श्री कृष्ण के रहस्य जो आप नहीं जानते हैं Shri Krishna secrete that you do not know
आज के लेख में हम भगवान श्री कृष्ण से जुड़े कुछ रहस्य के बारे में जानेंगे जिन पर आप सभी के मन में प्रश्न जरूर रहे होंगे।
किस रंग के थे श्रीकृष्ण, श्री कृष्ण जी का रंग कैसा था ?
श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग एक रहस्य है जिस पर सदियों से बहस होती रही है. कुछ लोग मानते हैं कि वह काले थे, जबकि अन्य का मानना है कि वह नीले थे. कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि वह एक मिश्रित रंग थे, जैसे कि मेघ श्यामल. वेदों में भगवान कृष्ण का वर्णन "श्याम" या "श्याम" के रूप में किया गया है, जिसका अर्थ है "काला" या "गहरा नीला". उल्लेखनीय है की ओडिशा में पारंपरिक पट्टा चित्रों में भी भगवान कृष्ण और विष्णु को हमेशा सांवले रंग का दिखाया गया है. इस वजह से उन्हें सांवला सुंदर, सांवला गिरधारी का नाम दिया गया है.
श्रीकृष्ण की त्वचा के रंग के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, क्योंकि वे एक पौराणिक पात्र हैं. हालांकि, कुछ प्राचीन ग्रंथों में उनकी त्वचा के रंग का उल्लेख है. उदाहरण के लिए, महाभारत में कहा गया है कि श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग "मेघ श्यामल" था, जिसका अर्थ है "मेघ के समान नीला".
कुछ लोग मानते हैं कि श्रीकृष्ण का रंग काला था क्योंकि वे भारत के उत्तरी भाग में पैदा हुए थे, जहां लोगों की त्वचा का रंग आमतौर पर काला होता है. हालांकि, यह भी संभव है कि श्रीकृष्ण का रंग नीला था क्योंकि वे भगवान विष्णु के अवतार थे, जिन्हें अक्सर नीले रंग में चित्रित किया जाता है.
श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग "मेघ श्यामल" था, जिसका अर्थ है "मेघ के समान नीला". मेघ आमतौर पर एक मिश्रित रंग होते हैं, जिसमें नीले, काले और सफेद रंगों का मिश्रण होता है. इसलिए, यह संभव है कि श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग भी एक मिश्रित रंग था.
कुछ लोग मानते हैं कि श्रीकृष्ण का रंग काला था क्योंकि वे भारत के उत्तरी भाग में पैदा हुए थे, जहां लोगों की त्वचा का रंग आमतौर पर काला होता है. हालांकि, यह भी संभव है कि श्रीकृष्ण का रंग नीला था क्योंकि वे भगवान विष्णु के अवतार थे, जिन्हें अक्सर नीले रंग में चित्रित किया जाता है.
श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग "मेघ श्यामल" था, जिसका अर्थ है "मेघ के समान नीला". मेघ आमतौर पर एक मिश्रित रंग होते हैं, जिसमें नीले, काले और सफेद रंगों का मिश्रण होता है. इसलिए, यह संभव है कि श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग भी एक मिश्रित रंग था.
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श्रीकृष्ण की गंध
एक लोकप्रिय मान्यता है कि श्रीकृष्ण के शरीर से एक अद्भुत सुगंध आती थी. यह सुगंध इतनी शक्तिशाली थी कि यह लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण इस सुगंध का उपयोग अपने गुप्त अभियानों में छिपने के लिए करते थे.
यह भी मान्यता है कि द्रौपदी के शरीर से भी एक अद्भुत सुगंध आती थी. यह सुगंध श्रीकृष्ण की सुगंध के समान थी. कहा जाता है कि द्रौपदी की सुगंध इतनी शक्तिशाली थी कि यह लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी. इसीलिए अज्ञातवास के समय द्रौपदी को चंदन, उबटन और इत्रादि का कार्य किया जिसके चलते उनको सैरंध्री कहते थे। अतः यह माना जाता है कि श्री कृष्ण की गंध एक दिव्य सुगंध थी जो श्रीकृष्ण और द्रौपदी के दिव्य स्वभाव का प्रतीक थी.
