प्रभु मैं पूछ रहा एक बात भजन
प्रभु मैं पूछ रहा एक बात भजन
प्रभु, मैं पूछ रहा एक बात,
बैठा है तू सबके अंदर, फिर क्यों पाप होइ जात।
प्रभु, मैं...
गजब तमाशा नित्य करे तू, दिन करता फिर रात,
एक ही साँचे में सब ढलते, फिर क्यों भेद दिखात।
प्रभु, मैं...
जहाँ पाप तहाँ पुण्य बसा है, जहाँ पुण्य तहाँ पाप,
दीपक ऊपर करे रोशनी, नीचे अन्ध समात।
प्रभु, मैं...
फूल बनाया, शूल बनाया, विस्तृत सागर शान्त,
संचालक नाटक का नटवर, फिर विचलित क्यों कान्त।
प्रभु, मैं...
बैठा है तू सबके अंदर, फिर क्यों पाप होइ जात।
प्रभु, मैं...
गजब तमाशा नित्य करे तू, दिन करता फिर रात,
एक ही साँचे में सब ढलते, फिर क्यों भेद दिखात।
प्रभु, मैं...
जहाँ पाप तहाँ पुण्य बसा है, जहाँ पुण्य तहाँ पाप,
दीपक ऊपर करे रोशनी, नीचे अन्ध समात।
प्रभु, मैं...
फूल बनाया, शूल बनाया, विस्तृत सागर शान्त,
संचालक नाटक का नटवर, फिर विचलित क्यों कान्त।
प्रभु, मैं...
अद्भुत भजन : प्रभु मैं पूछ रहा एक बात/रचना : प• पू• श्री श्रीकान्त दास जी महाराज ।स्वर : प्रवीण जी ।
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Admin - Saroj Jangir
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