आसमाता की व्रत कहानी Aasmata Ki Vrat Katha Kahani
आस माता का व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मानते हैं। यह व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अष्टमी तक किया जा सकता है और व्रत के दिन आस माता की कथा/कहानी सुनाई जाती है। आस माता की कथा सुनने से हमें आत्मिक शक्ति मिलती है और हमारे जीवन में आराम और सुख-शांति का आभास होता है। इस व्रत को निष्ठा और समर्पण के साथ किया जाना चाहिए ताकि हमें आस माता की कृपा प्राप्त हो सके और हमारे जीवन में सुख और सौभाग्य की प्राप्ति हो सके।
कब करते हैं आसमाता का व्रत Aasmata Ka Vrat Kab Karte Hain?
आप फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकम से अष्टमी तक किसी भी अच्छे वार को यह व्रत कर सकते हैं। आस माता के व्रत के दिन आस माता की कहानी सुनते हुए एक लकड़ी की पटरी/पटला (पाटा) पर जल से भरा लोटा रखें। उस पर एक स्वास्तिक चिन्ह बनाकर चावल चढ़ाएं और गेहूं के सात दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। उसके बाद हलवा, पूड़ी तथा रुपये को एक साथ बायना से निकालकर सासुजी को चरण स्पर्श करके दें। आस माता का व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल प्रतिपदा से अष्टमी तक किसी भी दिन किया जा सकता है। यह व्रत स्त्रियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो प्रथम संतान के जन्म के बाद इसे करती हैं। इस व्रत में माता आस की पूजा एवं अर्चना की जाती है, जिससे धार्मिक आनंद और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। व्रत के दिन, एक विशेष रचना बनाकर आस माता की कथा सुनी जाती है और पूजा के बाद माता के पैरों को स्पर्श करके आशीर्वाद लिया जाता है। इस व्रत में मीठा खाने की परंपरा है जो खुशहाली और समृद्धि की प्रतीक है। आस माता का व्रत विश्वास के साथ आत्मीयता का एक अनूठा अनुभव है, जो साधक को सभी कष्टों से मुक्ति प्रदान करता है।
कैसे करें आसमाता के व्रत की तैयारी
- सर्वप्रथम नित्यक्रिया से निवृत होकर, स्नान कर साफ़ एवम् स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर जल से भरा कलश रखें।
- कलश पर रोली से स्वास्तिक बनायें।
- इसके पश्चात कलश पर चावल चढ़ायें।
- हलवा और चार पुड़ियां चौकी पर रखें।
- गाय के घी से दीपक जलाएं।
- गेहूँ के सात दाने हाथ में लेकर आस माता की कहानी सुनें।
- कहानी सुनने के बाद हलवा पुड़ियां और दक्षिणा रखकर सास को दें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।
आसमाता व्रत/पूजा विधि
पूजा की विधि बहुत सरल है। सबसे पहले, एक पट्टे पर एक जल का लोटा रखें और उस पर रोली का स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद, पट्टे पर चावल चढ़ाएं। अपने हाथों में सात दाने गेहूं लेकर आस माता की कथा सुनें। पूजा के दौरान, हलवा, पूरी और कुछ रुपये रखें और बायना निकालें और उसे सासुजी को दें। सासूजी के पैरों को छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें.आसमाता की कहानी/आसमाता की कथा Aasmata Ki Kahani
एक गांव में आसलिया बावलिया नाम का एक व्यक्ति रहता था। आसलिया जुआ खेलने का शौकीन था। वह दिन भर जुआ खेलता रहता था। आसलिया का एक नियम था कि वह जुए में हारे या जीते एक ब्राह्मण को भोजन अवश्य करवाता था। एक दिन असलिया की भाभीयों ने आसलिया को कहा कि आप कुछ भी काम नहीं करते हो और जो पूरे दिन जुआ खेलते रहते हो। आप जीतते हो या फिर हारते हो तब भी एक ब्राह्मण को खाना खिलाते हो। अब ऐसे नहीं चलेगा कुछ कमा कर के आप घर के खर्च में सहयोग करें।
भाभियों की यह बातें सुनकर आसलिया का मन दुखी हो गया। वह दुखी मन से घर छोड़ कर शहर चला गया। शहर जाकर भी उसने जुआ खेलना जारी रखा। शहर में यह खबर आग की तरह फैल गई कि जुआ खेलने का एक बहुत ही बड़ा खिलाड़ी आया है। धीरे धीरे उसने सभी सुविधाएं प्राप्त कर ली।
अब उसकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी। एक दिन राजा को जब इस बात का पता चला तब राजा ने भी आसलिया को अपने महल में बुलवाया। राजा ने उसके साथ जुआ खेलने की इच्छा जाहिर की। आसलिया ने राजा के साथ जुआ खेला और वह जीत गया। राजा ने खुश होकर अपनी पुत्री का विवाह आसलिया से कर दिया और राज्य का उत्तराधिकारी आसलिया को नियुक्त कर दिया।
आसलिया ने विपरीत समय में भी आस माता का व्रत नहीं छोड़ा था। अब तो आसलिया स्वयं ही राजा था। इसलिए उसने ब्राह्मण देवताओं को खाना खिलाना और दान देना भी बढ़ा दिया था। जब भी आसमाता का व्रत करता या फिर जुआ खेलता ब्राह्मणों को खाना खिलाता था।
