सत्संगति है सूप ज्यों त्यागै फटकि असार मीनिंग Satsangati Hai Sup Jyo Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth / Bhavarth
सत्संगति है सूप ज्यों, त्यागै फटकि असार |
कहैं कबीर गुरु नाम ले, परसै नहीं विकार ||
Satsangti Hai Sup Jyo, Tyage Fataki Asar,
Kahe Kabir Guru Naam Le, Parase Nahi Vikar.
कबीर के दोहे का हिंदी अर्थ/भावार्थ (Kabir Doha Hindi Meaning)
सत्संग के विषय में कबीर साहेब कहते हैं की सत्संग तो सूप के सामान है जो फटकार भी असर का त्याग कर देती है. ऐसे ही गुरु से ज्ञान लेने पर विकार, अवगुण व्यक्ति से दूर होते हैं. असार से आशय विकारों से है, अतः कबीर साहेब कहते हैं की सत्संग व्यक्ति के अवगुणों को दूर करता है, अतः गुरु के शरण में रहकर उनका ज्ञान ग्रहण करना चाहिए.
कबीर साहेब के अनुसार, सत्संग का महत्व बहुत अधिक है। सत्संग में, ईश्वर के भक्त, ज्ञानी, संत और महात्मा मिलते हैं और धर्म, दर्शन, अध्यात्म और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करते हैं। इस चर्चा से, मनुष्य को ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है। वह अपने जीवन में उचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। कबीर साहेब कहते हैं कि सत्संग से मनुष्य असार को त्याग देता है। असार का अर्थ है, जो नष्ट होने वाला है। मनुष्य के भीतर कई अवगुण होते हैं, जो उसे नष्ट कर सकते हैं। जैसे- क्रोध, अहंकार, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि। सत्संग से इन अवगुणों का नाश होता है और मनुष्य का जीवन सुखमय हो जाता है। अतः, कबीर साहेब का यह कथन पूर्णतः सत्य है कि सत्संग व्यक्ति के अवगुणों को दूर करता है। अतः, सभी को सत्संग में जाना चाहिए और गुरु से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।