राजस्थानी मुहावरे कहावतें लोकोक्तियाँ हिंदी अर्थ सहित Rajasthani Muhavare with Hindi Meaning

राजस्थानी मुहावरे कहावतें लोकोक्तियाँ हिंदी अर्थ सहित Rajasthani Muhavare with Hindi Meaning Part 2

राजस्थान एक सांस्कृतिक विविधता वाला राज्य है ।यहां पहनावे के साथ-साथ भाषा में भी विविधता है।अंचल के अनुसार कई भाषाएं बोली जाती हैं, जिन्हें बोलियाँ कहते हैं जैसे हाड़ोती, ढूंढाड़ी, मेवाड़ी, मारवाड़ी और शेखावाटी। राजस्थानी भाषा में कई मुहावरे और लोकोक्तियां हैं जिनका गुढ़ अर्थ निकलता है। आज हम जानेंगे राजस्थान में प्रचलित मुहावरे (Famous Rajasthani Phrases/Muhavare)।
 
राजस्थानी मुहावरे कहावतें लोकोक्तियाँ हिंदी अर्थ सहित Rajasthani Muhavare with Hindi Meaning

मुहावरे क्या होते हैं (Rajasthani Muhavare)

मुहावरे एक वाक्य का अंश होता है जिसका अर्थ शाब्दिक ना होकर लाक्षणिक होता है। वाक्यांश का अलग अर्थ निकलता है जैसे नौ दो ग्यारह होना । यहां 9 और 2 का योग 11 होने से मतलब नहीं है यहां नौ दो ग्यारह होने का मतलब है भाग जाना। मुहावरे का अर्थ अलग निकलता है शब्दों के अनुसार नहीं ।

आइए जानते हैं राजस्थान में प्रचलित मुहावरे (Rajasthani Language Muhavare Prases/Rajasthani Language Idioms and Phrases)


अठे गुड़ गीलो कोनी : इस मुहावरे से तात्पर्य है हम मुर्ख नहीं हैं और हमें मूर्ख समझने की गलती मत करना । जहाँ पर कोई ढीला ढाला काम ना हों, जहाँ सभी चाक चौबंद होने पर इस मुहावरे का उपयोग किया जाता है।
उदाहरण : म्हे खेत बीजने से पहले, बाड़ लगा ली है, ढांढा कइया चरसी, अठे गुड़ गीलो कोणी।
असी रातां का असा ही तड़का : इस मुहावरे का अर्थ है जैसे कर्म करेंगे वैसा ही ही फल मिलेगा । यहां तात्पर्य बुरे कर्मों से हैं तो बुरे कर्मों का फल भी बुरा ही होता है यही इस मुहावरे का अर्थ है । भाव है की जैसे हम होते हैं वैसे ही लोग मिलते हैं।
ओस चाट्यां कसो पेट भरै : इस मुहावरे में यह दर्शाया गया है कि निरर्थक प्रयास नहीं करना चाहिए । निरर्थक प्रयास फलदाई नहीं होते हैं । जैसे ओस की बूंदों को पीने से पेट नहीं भरता वैसे ही निरर्थक प्रयासों से कार्य सफल नहीं होता है। यदि कोई ऐसा कार्य करता है जिसका कोई अर्थ नहीं है तो उस हेतु इस मुहावरे का उपयोग किया जाता है। बिना प्रयत्न किये काम नहीं बनता है।
ओसर चूकी डूमणी, गावै आल पाताल : इस मुहावरे से आशय है कि जब तक व्यक्ति का लक्ष्य सिद्ध नहीं हो, तब तक व्यक्ति सार्थक कार्य नहीं कर सकता है। अर्थात लक्ष्य से भटका हुआ व्यक्ति सफल कार्य नहीं कर सकता है। इस मुहावरे का हिंदी में अर्थ है की अवसर चुकने पर व्यक्ति व्यर्थ की बातें करता है।
अंटी में आणौ : किसी के जाल में फंसना। अर्थात किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में उलझ कर उसके झांसे में आना। इसे "आंटी में आणों" भी बोला जाता है। इसका अर्थ है की किसी को अपनी बातों में उलझा कर स्वंय का स्वार्थ सिद्ध करना। इसे दूसरे अर्थों में ऐसे भी कह सकते हैं की कोई Favourable Condition का आना। जैसे कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए जी जान से कोशिश करता है लेकिन उचित अवसर आने पर वह कार्य सिद्ध हो जाता है।
अकल भांग खाणी : मूर्खता का कार्य करना। भाव है की जान बूझ कर कोई ऐसा कार्य करना जो मूर्खतापूर्ण हो, हानिकारक हो। बुद्धि और विवेक का नष्ट हो जाना।
आँख चूकणी : ध्यान न देना और लापरवाह होना, ध्यान का भंग होना, ध्यान हटना।

अंधाधुंध की साहबी, घटाटोप को राज : नेतृत्व करने वाला ही विवेक हीन हो तो चारों ओर अंधकार छा जाता है अर्थात सही निर्णय नहीं हो पाता है। जब शाशक, राजा या घर आदि का मुखिया ही मुर्ख हो तो उससे सबंधित सभी कार्यों और निर्णयों में स्वतः ही विसंगतियां दिखने लगती हैं।
अक्कल बिना ऊँट उभाणा फिरै/अकल बिना ऊंट उभाणा फिरे : मूर्ख व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले पाते हैं और उपहास के पात्र बन जाते हैं । इस मुहावरे का भाव है की विवेकहीन व्यक्ति बुद्धि के अभाव में सदा ही विपत्तियों में घिरा रहता है।
आक में ईख, फोग में जीरो : बुरे गुणों के कुनबे (परिवार) में अच्छे गुणों वाले व्यक्ति ( सज्जन व्यक्ति) का जन्म होना। जब किसी गुणहीन व्यक्ति के पास कोई मूल्यवान वस्तु मिल जाए तो इस मुहावरे का उपयोग किया जाता है।
आँख्याँ देखी परसराम, कदे न झूठी होय : प्रत्यक्ष देखा हुआ अथार्त आंखों से देखा हुआ कभी झूठ नहीं हो सकता है। जो हमने आखों से देखा है, जो सिद्ध है वह कैसे झूठ हो सकता है।
अणी चूकी धार मारी : सावधानी हटते ही दुर्घटना घट जाती है । सावधानी हटी, दुर्घटना घटी के रूप में इसे हम समझ सकते हैं। किसी भी कार्य में पूर्ण सावधानी की आवश्यकता होती है।
अणदोखी नै दोख, बीनै गति न मोख : जो व्यक्ति निर्दोष व्यक्ति पर दोष लगाता है, उसे स्वर्ग नहीं मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं होती है। निर्दोष और कमजोर व्यक्ति पर जोर नहीं चलाना चाहिए।
अठे किसा काचर खाच है : इस मुहावरे का अर्थ है कि यहां बात नहीं बनने वाली है अर्थात यहां आपके दाल नहीं गलेगी, या बात नहीं बनेगी। भाव है की यहाँ पर प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा.
आप डुबंतो पांडियो ले डूब्यो जजमान : मुसीबत का मारा इंसान अपने आसपास के लोगों को भी मुसीबत में डाल देता है। जब किसी व्यक्ति की संगती से किसी साथ में रहने वाले का अहित हो, हानि हो तो इस मुहावरे का उपयोग होता है।
आप मर्‌याँ बिना सुरग कठै : अपना काम व्यक्ति को स्वयं ही करना होता है तभी वह कार्य सफल होता है दूसरों के करने से कार्य की सफलता के प्रति आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है।
आम के अणी नहीं, वैश्या के धणी नहीं : इस मुहावरे से आशय है जिसका कोई पता या ठिकाना नहीं हो । अणि से आशय किनारा है। इस मुहावरे का अर्थ है की कोई आगे और पीछे नहीं होना।
आम खाणा के पैड गिणना : इस मुहावरे से आशय है कि सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना और फालतू बातों पर गौर ना करना । इस मुहावरे का उपयोग लक्ष्य पर धान रखने के लिए होता है की क्या तुम्हे आम खाने हैं या गुठली को गिनना है, मतलब की अपने काम की बात पर नज़र रखो.
अम्बर पटकी धरती झेली : जिसकी सार संभाल करने वाला कोई ना हो। कोई ना हो जो उसकी जिम्मेदारी ले सकें अथार्त जिसके आगे पीछे कोई ना हो। जब किसी व्यक्ति की सहायता करने वाला कोई नहीं होता है, असहाय स्थिति, अकेलेपन की अवस्था की लिए इस मुहावरे का उपयोग होता है।
आला बंचै न आपसै, सूखा बंचै न कोई के बाप सैं : हस्त लेख स्पष्ट ना होना और जिसकी लिखावट पढ़ने योग्य ना हो। जब किसी की लिखावट समझने से परे हो, तब इस मुहावरे का उपयोग होता है।

