कैसे ना इठलाऊं मैं बरसाना मिला है
कैसे ना इठलाऊं मैं बरसाना मिला है
(मुखड़ा)
कैसे ना इठलाऊं मैं,
बरसाना मिला है,
बरसाना मिला है,
रह जाना मिला है,
जीना मिला है,
मर जाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(अंतरा 1)
देखे, अपनी पायल का घुंघरू बना लो मुझे।
(अंतरा 2)
जप तप साधन के बस की नहीं है,
केवल किशोरी जी की करुणा भई है,
रोम रोम ये खिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(अंतरा 3)
सोचने से पहले होता प्रबंध है,
कैसे बताऊं आनंद ही आनंद है,
शिकवा ना कोई गिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(अंतरा 4)
ब्रजवासियों के टुकड़ों पे पले हरिदासी,
संतों के पीछे पीछे चले हरिदासी,
जीवन का यही सिलसिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(पुनरावृत्ति)
कैसे ना इठलाऊं मैं,
बरसाना मिला है,
बरसाना मिला है,
रह जाना मिला है,
जीना मिला है,
मर जाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
कैसे ना इठलाऊं मैं,
बरसाना मिला है,
बरसाना मिला है,
रह जाना मिला है,
जीना मिला है,
मर जाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(अंतरा 1)
देखे, अपनी पायल का घुंघरू बना लो मुझे।
(अंतरा 2)
जप तप साधन के बस की नहीं है,
केवल किशोरी जी की करुणा भई है,
रोम रोम ये खिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(अंतरा 3)
सोचने से पहले होता प्रबंध है,
कैसे बताऊं आनंद ही आनंद है,
शिकवा ना कोई गिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(अंतरा 4)
ब्रजवासियों के टुकड़ों पे पले हरिदासी,
संतों के पीछे पीछे चले हरिदासी,
जीवन का यही सिलसिला है,
बरसाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
(पुनरावृत्ति)
कैसे ना इठलाऊं मैं,
बरसाना मिला है,
बरसाना मिला है,
रह जाना मिला है,
जीना मिला है,
मर जाना मिला है,
कैसे ना इतराऊं मैं,
बरसाना मिला है।।
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हृदय एक अवर्णनीय आनंद में डूब जाता है, मानो उसे कोई दैवीय खजाना मिल गया हो, जो जीवन के प्रत्येक क्षण को रूपांतरित कर देता है। बरसाना की पवित्र भूमि, जो अनंत प्रेम और कृपा का केंद्र है, के साथ यह दिव्य संबंध आत्मा को पूर्णता की अनुभूति से भर देता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो जीवन का अर्थ ही नवीन रूप में परिभाषित हो गया हो, जहाँ हर साँस, हर कदम और हर धड़कन एक आलौकिक लय के साथ संनादति है। आत्मा, जो अब भक्ति के प्रतीकात्मक पायल से सुशोभित है, ईश्वर की उपस्थिति में नृत्य करती है, प्रेम, विनम्रता और समर्पण का एक साधन बनकर। यह अवस्था केवल क्षणिक भावना नहीं, बल्कि एक गहन अनुभूति है कि जीवन का सच्चा उद्देश्य इस दैवीय मिलन में निहित है, जहाँ जीना और इस संसार से विदा होना, दोनों ही एक समान आनंदमयी प्रकाश में नहाए हुए हैं।
☛ Video Name: कैसे ना इठलाऊं मैं बरसाना मिला है
☛ Singer Name: बृज रस अनुरागी पूनम दीदी (Sadhvi Purnima Ji)
☛ Singer Name: बृज रस अनुरागी पूनम दीदी (Sadhvi Purnima Ji)
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Author - Saroj Jangir
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