
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
नहाए धोए क्या भया मीनिंग अर्थ भावार्थ हिंदी Nahaye Dhoye Kya Bhaya Hindi Meaning
कबीर के दोहे का भावार्थ/हिंदी मीनिंग/अर्थ
इस दोहे का मूल भाव है की शारीरिक शुद्धता के स्थान पर हमें मानसिक/आत्मिक शुद्धता के प्रति चिंतन करना चाहिये, ध्यान देना चाहिए। नहाने धोने से क्या होने वाला है, इससे मन का मैल तो दूर नहीं होता है। पानी से नहाने पर मन का मैल दूर नहीं होता है। उदाहरण देकर कबीर साहेब कहते हैं की मछली तो सदा ही जल के मध्य में रहती है लेकिन उसकी बदबू (बू) पानी से दूर नहीं होती है। पवित्र नदियों में शारीरिक मैल धो लेने से कल्याण नहीं हो सकता है। इसके लिए भक्ति-साधना से मन का मैल दूर करना होगा । जैसे मछली हमेशा जल में रहती है, लेकिन इतना धुलकर भी उसकी दुर्गंध समाप्त नहीं होती वैसे ही हम नहाकर शरीर की गन्दगी को तो दूर कर लेते हैं लेकिन स्वंय को आत्मिक रूप से शुद्ध नहीं कर पाते हैं।
![]() |
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |