साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला,
काशी को छोड़ के शिव ने शिर्डी में डेरा डाला रे,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
त्याग, दया, त्रिशूल, कमंडल, हाथ में छड़ी उठा ली,
ना जाने क्या सोच के झोली कंधे पे लटका ली,
गंगा में विसर्जित कर दी शिव ने सर्पों की माला रे,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
शिव हैं साईं, साईं शिव हैं, बात नहीं ये झूठी हो,
भस्म है ये भोले शंकर की, कहते हैं जिसको विभूती,
जो माँगो गे दे देंगे, है शिव सा भोला भाला,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
साईं तपस्वी, साईं योगी, साईं हैं सन्यासी,
घर-घर में है वासा उसी का, वो है घट-घट वासी,
शिव शंभू-शंभू जप ले या जप साईं की माला रे,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
काशी को छोड़ के शिव ने शिर्डी में डेरा डाला रे,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
त्याग, दया, त्रिशूल, कमंडल, हाथ में छड़ी उठा ली,
ना जाने क्या सोच के झोली कंधे पे लटका ली,
गंगा में विसर्जित कर दी शिव ने सर्पों की माला रे,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
शिव हैं साईं, साईं शिव हैं, बात नहीं ये झूठी हो,
भस्म है ये भोले शंकर की, कहते हैं जिसको विभूती,
जो माँगो गे दे देंगे, है शिव सा भोला भाला,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
साईं तपस्वी, साईं योगी, साईं हैं सन्यासी,
घर-घर में है वासा उसी का, वो है घट-घट वासी,
शिव शंभू-शंभू जप ले या जप साईं की माला रे,
साईं का रूप बनाके आया रे डमरू वाला।।
Sai Ka Roop Banake by Hamsar Hayat
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T-Series presents this Video CD Aaya Re Shirdiwala in a golden and divine voice of Hamsar Hayat Nizami and Friends. You can call him for programme. Bookings at +91 98103-29249.
साईं बाबा को शिव का अवतार मानने की भावना भक्तों के मन में गहराई से बसी है, क्योंकि उनकी जीवनशैली, त्याग, दया और फकीरी में वही भोलेनाथ की झलक मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे शिव ने काशी छोड़कर शिरडी में साईं का रूप धारण कर लिया हो—त्रिशूल और कमंडल की जगह झोली और छड़ी, भस्म की जगह ऊदी, और सर्पमाला की जगह साधारण फकीरी वेश। साईं बाबा ने सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के लोगों को अपनाया और अपने सहज, सरल स्वभाव से सबका कल्याण किया। वे तपस्वी, योगी और सन्यासी की तरह जीवन जीते हुए हर घर-घर में, हर दिल में बसे, और उनके भक्त उन्हें शिव और साईं दोनों का स्वरूप मानते हैं। साईं बाबा की भक्ति में वही भोलेपन, वही उदारता और वही करुणा है, जो शिव में मानी जाती है—इसलिए भक्त चाहे “शिव शंकर” जपे या “साईं” की माला फेरे, दोनों ही रूपों में उसे वही दिव्य अनुभव और कृपा प्राप्त होती है।
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Author - Saroj Jangir
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