श्रीकृष्ण के शरीर का गुण
भगवान श्रीकृष्ण की देह अत्यंत ही कोमल थी, लेकिन युद्ध के समय उनकी देह विस्तृत और कठोर हो जाती थी, जो उनके दिव्य स्वरुप को प्रदर्शित करती थी. श्रीकृष्ण योग और कलारिपट्टू विद्या में पारंगत थे, इसी कारण से ऐसी मान्यता थी.
योग एक प्राचीन भारतीय शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जो शरीर को लचीला और मजबूत बनाता है. कलारिपट्टू एक प्राचीन भारतीय युद्ध कला है जो शरीर को शक्तिशाली और कुशल बनाती है.
यह माना जाता है कि श्रीकृष्ण इन दोनों विद्याओं में पारंगत थे, इसलिए उनकी देह कोमल और कठोर दोनों हो सकती थी. युद्ध के समय, वे अपनी देह को कठोर बना सकते थे ताकि वे अपने दुश्मनों को पराजित कर सकें. शांति के समय, वे अपनी देह को कोमल बना सकते थे ताकि वे दूसरों के साथ शांतिपूर्ण तरीके से रह सकें.
सदा जवान बने रहे श्रीकृष्ण
भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। उनका बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगाव, बरसाना आदि जगहों पर बिता। उन्होंने द्वारिका को अपना निवास स्थान बनाया और सोमनाथ के पास स्थित प्रभास क्षेत्र में देह त्याग दी। यह वास्तविकता में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने उनके जीवन का महत्वपूर्ण परिणाम दिखाया। वह दिन था जब भगवान श्रीकृष्ण ने वन में विश्राम किया और पीपल के वृक्ष के नीचे योगनिद्रा में लेटे रहे। तभी एक बहेलिया ने उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर में लग गया। यह घातक बाण उनके शरीर में प्रविष्ट हो गया और उन्हें आत्मा के अद्भुत रहस्य की ओर ले जाने वाली यात्रा पर निर्देशित किया। इस प्रकार, उन्होंने देह त्यागने का समय चुन लिया और अपने शरीर को छोड़ दिया। जनश्रुति के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने जब देहत्याग किया तब उनकी देह के केश न तो श्वेत थे और ना ही उनके शरीर पर किसी प्रकार से झुर्रियां पड़ी थी। अर्थात वे 119 वर्ष की उम्र में भी युवा जैसे ही थे। यह एक अद्भुत चमत्कार है और यह भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य शक्तियों का प्रमाण है।
कैसे हुई कृष्ण की मृत्यु?
भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु जरा नामक बहेलिए के तीर से हुई थी. कृष्ण पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे, तभी बहेलिए ने हिरण समझकर दूर से उनपर तीर चला लिया, जो उनके पैरों में जाकर लगा. तीर जहरयुक्त था, जिससे कृष्ण को बहुत दर्द हुआ और उन्होंने 125 वर्ष की उम्र में देहत्याग कर दिया.
हालांकि, कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं हैं कि कृष्ण की मृत्यु जरा के तीर से हुई थी. उनका मानना है कि कृष्ण ने अपनी मृत्यु का नाटक किया था ताकि वे अपने भक्तों को छोड़कर जा सकें. वे कहते हैं कि कृष्ण ने अपने शरीर को छोड़ दिया और अपने परम धाम चले गए.
श्रीकृष्ण की कितनी उम्र थी?
उनकी आयु 125 वर्ष 8 महीने और 7 दिन थी.
भगवान श्रीकृष्ण की आठ पत्नियां?
