गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः हिंदी मीनिंग Gurur Brahma Gurur Vishnu Hindi Meaning

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः हिंदी मीनिंग Gurur Brahma Gurur Vishnu Hindi Meaning


गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||
 
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः हिंदी मीनिंग Gurur Brahma Gurur Vishnu Hindi Meaning

 

भारत की सांस्कृतिक पहचान है की यहाँ पर गुरु के पद को सर्वोच्च और अत्यंत ही आदर का प्रतीक माना जाता है। कबीर साहेब ने कहा की "गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पाँय" स्पष्ट है की गुरु गोविन्द से भी अधिक महत्त्व रखता है। गुरु ही जो सद्मार्ग की और अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है और स्वंय के द्वारा अर्जित ज्ञान को साधक को बांटता है। गुरु (Guru) शब्द दो अक्षरों "गु" और "रु" से बना है जहाँ गु का अर्थ है 'अन्धकार और रु का अर्थ है' प्रकाश। इसका अर्थ हुआ की गुरु अपने शिष्य / साधक को अन्धकार से निकाल कर रौशनी की तरफ अग्रसर करता है, रौशनी की ओर ले जाता है।  ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी गुरु शब्द को लिक्सोग्राफी में शामिल किया है। प्रबंधन शिक्षा में गुरु बहुत प्रसिद्ध है क्योंकि सबसे कुशल व्यक्ति को प्रबंधन गुरु के रूप में संबोधित किया जाता है। गुरु की महिमा पर पकाश डालने वाला यह श्लोक आदि शंकराचार्य जी के द्वारा रचित है और यह श्लोक गुरु स्त्रोतम का एक भाग है।

"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः" मन्त्र का हिंदी मीनिंग : -

गुरु ही ब्रह्म है जो सृष्टि के रचियता हैं। गुरु ही श्रष्टि के पालक हैं जैसे श्री विष्णु जी। गुरु ही इस श्रष्टि के संहारक भी हैं जैसे श्री शिव।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः मन्त्र का हिंदी मीनिंग

गुरु साक्षात पूर्ण ब्रह्म हैं जिनको अभिवादन है (ऐसे गुरु को नमन/अभिवादन ). भाव है की ईश्वर तुल्य ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ।
Word Meaning of Gurur Brahma Gurur Vishnu Mantra : -
गुरु /Guru: मार्गदर्शन करने वाला, भेद की बातें और शिक्षा देने वाला।
ब्रह्मा; भगवान् ब्रह्मा जी।
विष्णुं : भगवान् विष्णु।
देवा : ईश्वर।
महेश्वरा : भगवान् शिव जो जगत के रक्षक होने के साथ साथ विनाशक भी हैं।
साक्षात : स्वंय ही।
परब्रह्म : जो सर्वोच्च नियामक शक्ति है।
तस्मै : को (गुरु  को )
श्री : पवित्र।
नमह :अभिवादन। 
 
 
इस श्लोक में, गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के रूप में दर्शाया गया है। ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता, विष्णु पालक और महेश्वर संहारक हैं। गुरु को इन तीनों देवताओं के समान माना जाता है क्योंकि वे हमें ज्ञान, प्रकाश और मोक्ष के मार्ग पर ले जाते हैं।

श्लोक का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है:
गुरु = शिक्षक
ब्रह्मा = सृष्टि के रचयिता
विष्णु = पालक
महेश्वर = संहारक
साक्षात = प्रत्यक्ष रूप
परब्रह्म = सर्वोच्च देवता
श्रीगुरवे = श्री गुरु को
नमः = प्रणाम
इस श्लोक से यह संदेश मिलता है कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है। गुरु हमें ज्ञान, प्रकाश और मोक्ष के मार्ग पर ले जाते हैं। हमें अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। यह श्लोक अक्सर हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा के दिन पढ़ा जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरुओं के सम्मान में मनाया जाता है।

गुरु का महत्त्व सर्वोच्च है : गुरु पूर्णिमा

गुरु का महत्त्व निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट होता है:

  • गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। वे ही परब्रह्म हैं। उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है।
  • गुरु ही भक्तों के हितैषी हैं। वे सब कुछ करने वाले हैं। उनके बिना भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती।
  • गुरु की कृपा प्राप्त करने का एकमात्र उपाय निश्छल, निर्मल और निष्काम भाव से तन, मन, धन तथा उनकें चरणों में सर्वस्व अर्पित कर उनकी प्रेम पूर्वक सेवा ही है।
  • गुरु की सेवा तभी संभव है जब मनुष्य उनका सान्निध्य प्राप्त करे।
  • गुरु को सद्‌ग्रन्थों में पारस की उपमा दी गई है। उनके पावन स्पर्श से जड़ जीव चेतन हो जाता है।
  • गुरु और शिष्य का संबंध अभिन्न होना चाहिए। यह संबंध श्रद्धा, विश्वास एवं प्रेम का संबंध होना चाहिए, जो हर प्रकार से निश्छ्ल, निर्मल और निष्काम हो।
  • गुरु शिष्य के अन्तर्दोषों को क्रमशःदूर करते रहते हैं।
  • गुरु भक्त के लिये गुरु कृपा ही सार वस्तु है। गुरु के चरण कमलों में प्रेम हो जाना ही जीवन की सबसे महान्‌ उपलब्धि है।
इन आधारों के आधार पर गुरु के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है:
  • गुरु ही ज्ञान का भंडार हैं। वे ही शिष्य को सही मार्ग दिखा सकते हैं।
  • गुरु ही भक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। वे ही शिष्य को मोक्ष की प्राप्ति करवा सकते हैं।
  • गुरु ही शिष्य के जीवन को सफल बनाते हैं। वे ही शिष्य को एक सच्चे मनुष्य बनाते हैं।
  • इस प्रकार, गुरु का महत्त्व अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। गुरु के बिना जीवन व्यर्थ है। गुरु के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरु के बिना एक सच्चे मनुष्य बनना असंभव है।

गुरु की कृपा प्राप्त करने के लिए शिष्य को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
  • गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए।
  • गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
  • गुरु के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए।
  • गुरु की सेवा में तत्पर रहना चाहिए।
यदि शिष्य इन बातों का पालन करता है, तो उसे अवश्य ही गुरु की कृपा प्राप्त होगी।

गुरु का महत्त्व

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

इस श्लोक में गुरु को ब्रह्म, विष्णु, महेश और साक्षात् परब्रह्म के समान माना गया है। इसका अर्थ है कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है। गुरु ही हमें सही मार्ग दिखाते हैं और हमें जीवन में सफल होने में मदद करते हैं।
गुरु के महत्त्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
गुरु ज्ञान का प्रकाश देते हैं। गुरु हमें ज्ञान और विद्या प्रदान करते हैं। ज्ञान के बिना हम जीवन में कुछ भी नहीं कर सकते। गुरु के द्वारा प्राप्त ज्ञान हमें सही निर्णय लेने और अपने जीवन को सफल बनाने में मदद करता है।
गुरु हमें सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु हमें जीवन में सही मार्ग दिखाते हैं। वे हमें बताते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। गुरु के द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन हमें जीवन में सफलता और सुख प्राप्त करने में मदद करता है।
गुरु हमें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। गुरु हमें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान हमें जीवन का सही अर्थ समझने में मदद करता है। गुरु के द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान हमें जीवन में शांति और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है।
गुरु की सेवा करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। गुरु की सेवा करने से हमें गुरु की कृपा प्राप्त होती है। गुरु की कृपा से हम जीवन में सफलता और सुख प्राप्त कर सकते हैं। गुरु की सेवा निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है:
गुरु के ज्ञान और उपदेशों का पालन करना।
गुरु के प्रति श्रद्धा और भक्ति रखना।
गुरु के आदेशों का पालन करना।
गुरु के साथ प्रेम और आदरपूर्वक व्यवहार करना।
गुरु के प्रति निष्ठावान रहने से हमें गुरु की कृपा प्राप्त होती है। गुरु की कृपा से हम जीवन में सफलता और सुख प्राप्त कर सकते हैं।
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