अक्कल बड़ी के भैंस : बुद्धि बल से बड़ी होती हैं अर्थात व्यक्ति जो कार्य बल से नहीं कर सकता वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करके कर सकता है । शारीरिक बल से बड़ा बल बुद्धि का होता है।
अहारे ब्योहारे लज्जा ना कारे : आहार अर्थात भोजन करने में शर्म नहीं करनी चाहिए और व्यवहार में भी लज्जा नहीं होनी चाहिए । भोजन करते समय शर्म लाज नहीं करनी चाहिए, भर पेट खाना ग्रहण करना चाहिए।
अस्सी बरस पूरा हुया तो बी मन फेरां में रह्या : वृद्धावस्था आने पर भी वासना का नहीं जाना । इसका अर्थ होता है की व्यक्ति भले ही शरीर से बुध हो जाए लेकिन उसके मन में अभी जवानी के कार्यों में लगा रहता है। फेरा से आशय शादी के फेरों से हैं।
अल्ला अल्ला खैर सल्ला : शिष्टाचार के अलावा कुछ और ना करना, ना समझना आदि।
अरडावतां ऊँट लदै : किसी को जरुरत हो तो भी उसकी मदद न करना, ध्यान ना देना । ऊंट कराह रहा है फिर भी उस पर भार लादे जा रहे हैं। इस मुहावरे का उपयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति दुखी हो, कमजोर हो और फिर भी उस पर अन्य संकट आ पड़े।
अरजन जसा ही फरजन:इस मुहावरे का अर्थ है जैसा पिता वैसा ही पुत्र । जैसे गुण पिता में हो वैसे ही गुण पुत्र में हो तो कहा जाता है अरजन जसा ही फरजन ।
अभागियों टाबर त्युंहार नै रूसै : जो अभागे होते हैं वह अवसर प्राप्त होने पर भी अवसर को गंवा देते हैं ।
अनियूँ नाचै, अनियूँ कूदै, अनियूँ तोडै़ तान : जब पेट भरा हुआ हो और धन-धान्य की कमी ना हो तभी नाच गाना, त्योहार, सुंदर और रंग रंगीले वस्त्र और उत्सव मनाना याद रहता है।
अठे चाय जैंकी उठे बी चाय : इस मुहावरे का आशय है कि जो सज्जन व्यक्ति होते हैं सत्पुरुष होते हैं उनकी चाह हमेशा होती है, लेकिन सत्पुरुष दीर्घजीवी नहीं होते हैं।
अग्रे अग्रे ब्राह्मणा, नदी नाला बरजन्ते : इस मुहावरे से आशय है कि सभी कार्यों में तो ब्राह्मण आगे रहते हैं लेकिन जहां खतरे का आभास हो वहां मना कर देते हैं और हमेशा खतरे से दूर रहते हैं।
