Le Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe

मन मेवासी मूँड़ि ले केसौं मूड़े काँइ मीनिंग Man Mewasi Mudi Le Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

मन मेवासी मूँड़ि ले, केसौं मूड़े काँइ।
जे कुछ किया सु मन किया, केसौं कीया नाँहि॥
Man Mevasi Mudi Le, Kesa Mude Kaai,
Je Kuch Kiya Su Man Kiya, Keso Kiya Nahi

मन मेवासी मूँड़ि ले : मन रूपी अहंकारी को मूँड लो.
केसौं मूड़े काँइ : बालों को क्यों मूंडते हो.
जे कुछ किया सु मन किया : जो कुछ भी किया मन के वश में आकर किया.
केसौं कीया नाँहि : बालों ने तो किया नहीं.
मन : अन्तःकरण, मन.
मेवासी : घमंडी, दम्भी (गढ़पति, किलापती)
मूँड़ि ले : मन को साफ़ कर लो.
केसौं : बाल.
मूड़े : कटवाना.
काँइ : क्या (व्यर्थ ही)
जे कुछ किया सु : जो कुछ किया वह.
मन किया : मन के अनुसार ही किया.
केसौं : बाल.
कीया नाँहि : नहीं किया.

कबीर साहेब ने धार्मिक आडम्बर का खंडन करते हुए वाणी दी है की तुम व्यर्थ ही बालों के पिछे पड़े हुए हो. बालों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? जो भी अच्छा और बुरा  तुमने किया है वह तुम्हारे मन के अनुसार ही हुआ है इसलिए यदि साफ़ सफाई करनी ही है तो मन की करो जिसमें तमाम तरह के विषय विकार भरे हुए हैं. तमाम तरह के  विषय विकार, मोह और माया के प्रति आकर्षण इसी मन में भरा हुआ है. 
 
अतः यदि हम अपने मन को निर्मल कर ले तो अवश्य ही विषय विकार से छूट सकते हैं. मन को  किले का नायक कहा गया है क्योंकि यह शरीर वही कार्य करता है जो मन इससे करवाता है. विषय विकारों के प्रति आकर्षण भी मन में ही उत्पन्न होता है इसलिए मन को संयमित और नियंत्रित करना परम आवश्यक है.
 
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