जीवन दीप जले,
जीवन दीप जले,
ऐसा सब जग को ज्योति मिले,
जीवन दीप जले।
इसी सत्य पर रामचन्द्र ने,
राजपाट सब त्याग दिया,
छोड़ अवध माया की नगर,
कानन को प्रस्थान किया,
सुख वैभव को लात मारकर,
कष्टों का सहवास किया,
षट्रस व्यंजन त्याग,
जंगली फल खाये सर नीर पिया,
स्वयं कंटकों को चूमा,
औरों के कंटक दूर किये,
जन्म सफल है उस मानव का,
जो परहित ही सदा जिये,
तृषितों को सुरसरि देने जो,
हिमगिरि सा चुपचाप गले,
जीवन दीप जले।
रसिक शिरोमणि कृष्णचन्द्र ने,
वृन्दावन को बिसराया,
छोड़ बिलखते ग्वाल बाल,
वह निर्मोही भी कहलाया,
किन्तु लोक कल्याण मार्ग ही,
केवल उसने अपनाया,
वही गोपियों का नटवर,
फिर योगिराज कहलाया,
गीता की हर पंक्ति पंक्ति में,
अर्जुन को वे समझाते,
आगे बढ़ नरसिंह जगत के,
झूठे सब रिश्ते नाते,
अति विस्तृत कर्त्तव्य मार्ग है,
हर मानव इस ओर चले,
जीवन दीप जले।
सत्य ढूँढ़ने वन वन भटके, l
बुध्ददेव बन संन्यासी,
छोड़ भवन परिवार बना,
युवराज जंगलों का वासी,
विष्णुगुप्त ने निज प्रतिभा से,
भारत भाग्य जगाया था,
किन्तु कभी क्या उस योगी को,
शासन लोभ सताया था,
वीर प्रताप शिवा वैरागी,
सबके हैं संदेश यही,
मातृभूमि हित जो मरता है,
माँ का सच्चा पूत वही,
वही सुमन सुरभित हो खिलते,
जो काँटों के बीच पले,
जीवन दीप जले।
सत्य सृष्टि करने केशव थे,
नगर ग्राम घर घर फिरते,
संघ मंत्र में हिन्दुराष्ट्र की,
प्रतिमा वे देते चलते,
निज जीवन सर्वग्य लगा वे,
मूक वेदना छोड गये,
हिन्द राष्ट्र के भव्य भवन का,
स्वप्न अधूरा छोड़ गये,
हृदय हृदय में अग्नि बसी जो,
दावानल सम प्रगटायें,
उस दधीचि का ध्येय पूर्णकर,
दिव्य शक्ति बन छा जायें,
धन्य द्येयवादी जीवन वे,
केशव व्रत जो लिये चले,
जीवन दीप जले।
जीवन दीप जले,
जीवन दीप जले,
ऐसा सब जग को ज्योति मिले,
जीवन दीप जले।
जीवन दीप जले,
ऐसा सब जग को ज्योति मिले,
जीवन दीप जले।
इसी सत्य पर रामचन्द्र ने,
राजपाट सब त्याग दिया,
छोड़ अवध माया की नगर,
कानन को प्रस्थान किया,
सुख वैभव को लात मारकर,
कष्टों का सहवास किया,
षट्रस व्यंजन त्याग,
जंगली फल खाये सर नीर पिया,
स्वयं कंटकों को चूमा,
औरों के कंटक दूर किये,
जन्म सफल है उस मानव का,
जो परहित ही सदा जिये,
तृषितों को सुरसरि देने जो,
हिमगिरि सा चुपचाप गले,
जीवन दीप जले।
रसिक शिरोमणि कृष्णचन्द्र ने,
वृन्दावन को बिसराया,
छोड़ बिलखते ग्वाल बाल,
वह निर्मोही भी कहलाया,
किन्तु लोक कल्याण मार्ग ही,
केवल उसने अपनाया,
वही गोपियों का नटवर,
फिर योगिराज कहलाया,
गीता की हर पंक्ति पंक्ति में,
अर्जुन को वे समझाते,
आगे बढ़ नरसिंह जगत के,
झूठे सब रिश्ते नाते,
अति विस्तृत कर्त्तव्य मार्ग है,
हर मानव इस ओर चले,
जीवन दीप जले।
सत्य ढूँढ़ने वन वन भटके, l
बुध्ददेव बन संन्यासी,
छोड़ भवन परिवार बना,
युवराज जंगलों का वासी,
विष्णुगुप्त ने निज प्रतिभा से,
भारत भाग्य जगाया था,
किन्तु कभी क्या उस योगी को,
शासन लोभ सताया था,
वीर प्रताप शिवा वैरागी,
सबके हैं संदेश यही,
मातृभूमि हित जो मरता है,
माँ का सच्चा पूत वही,
वही सुमन सुरभित हो खिलते,
जो काँटों के बीच पले,
जीवन दीप जले।
सत्य सृष्टि करने केशव थे,
नगर ग्राम घर घर फिरते,
संघ मंत्र में हिन्दुराष्ट्र की,
प्रतिमा वे देते चलते,
निज जीवन सर्वग्य लगा वे,
मूक वेदना छोड गये,
हिन्द राष्ट्र के भव्य भवन का,
स्वप्न अधूरा छोड़ गये,
हृदय हृदय में अग्नि बसी जो,
दावानल सम प्रगटायें,
उस दधीचि का ध्येय पूर्णकर,
दिव्य शक्ति बन छा जायें,
धन्य द्येयवादी जीवन वे,
केशव व्रत जो लिये चले,
जीवन दीप जले।
जीवन दीप जले,
जीवन दीप जले,
ऐसा सब जग को ज्योति मिले,
जीवन दीप जले।
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