अक्कल कोई कै बाप की कौनी : इस मुहावरे से आशय है कि बुद्धि किसी की खानदानी विरासत नहीं होती है और कोई भी व्यक्ति बुद्धिमान हो सकता है।
अम्बर कै थेगली कौनी लागै : इस मुहावरे का अर्थ है फटे हुए आकाश को सीला नहीं जा सकता ।
अण मिले का सै जती हैं : इस मुहावरे का अर्थ है अन्न ना मिलने पर अर्थात भोग ना मिलने पर ब्रह्मचर्य का पालन स्वयं ही हो जाता है.
आंधी आई ही कोणी, सूंसाट पैली ही माचगो :इस मुहावरे का अर्थ है कार्य के होने से पहले ही प्रचार-प्रसार हो जाना और किसी कार्य के होने से पहले ही ढिंढोरा पीटना।
आंधो बाटै सीरणी, घरकां नै ही दे : अपना स्वार्थ सिद्ध करके अपने निजी व्यक्तियों को ही लाभ प्रदान करना।
आंख कान में चर आंगल को फरक है : इस मुहावरे का अर्थ है सत्य और झूठ में बहुत अंतर होता है। आंखों से देखा हुआ सत्य होता है और कानों से सुना हुआ झूठ भी हो सकता है।
आए लाडी आरो घालां, कह पूंछ ई आरै में तुड़ाई है: किसी योजना के बनने से पहले ही उस कार्य के लिए तैयारी करना ।
आसवाणी, भागवाणी : आश्विन माह की वर्षा भाग्यशाली लोगों के यहां होती है ।
आल पड़ै तो खेलूं मालूं, सूक पड़ै तो जाऊं: सुख समृद्धि के समय साथ में रहना तथा दुख और विपत्ति के समय साथ छोड़ जाना ही इस मुहावरे का अर्थ है।
आपकी छाय नै कोई खाटी कोणी बतावै : अपनी वस्तु और अपने लोगों को कोई बुरा नहीं बताता है । छाय से आशय दही से बनने वाली लस्सी से है.
आपकी मा ने डाकण कुण बतावै: अपने लोग बुरे हो तो भी उनको कोई बुरा नहीं बताता है और अपनी वस्तु को कोई बुरा नहीं कहता है।
आपके लागै हीक में, दूसरो के लागे भीत में : दूसरों के प्रति कोई सहानुभूति का ना होना।
आपको कोढ़ सांमर सांमर ओढ़ : अपने कर्म का फल खुद को ही भोगना पड़ता है।
आपको टको टको दूसरै को टको टकुलड़ी: अपनी वस्तु को बढ़ा चढ़ा कर बताना और दूसरों की वस्तु को तुच्छ समझना।
आपको बिगाड्यां बिना दूसरां को कोनी सुधरै : दूसरों का भला करने के लिए, परोपकार करने के लिए निजी स्वार्थों से ऊपर उठ ना पड़ता है।