इन 08 रानियों को अष्टा भार्या भी कहा जाता था. भगवान श्रीकृष्ण की कुल 16,108 पत्नियाँ थीं, जिनमें से केवल आठ उनकी राजसी पत्नियाँ थीं, जिन्हें 'अष्टभरी' या 'पटरानी' के नाम से भी जाना जाता है। इन पत्नियों के नाम निम्नलिखित हैं - रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नागनजति, कालिंदी, मित्रविंदा, भद्रा और लक्ष्मणा।भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं:-
- रुक्मणि
- सत्यभामा
- जाम्बवन्ती
- कालिन्दी
- मित्रबिन्दा
- सत्या
- भद्रा
- लक्ष्मणा
भगवान कृष्ण के कितने पुत्र थे?
भगवान कृष्ण के आठ पत्नियां थीं: रुक्मणि, सत्यभामा, जाम्बवन्ती, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा. इन सभी से भगवान कृष्ण के कुल 80 पुत्र हुए.
इनमें से कुछ प्रमुख पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं:
- प्रद्युम्न (रुक्मणि के पुत्र)
- साम्ब (जाम्बवन्ती के पुत्र)
- अनिरुद्ध (सत्यभामा के पुत्र)
- चैत्रेय (कालिन्दी के पुत्र)
- बलराम (सत्यभामा के पुत्र)
- बलभद्र (सत्यभामा के पुत्र)
- सुभद्रा (सत्यभामा के पुत्री)
कृष्ण ने राधा से विवाह क्यों नहीं किया?
भगवान श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम एक आध्यात्मिक प्रेम था. वे दोनों एक ही आत्मा के दो अंश थे. वे दोनों एक ही परमात्मा में लीन थे. इसलिए, उन्होंने कभी भी एक-दूसरे से विवाह नहीं किया. उनका प्रेम इस दुनिया का प्रेम नहीं था. यह एक अद्वितीय और अनूठा प्रेम था जो इस दुनिया में कभी भी नहीं देखा गया है.
भगवान श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम एक आदर्श है. यह हमें सिखाता है कि प्रेम एक शक्तिशाली शक्ति है जो हमें इस दुनिया से मुक्त कर सकता है. यह हमें परमात्मा से जोड़ सकता है. यह हमें शांति और आनंद दे सकता है.
भगवान कृष्ण को किन नामों से जाना जाता है?
भगवान कृष्ण को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- कृष्ण
- कान्हा
- कन्हैया
- श्याम
- गोपाल
- केशव
- द्वारकेश
- द्वारकाधीश
- वासुदेव
- नंदलाल
- राधाकृष्ण
- गोकुलेश
- गीताकार्तवीर्य
- माखनचोर
कृष्ण को बांसुरी किसने दी थी?
भगवान शिव ने भगवान कृष्ण को बांसुरी दी थी. यह कहा जाता है कि जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, तो सभी देवी-देवता उन्हें देखने के लिए धरती पर आए थे. भगवान शिव भी वहां उपस्थित थे और वे भगवान कृष्ण के रूप और सौंदर्य से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने भगवान कृष्ण को एक उपहार देने का फैसला किया और उन्होंने ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी को घिसकर एक बांसुरी बनाई. उन्होंने यह बांसुरी भगवान कृष्ण को भेंट की और कहा कि यह बांसुरी उन्हें हमेशा खुशी और आनंद देगी.
भगवान कृष्ण ने भगवान शिव की बांसुरी को बहुत पसंद किया और वे इसे हमेशा अपने साथ रखते थे. वे बांसुरी बजाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर देते थे. उनकी बांसुरी की आवाज इतनी मधुर थी कि सभी को शांति और आनंद मिलता था. कृष्ण की बांसुरी के जादू से सभी दुख और कष्ट दूर हो जाते थे.
श्री कृष्ण का जन्म कब हुआ?
भगवान कृष्ण का जन्म 27 जुलाई, 3112 ईसा पूर्व आधी रात में हुआ था. उस रात चंद्रमा का आठवां चरण था जिसे अष्टमी तिथि के रूप में इसे अत्यंग ही पावन समझकर भक्तों के द्वारा कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण का जन्म वृंदावन में हुआ था. उनके पिता वासुदेव और माता देवकी थे. भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे. उन्होंने अपने जीवन में कई चमत्कार किए और लोगों को दुःख से मुक्ति दिलाई. भगवान कृष्ण एक महान योद्धा भी थे और उन्होंने महाभारत युद्ध में पांडवों की मदद की.
