नारि पराई आपणीं भुगत्या नरकहिं मीनिंग Naari Parayi Aapani Meaning Kabir Ke Dohe

नारि पराई आपणीं भुगत्या नरकहिं मीनिंग Naari Parayi Aapani Meaning Kabir Ke Dohe, Kabir Ke Dohe (Saakhi) Hindi Arth/Hindi Meaning Sahit (कबीर दास जी के दोहे सरल हिंदी मीनिंग/अर्थ में )

नारि पराई आपणीं, भुगत्या नरकहिं जाइ।
आगि आगि सब एक हैं, तामै हाथ न बाहि॥
Nari Parai Aapani, Bhugtya Naraki Jaai,
Aagi Aagi Sabaro Kahe, Tame Hath Na Bahi.

नारि पराई आपणीं : नारी भले ही वह अपनी हो या पराई हो.
भुगत्या नरकहिं जाइ : यदि कोई इसके संपर्क में रहता है तो अवश्य ही नरक में जाता है.
आगि आगि सब एक हैं  : आग तो आग होती है, सभी आग एक जैसी ही होती है.
तामै हाथ न बाहि : उसमें हाथ को जलाना नहीं चाहिए.
नारि : नारी.
पराई : पराई.
आपणीं : अपनी, स्वंय की.
भुगत्या : भोग करना, संपर्क में रहना.
नरकहिं : : नर्क,
जाइ : जायेगा.
आगि आगि : सभी अग्नि/आग.
सब एक हैं : एक ही हैं.
तामै : उसमें.
हाथ न बाहि : हाथ नहीं डालना चाहिए.

कबीर साहेब की वाणी है की समस्त प्रकार की अग्नि एक ही तरह की होती हैं, उसमें हाथ भूलकर भी नहीं डालना चाहिए. नारी भले ही अपनी हो या पराई हो, वह एक ही है और इसको भोगने वाला अवश्य ही नरक में जाता है. आग तो आग ही होती है, वैसे ही नारी भले ही अपनी हो या पराई भक्ति मार्ग में बाधक होती है. कबीर साहेब ने नारी को माया का ही रूप बताया है. नारी को साहेब ने नरक का द्वार कहा है. अग्नि में हाथ डालने से आशय है की तुम स्वंय का नुकसान मत करो. 

अतः साधक को चाहिए की वह भक्ति मार्ग पर यदि अग्रसर होना चाहता है तो उसे अवश्य ही नारी से संपर्क से दूर रहना चाहिए. नारी माया का ही एक रूप है जो साधक को विचलित करती है. 
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