आ बलद मनै मार : जानबूझकर विपत्ति को न्यौता देना। हिंदी के मुहावरे "आ बैल मुझे मार" की भाँती इसका अर्थ है की मुसीबतों को स्वंय आमंत्रित करना।
आम खाणा क पेड़ गिणना : मनुष्य को अपने काम से मतलब रखना चाहिए। इस दोहे का शाब्दिक अर्थ है की हमें आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं।
आम नींबू बाणियो, कंठ भींच्यां जाणियो : आम, नींबू और बनिया, इनको दबाने से ही रस निकलता है। बनिया (व्यापारी) आदि से विनम्रता से कार्य नहीं बनता है।
आम फलै नीचो नवै, अरंड आकासां जाय: सज्जन जब बड़ा बनता है तो नम्र होता है जबकि दुर्जन इतराता है। दोहे का अर्थ है की गुणवान व्यक्ति सदा ही विनम्र होता है और दुष्ट व्यक्ति रुखा होता है। आम के जब पहल लगते हैं तो वह निचे की और झुकता है और अरंड के जब पहल लगते हैं तो वह ऊपर की और बढ़ता है।
आया की समाई पण गया की समाई कोनी: मनुष्य लाभ तो बर्दाश्त कर सकता है पर हानि नहीं। व्यक्ति सदा ही लाभ की कामना में व्यस्त रहता है।
आयो रात, गयो परभात : बिना रुके तुरंत चले जाना, झटपट किसी कार्य का पूर्ण हो जाना।
आ रै मेरा सम्पटपाट! मैं तनै चाटूं, तू मनै चाट: दो निकम्मे व्यक्तियों का एकसाथ होना।
आंख फडूकै दहणी, लात घमूका सहणी: स्त्री की दाहिनी आँख फड़कने पर कोई संकट सहना पड़ता है। किसी अशुभ घटना का पूर्वाभाष हो जाना।
अंधा की माखी राम उड़ावै: असहाय और कमजोर व्यक्ति का साथ भगवान स्वयं देता है।
अक्कल उधारी कोनी मिलै: इस मुहावरे का अर्थ है कि बुद्धि को किसी से उधार नहीं लिया जा सकता है।
अगस्त ऊगा, मेह पूगा : इस मुहावरे से आशय है अगस्त माह शुरू होते ही वर्षा पहुँच जाती है |
अणमांग्या मोती मिलै, मांगी मिलै न भीख: बिना मांगे कीमती चीज मिल जाती है पर मांगने पर भीख भी नहीं मिलती है।
अत पितवालो आदमी, सोए निद्रा घोर। अण पढ़िया आतम कही, मेघ आवै अति घोर :
अधिक पित्त प्रकृति का व्यक्ति यदि दिन में अधिक सोए तो यह भारी वर्षा का सूचक है।
अदपढ़ी विद्या धुवै चिन्त्या धुवे सरीर: इस मुहावरे से आशय है अधूरे ज्ञान से चिंता बढ़ती है और चिंता से शरीर कमजोर होता है।
अनहोणी होणी नहीं, होणी होय सो होय: इससे आशय हैं जो नहीं होना है वह कभी नहीं होगा और जो होना है वह होकर ही रहेगा, हम उसे टाल नहीं सकते हैं ।
अम्बर कै थेगळी कोनी लागै : इस मुहावरे से आशय है कि आसमान को सिला नहीं जा सकता, थेगली-पैच लगाना, कारी कुटका लगाना। इस मुहावरे का उपयोग असम्भव कार्य के नहीं होने के लिए किया जाता है।
अम्बर राच्यो, मेह माच्यो: इसका आशय यह है कि आसमान का रंग लाल हो तो यह अनुमान लगाया जाता है कि बरसात आएगी।
अम्मर को तारो हाथ सै कोनी टूटै : इससे आशय है कि थोड़े से प्रयास से बहुत बड़ा कार्य सफल नहीं हो सकता जैसे आकाश का तारा हाथ से नहीं टूट सकता। इस मुहावरे का उपयोग कठोर मेहनत करने के लिए प्रेरित करने के लिए किया जाता है।
अम्मर पीळो में सीळो : आसमान में पीला रंग हो तो यह वर्षा होने का सूचक है । भाव है की किसी कार्य के होने पर सकेतों का प्राप्त होना।
असो भगवान्यू भोळो कोनी जको भूखो भैसां में जाय : इसका आशय यह है कि ऐसा कोई मूर्ख ही होगा जिसे किसी प्रतिफल की आशा ना हो। शाब्दिक अर्थ है भगवान् ऐसा भोला नहीं है जो भूखा (बिना भोजन) के ही भैसों का कार्य करने को जाए। भाव है की स्वंय की स्थिति अनुकूल होने पर ही कोई कार्य होता है।
आँ तिलां मैँ तेल कोनी : किसी कार्य विशेष में लाभ या मनवांछित फल का ना होना। शाब्दिक अर्थ है की इन तिलों में तेल नहीं है भले ही इनको कितना भी घाणी में चलाया जाए। यदि हम कोई कार्य करें और उसमें हमें लगे की कोई फायदा नहीं होने वाला है तो हम उस काम को छोड़ देंगे और कहेंगे की इन तिलों में तेल नहीं है। 


