चतुराई हरि नाँ मिले मीनिंग

चतुराई हरि नाँ मिले मीनिंग

चतुराई हरि नाँ मिले, ऐ बाताँ की बात।
एक निसप्रेही निरधार का, गाहक गोपीनाथ॥

Chaturai Hari Na Mile, Aie Bata Ki Baat,
Ek Nisprehi Nirdhaar Ka, Gahak Gopinath.
 
चतुराई हरि नाँ मिले मीनिंग Chaturayi Hari Na Mile Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe
चतुराई हरि नाँ मिले : चतुराई से हरी की प्राप्ति नहीं होती है.
ऐ बाताँ की बात : यह सौ बातों की एक बात है.
एक निसप्रेही निरधार का : इश्वर तो बिना किसी लगाव के, और निराधार के प्रति लगाव रखता है.
गाहक गोपीनाथ : इसके ग्राहक गोपीनाथ ही हैं.
चतुराई : यत्न करने से, युक्तिपूर्वक.
हरि : इश्वर.
नाँ मिले : नहीं मिलते हैं.
ऐ बाताँ की बात : सभी बातों का सार यही है, यह सो बातों की एक बात है.
एक निसप्रेही : बिना किसी विषय के प्रति लगाव के, बगैर किसी आशा के.
निरधार का : जो सांसारिक विषय से विरक्त है.
गाहक : ग्राहक, लगाव रखने वाला.
गोपीनाथ : इश्वर.
कबीर साहेब की वाणी है की किसी प्रकार की चतुराई करने से, यतन करने से इश्वर की प्राप्ति नहीं होने वाली है. इश्वर की प्राप्ति तो सहज है. हृदय से इश्वर की भक्ति करने पर स्वतः ही इश्वर भक्ति को महत्त्व देता है.
यह कोई बाह्य वस्तु नहीं अपितु आंतरिक है. किसी भी प्रकार के भौतिक जतन से भक्ति को प्राप्त नहीं किया जा सकता है, यही सो बातों की एक बात है. इश्वर तो ऐसे व्यक्ति से प्रेम स्थापित करता है जो बिना किसी आशा के और बिना किसी स्वार्थ के भक्ति करता है. सहज प्रेम से गोपीनाथ रिझते हैं. माया और भौतिक जगत से जिसका कोई लगाव नहीं है, उसे इश्वर अपना समझते हैं. निष्प्रह, निष्काम और निराश्रय को इश्वर अपनाते हैं. भाव है की इश्वर नाम सुमिरन ही मुक्ति का आधार है.
 
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