धीरे धीरे उसकी प्रसिद्धी आस पास के गांव तक भी पहुंचने लगी। आसलिया के गांव में जब से आसलिया ने घर छोड़ा था तब से ही अन्न देवता ने उसके घर परिवार से मुख मोड़ लिया था। उनके घर खाद्यान्न की कमी होने लगी थी। जब उन्होंने राजा के बारे में सुना कि राजा ने राज पाट जुवे में जीता है। तब वह राजा के पास आए और अपने बेटे के लिए पूछा। उन्होंने राजा से कहा कि हमारा बेटा भी जुआ खेलता था और हमने उसे घर से निकाल दिया था। तब आसलिया ने कहा कि मैं आपका ही बेटा हूं। मेरी करनी का फल मुझे मिला है और आपकी करने का फल आपको मिला है।
आसलिया की मां ने भी अपने पुत्र को पहचान लिया था। उसने कहा हे आस माता आपने ही यह सब चमत्कार किया है। और वह अपने पुत्र से बोली कि चलो बेटा हम अपने गांव चलते हैं। वहां जाकर हम आस माता के व्रत का उद्यापन करेंगे। राजा(आसलिया) ने अपने गांव जाकर आस माता के व्रत का उद्यापन करवाया। परिवार के सभी सदस्य सुख से रहने लगे। हे आस माता जैसा आसलिया बावलिया को उसकी करनी का फल दिया वैसा सबको देना, कहानी कहने वाले को, सुनने वाले को और उनके सारे परिवार को देना
व्रत के दिन, कच्चा सूत का आठ धागे का डोरा लेना चाहिए। फिर उस डोरे पर आठ गांठ बांधनी चाहिए और उसे रंग से रंगना चाहिए। एक लकड़ी की पाटा पर जल का लोटा रखें और उस पर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। भीतरी लकड़ी पर भी स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। डोरे और सात गेहूँ को हाथ में लेकर कहानी सुनें। कहानी सुनने के बाद, डोरा और गेहूँ को उसी स्थान पर चढ़ा दें। फिर भगवान सूर्यनारायण देवजी को अर्ध्य अर्पित करें। व्रत करने वालों को एक धान का भोजन करना चाहिए। जब बेटा पैदा होता है या लड़के का विवाह होता है, तो आस माता का व्रत उद्यापन किया जाता है। उद्यापन में सात-सात पूड़ी और हलवा को सात-सात जगहों पर बांटना चाहिए, जिसे परिवार के सदस्यों में बांटा जाना चाहिए।
आसमाता की पूजा सामग्री
- पान का पत्ता (Betel Leaves)
- गोपी चंदन (लाल) (Red Sandalwood)
- लकड़ी का पटरा या चौकी (Wooden Plate or Stool)
- चार कौड़ी (Four Cowries)
- आसामाई की तस्वीर (Picture of Aas Mata)
- कलश (मिट्टी) (Earthen Pot)
- रोली (Red Powder)
- अक्षत (Unbroken Rice)
- धूप (Incense)
- दीप (Lamp)
- घी (Ghee)
- गेहूँ की बाली (Wheat Ball)
- नैवेद्य (हलवा- पूड़ी) (Sweet Offerings)
- सूखा आटा (Dry Wheat Flour)
आसमाता व्रत का महत्त्व/फायदे
हिंदू मान्यता के अनुसार, आस माता की पूजा और व्रत करने वाले व्यक्ति कभी भी अनिष्ट का सामना नहीं करता है। यह व्रत और पूजा बहुत कम लोगों को पता होती है। यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसकी विधि सरल होती है। जब कोई व्यक्ति आस माता का व्रत करता है, तो आस माता सदैव उसकी सहायता करती है। उसका जीवन सुख से परिपूर्ण होता है और उसे सभी प्रकार की सुख साधनाएं प्राप्त होती हैं। वह एक सुखद और सुविधाजनक जीवन जीता है और हमेशा विजयी होता है। उसे कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती और जीवन में प्रसन्नता बनी रहती है। आस माता के व्रत से पारिवारिक सम्बंधों में मधुरता और खुशहाली आती है। आसामाई के विषय में मान्यता है कि इनकी प्रसन्नता से जीवन की हर आशा पूरी होती है और अगर ये अप्रसन्न हो जाएं तो जीवन की सभी खुशियाँ और सुख नष्ट हो जाते हैं। इनकी प्रसन्नता के लिए विशेष रूप से पुत्रवती महिलाएं इनका व्रत रखती हैं। वैशाख, आषाढ़ और माघ के महीनों में किसी रविवार के दिन आसामाई की पूजा और व्रत रखा जाता है।
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aas mata ki kahani || आस माता की कहानी || aas mata ki katha || आस माता की कथा
आस माता आस दे
आस रे घर वास दे
खट्टी मिट्ठी छाछ दे
घिल्लोड़ी में घी दे
तेल भरी तिल्लोड़ी दे
पेटी भरिया कपड़ा दे
ऊँठों भरिया ओळा दे
पालने में पूत दे
तिजोरी में रुपिया दे
सोने चाँदी री मोहरों
हीरा मोती मांणक दे
लिछमी जी रो ढोलियो
सुख सवा सुहाग दे
घर मौजों मल्हार दे
आस माता आस दे
चुड़लो हाथी दोंत रो
सोने आळी पोंत रो
नथ टीको हंसुलिया
कंगण बींटी पाटला
लूम झूमतो कन्दोरो दे
बिछिया पायल कड़ोलिया
सीधी सुरगों पाळकी
चाईजती सब चीज दे
आस माता आस दे
अणखूटन्ता खळिया दे
मूंग मोठ बाजरियों
खूंटे बन्धियों ऊँठणियों
हाथी घोड़ा करहलिया
कड़ा कसोड़ो कन्थो दे
रैळ छैळ भरपूर दे
सब आसाओं पूर दे
आस माता आस दे।