आँख मीच्यां अंधेरो होय : स्वंय के द्वारा कोई कार्य करने पर उसके परिणाम को प्राप्त होना।
आँखन, कान, मोती, करम, ढोल, बोल अर नार। अ तो फूट्या ना भला, ढाल, ताल, तलवार॥ : आखें, कान, मोती, भाग्य, ढोलक, बोली और नारी के साथ ढाल ताल और तलवार आदि टूटी फूटी नहीं होनी चाहिए।
आंधा में काणों राव: कम गुणवान लोगों के बीच में थोड़ा गुणवान व्यक्ति ही राजा होता है ।
आगे थारो पीछे म्हारो: इससे आशय है जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा।
आज मरयो दिन दूसरो : जो घटित होना होता है वह हो गया है।
आज हमां और काल थमां: इससे आशय है कि जो वर्तमान में हम झेल रहे हैं वह भविष्य में तुम्हें भी झेलना होगा। शाब्दिक अर्थ है की आज हमें तो कल तुम्हें, समय चलायमान है, सभी की बारी आती है।
आडा आया माँ का जाया : इससे आशय है कि विपत्ति के समय अपने ही सगे संबंधी और भाई साथ देते हैं। विपरीत समय में अपने ही साथ देते हैं। आड़े-साथ देना, जाया- सगे (भाई)
आड़ू चाल्या हाट, न ताखड़ी न बाट : जो व्यक्ति बुद्धि से काम नहीं लेता है, गंवार है वह हमेशा ही उलटे काम करता है। इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है की गंवार व्यक्ति दूकान करने के लिए चलता है लेकिन अपने साथ तराजू और बाट नहीं रखता है।
आदै थाणी न्याय होय : समय पर न्याय अवश्य होता है।
आप कमाडा कामडा, दई न दीजे दोस : स्वंय के कर्मों के फल स्वंय को ही भोगने पड़ते हैं, दूसरों को दोष नहीं देना चाहिए।
आप गुरुजी कातरा मारै, चेला नै परमोद सिखावै: स्वयं कार्य ना करके दूसरों को कार्य करने का महज उपदेश देना। इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है की गुरूजी कुछ नहीं कर रहे हैं, बैठे बैठे कातरा (रजाई, ऊनि वस्त्रों में लगने वाला कीट) मार रहे हैं और शिष्य को ज्ञान बाँट रहे हैं की उसे मेहनत करनी चाहिए।
आषाढ़ की पूनम, निरमल उगै चंद। कोई सिँध कोई मालवे जायां कट सी फंद। : आषाढ़ की पूर्णिमा के चाँद के साथ बादल न होने पर अकाल की शंका व्यक्त की जाती है।
इब ताणी तो बेटी बाप कै ही है : इसका अर्थ है अभी तक तो सब ठीक ही है या ठीक किया जा सकता है। मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है "अभी तक स्थिति नियंत्रण में है" मतलब की अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, बात/कार्य को सुधारा जा सकता है।
इसे परथावां का इसा ही गीत: जैसा प्रदेश, स्थितियां वैसा ही राग। इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है की जैसा विवाह होता है वैसे ही गीत होते हैं। यानी की जैसा देस वैसा भेष।
