पात झरंता यों कहै सुनि तरवर बनराइ मीनिंग

पात झरंता यों कहै सुनि तरवर बनराइ हिंदी मीनिंग

पात झरंता यों कहै, सुनि तरवर बनराइ।
अब के बिछुड़े ना मिलैं, कहुँ दूर पड़ैंगे जाइ॥

Pat Jharanta Yo Kahe, Suni Tarvar Banrai,
Aub Ke Bicchude Na Mile, Kahu Dur Padenge Jai.

पात झरंता यों कहै सुनि तरवर बनराइ हिंदी मीनिंग Pat Jharanta Yo Kahe Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning

कबीर साहेब इस दोहे में सन्देश देते है की पेड़ से झड़ता पत्ता पेड़ से कहता है की सुनो वृक्ष, अब तुमसे बिछुड़ चुके हैं और अबके बिछड़ने के उपरात ना जाने तुमसे कब मिलेंगे, कहीं दूर जाकर ही हम गिरेंगे। आशय है की जीवात्मा पुनः किस रूप में और कहाँ पर जाकर जन्म लेगी इसका कुछ भी पता नहीं है। इस दोहे में, कबीर साहेब ने पतझड़ के मौसम का एक प्रतीकात्मक रूपक प्रस्तुत किया है। पतझड़ के मौसम में, पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं। ये पत्ते, जीवात्मा का प्रतीक हैं। पत्ता, पेड़ से गिरते हुए कहता है कि अब हम बिछुड़कर फिर कभी नहीं मिलेंगे। इसका अर्थ है कि जीवात्मा, एक बार इस शरीर से निकल जाने के बाद, फिर कभी इस शरीर में नहीं लौट सकती। पत्ता कहता है कि वह कहीं दूर जा गिरेगा। इसका अर्थ है कि जीवात्मा, मरने के बाद, किसी अन्य शरीर में जन्म लेगी।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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