चतुर्भुज रूप में देवकी और वासुदेव के सामने हुए प्रकट
भगवान श्रीकृष्ण के अवतार से पहले ही उन्होंने कई चमत्कार दिखाए थे। उनके जन्म से पहले ही, चतुर्भुज रूप में उन्होंने देवकी और वासुदेव के सामने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया था। उन्होंने उनसे कहा था कि वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और कंस का वध करेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि उनके जन्म के साथ ही वासुदेव और देवकी को उन्हें नंदजी के पास छोड़ आना चाहिए। इस प्रकार, वासुदेव और देवकी ने उनसे बालक रूप में प्रकट होने की इच्छा व्यक्त की और श्रीकृष्ण ने माता की गोद में स्वीकार किया।
श्रीकृष्ण की माया से भूल गए सब कुछ
श्रीकृष्ण ने जैसे ही अपने अवतार ग्रहण किया, उन्होंने अपने माता-पिता की यादों को पुर्णतः भुला दिया। वासुदेव और देवकी को यह याद नहीं रहा था कि भगवान ने उन्हें चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर आशीर्वाद दिया था और श्रीकृष्ण भगवान के अवतार हैं। श्रीकृष्ण ने अपनी माया से कंस के सैनिकों को अचेत कर दिया और उनकी माता देवकी को गहरी निद्रा में डाल दिया। उनके पिता वासुदेवजी को श्रीकृष्ण की प्रेरणा से अर्धचेतन अवस्था में उठकर बालक श्रीकृष्ण को लेकर नंदगांव पहुंच गए, जहां नंदराय के पास उन्होंने बालक श्रीकृष्ण को सौंप दिया। लेकिन यह सभी घटनाएँ वासुदेवजी की यादों में नहीं थीं।
कंस की हत्या
कंस अपने पूर्वजन्म में कालनेमि थे, जिन्हें भगवान विष्णु ने नष्ट किया था। देवकी के छह पुत्र, जिनमें भगवान श्रीकृष्ण भी शामिल थे, वास्तव में कालनेमि के पुत्र थे, जिन्हें हिरण्यकश्यप ने एक श्राप दिया था कि वे उनके पिता द्वारा मारे जाएंगे। इसलिए कालनेमि (कंस) ने अपने अगले जन्म में देवकी के छह पुत्रों को उसी श्राप के अनुसार उनका वध किया था। कालनेमि के छह पुत्रों के नाम थे हम्सा, सुविक्रम, कृत, दमान, रिपुमर्दन और क्रोधनाथ, जो उनके पूर्वजन्म में भगवान श्रीकृष्ण के सहायक और भाई बने थे।
रुक्मिणी से उनका विवाह
रुक्मिणी को भाग्य की देवी श्री लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है। इसके अलावा, श्रीकृष्ण की अन्य 16,100 पत्नियों का पतिव्रता धर्म से पहले वे नरकासुर के यहां जबरन बंदी बनाकर उन्हें महल में कैद कर रखे गए थे। नरकासुर के वध के बाद, श्रीकृष्ण ने इन 16,100 महिलाओं को बचाया और उन्हें मुक्त किया, और उनसे विवाह करके उन्हें आदर्श पतिपरम्परा का पालन किया।
श्रीकृष्ण के 108 नाम