ई की मा तो ई नै ही जायो: इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ ही की "इसकी माँ ने तो इसे ही जन्म दिया है" मतलब की इसके जैसा कोई अन्य नहीं है। मुहावरे का उपयोग सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही रूपों में होता है। जैसे की कोई यदि अत्यंत ही वीर पुरुष है तो हम कहेंगे की इसकी माँ ने तो बस इसे ही जन्म दिया है, इसके जैसा कोई अन्य दूसरा नहीं हो सकता है।
उठै का मुरदा उठै बलेगा, अठे का अठे: जैसी रीत चली आ रही है, अब भी वैसा ही होगा। कोई नया काम नहीं होगा। शाब्दिक अर्थ है की वहां के मुर्दे वहीँ जलेंगे और यहाँ के यहीं।
उत्तर पातर, मैं मियां तू चाकर : जब किसी व्यक्ति का ऋण या कर्ज चुक जाता है तो वह स्वंय में संतोष करता है। संतोष के भाव के लिए इस मुहावरे का उपयोग किया जाता है। उत्तर पातर- बराबर होना, हिसाब चुकता होना। मिया :साहूकार।
उल्टो पाणी चीलां चढ़ै : जब कोई कार्य अपने स्वभाव के विरुद्ध हो, कुछ अटपटा हो। जब कोई कार्य बिगड़ रहा हो तो इस मुहावरे का उपयोग होता है। चीला से आशय आकाश से है।पानी का आकाश की तरफ चढ़ना स्वभाव के विरुद्ध है यथा हम कह सकते हैं की उलटी गंगा का बहना।
ऊंट मिठाई इस्तरी, सोनो गहणो शाह। पांच चीज पिरथी सिरै, वाह बीकाणा वाह:
प्रस्तुत पंक्तियों से आशय है की बीकानेर में पांच वस्तुएं प्रसिद्द हैं यथा ऊंट, मिठाई, स्त्री, सोने के गहने, राजा आदि। बीकानेर शहर रेगिस्तानी जहाज ऊंठ ,मिठाई ,स्त्री ,सोना गहना और साहूकारों के लिए प्रसिद्द है। ऊंठ मिठाई इस्त्री सोनो गेणो साह पांच चीज पिरथी सिरै वाह बीकाणा वाह।
पन्द्रह सौ पैंताळवे, सुद बैसाख सुमेर
थावर बीज थरपियो, बीके बीकानेर
जळ ऊंडा, थळ ऊजळा, पातां मैंगल पेस
बळिहारी उण देस री, रायसिंघ नरेस
एक हाथ में घोड़ो एक में गधो है: जब भली बात और बुरी बात एक साथ घटित हो जाए,अच्छाई और बुराई का एक साथ होना।
ऐ बाई नै घर घणा: योग्य व्यक्ति को किसी स्थान विशेष और परिस्थिति विशेष का मोहताज नहीं होना पड़ता है, उसे अपनी योग्यता के अनुरूप स्थान प्राप्त हो ही जाता है। ए बाई- यह लड़की, घर घणा -कई रिश्ते। यानी की यदि लड़की योग्य है, गुणवान है तो उसे रिश्तों की कोई कमी नहीं है, उसे अनेकों घर मिल जाएंगे।
ओ ही काल को पड़बो, ओ ही बाप को मरबो: सभी परेशानियों का एक साथ आना। काल पड़ना से आशय है फसल का ना होना, खेत में कोई फसल नहीं होना। बाप मरने से आशय है की सर से पिता का साया उठ जाना। जब के साथ कई मुश्किलें आ जाएं तो इस मुहावरे का उपयोग किया जाता है।
ओछा की प्रीत कटारी को मरबो: निकृष्ट का साथ तथा कटारी (खंजर) से मरना दोनों ही एक समान हैं। ओछा व्यक्ति से आशय कपटी से है। मरबो-मरना।

ओसर चूक्यां नै मौसर नहीं मिलै: अवसर प्रधान होता है, एक बार यदि अवसर चूक जाए, हाथों से निकल जाए तो फिर दुबारा मौका नहीं मिलता है। ओसर से आशय अवसर से है।

 

   


 

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