अचला, अच्युत, अद्भुतह, आदिदेव, अदित्या, अजन्मा, अजया, अक्षरा, अमृत, अनादिह, आनंद सागर, अनंता, अनंतजीत, अनया, अनिरुद्धा, अपराजित, अव्युक्ता, बाल गोपाल, बलि, चतुर्भुज, दानवेंद्रो, दयालु, दयानिधि, देवाधिदेव, देवकीनंदन, देवेश, धर्माध्यक्ष, द्वारकाधीश, गोपाल, गोपालप्रिया, गोविंदा, ज्ञानेश्वर, हरि, हिरण्यगर्भा, ऋषिकेश, जगद्गुरु, जगदीशा, जगन्नाथ, जनार्धना, जयंतह, ज्योतिरादित्या, कमलनाथ, कमलनयन, कामसांतक, कंजलोचन, केशव, कृष्ण, लक्ष्मीकांत, लोकाध्यक्ष, मदन, माधव, मधुसूदन, महेन्द्र, मनमोहन, मनोहर, मयूर, मोहन, मुरली, मुरलीधर, मुरली मनोहर, नंदगोपाल, नारायन, निरंजन, निर्गुण, पद्महस्ता, पद्मनाभ, परब्रह्मन, परमात्मा, परम पुरुष, पार्थसारथी, प्रजापति, पुण्य, पुरुषोत्तम, रविलोचन, सहस्राकाश, सहस्रजीत, सहस्रपात, साक्षी, सनातन, सर्वजन, सर्वपालक, सर्वेश्वर, सत्य वचन, सत्यव्त, शंतह, श्रेष्ठ, श्रीकांत, श्याम, श्यामसुंदर, सुदर्शन, सुमेध, सुरेशम, स्वर्गपति, त्रिविक्रमा, उपेन्द्र, वैकुंठनाथ, वर्धमानह, वासुदेव, विष्णु, विश्वदक्शिनह, विश्वकर्मा, विश्वमूर्ति, विश्वरूपा, विश्वात्मा, वृषपर्व, यदवेंद्रा, योगि और योगिनाम्पति।वन के पेड़ और तुलसी का रहस्य
निधिवन की एक और रोचक बात यह है कि वहाँ पेड़ की शाखाएं ऊपर की ओर नहीं, बल्कि नीचे की ओर बढ़ती हैं। यहाँ के पेड़ अल्पक्षर होते हैं, परन्तु एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इसके साथ ही, यहाँ की तुलसी जोड़ियों में उगती हैं। मान्यता है कि ये पौधे रात्रि को गोपियों में परिवर्तित हो जाते हैं और वे दिव्य नृत्य में रसिक भावना में लीन हो जाती हैं।श्री कृष्ण के बारे में 10 रोचक बातें:
- श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। वे देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे। श्री कृष्ण के जन्म से पहले कंस ने उनके छह भाइयों को मार दिया था।
- श्री कृष्ण के गुरु संदीपनि थे और उन्होंने गुरुदक्षिणा के रूप में उनके मरे हुए बेटे को दिया था।
- श्री कृष्ण ने देवकी के छह मरे हुए बच्चों को वापस बुलाया और उन्हें मुक्त किया।
- गोकुल के गोपों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की और उसकी सुरक्षा की, जिसका परिणामस्वरूप भगवान इंद्र का क्रोध और अच्छी वर्षा हुई।
- श्री कृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाई और उनकी रक्षा की, जब वह दुष्यासन द्वारा छीनी जा रही थी।
- श्री कृष्ण की 16,108 पत्नियां थीं, जिनमें से आठ उनकी रानियां थीं और उनके साथ 80 बच्चे थे।
- श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा थी, जिनका विवाह अर्जुन से हुआ था।
- राधा का नाम किसी भी धर्मग्रंथ में नहीं है, बल्कि उनके साथ श्री कृष्ण के प्रेमकाल की कथाएं प्रसिद्ध हैं।
- श्री कृष्ण ने अपने चचेरे भाई एकलव्य की मृत्यु को विदाई दी और उनके पिता को उनके उपहार की उपयोगिता बताई।
- श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, लेकिन संजय ने श्री कृष्ण से पहले गीता का सार सुने थे।
- भगवान श्री कृष्ण के परमधामगमन के समय उनका शरीर श्वेत था और कोई झुर्री नहीं थी। यह उनके दिव्य रूप का एक विशेष विवरण है, जो उनके अवतार के उद्देश्य और महत्व को प्रकट करता है। श्रीमद भगवद गीता में भी श्री कृष्ण ने अपने दिव्य स्वरूप का वर्णन किया है, जिसमें उन्होंने अपने अद्भुत और अनन्त रूप की महिमा बताई थी।