गीता के ये अनमोल सूत्र पढ़ें गीता के अनमोल विचार Precious thoughts of Gita Geeta Anmol Vichar
गीता पाठ करने से गीता के अनमोल सूत्रों के विषय में कीमती शिक्षाएं मिलती हैं जो नित्य जीवन में बहुत उपयोगी होती हैं। वर्तमान जीवन में मनोवैज्ञानिक रोगों से छुटकारा पाने के लिए, आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए गीता के प्रेरक विचार बहुत उपयोगी हैं। इस लेख में आप गीता के विचारों को जानेंगे।
गीता के प्रेरक विचार Inspiring thoughts of Geeta
मैं समस्त प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूं।मैं सभी प्राणियों को एकसमान रूप से देखता हूं। मेरे लिए ना कोई कम प्रिय है ना ज्यादा, लेकिन जो मनुष्य मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं। वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूं।
जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है, जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार नरक के 3 द्वार हैं- क्रोध, वासना और लालच।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है और जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता तीनों लोक में कहीं भी नहीं है।
जो मनुष्य अपने मन को नियंत्रण में नहीं रख सकता वह शत्रु के समान कार्य करता है।
व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें।
अपनी पीड़ा के लिए संसार को दोष मत दो, अपने मन को समझाओ क्योंकि तुम्हारे मन का परिवर्तन ही तुम्हारे दुखों का अंत है. मनन करो।
गीता में लिखा है कि क्रोध तब पुण्य बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए और सहनशीलता तब पाप बन जाती है जब वह धर्म और मर्यादा को बचा ना पाए, इसलिए क्रोध से दूर रहो।
केवल डरपोक और कमजोर लोग ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं लेकिन जो मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही रहते, अपने कर्मों पर विश्वास करो।
गीता में श्रीकृष्ण कहते है कि परेशानी में अगर कोई तुमसे सलाह मांगता है तो उसे सलाह के साथ अपना साथ भी देना क्योंकि सलाह गलत हो सकती है साथ नहीं.
केवल डरपोक और कमजोर लोग ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं लेकिन जो मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही रहते, अपने कर्मों पर विश्वास करो।
गीता में श्रीकृष्ण कहते है कि परेशानी में अगर कोई तुमसे सलाह मांगता है तो उसे सलाह के साथ अपना साथ भी देना क्योंकि सलाह गलत हो सकती है साथ नहीं.
श्रीकृष्ण कहते हैं शरीर नश्वर हैं पर आत्मा अमर है. यह तथ्य जानने पर भी व्यक्ति अपने इस नश्वर शरीर पर घमंड करता है जो कि बेकार है.
शरीर पर घमंड करने की बजाय मनुष्य को सत्य स्वीकार कर कर्म मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए।
तुम अपने आपको भगवान को अर्पित कर दो. यही सबसे उत्तम सहारा है. जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है, ईश्वर ही तुम्हारा सच्चा साथी है।
शरीर पर घमंड करने की बजाय मनुष्य को सत्य स्वीकार कर कर्म मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए।
तुम अपने आपको भगवान को अर्पित कर दो. यही सबसे उत्तम सहारा है. जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है, ईश्वर ही तुम्हारा सच्चा साथी है।
गीता के प्रेरक उपदेश Geeta Updesh
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों के बारे में रोचकता से जानकारी प्राप्त होती है। श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को जीवन के अमूल्य विचारों को बड़ी ही सरलता के साथ समझाया है। जैसे अर्जुन के लिए युद्ध और जीवन में कृष्ण जी के विचार अनमोल और प्रेरक रहे, वैसे ही हम और आप भी इन विचारों को अपने जीवन में उतार कर जीवन को सफल बना सकते हैं।
फल की इच्छा छोड़ कर्म को प्रधान मानें।
गीता में श्री कृष्ण जी के विचारों का सार है की हमें अपने कर्मों को प्रधान समझना चाहिए। गीता में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग की महत्वपूर्ण शिक्षा दी है। उन्होंने अर्जुन से कहा कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है, लेकिन उसके फल पर नहीं। हमें फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए। जब हम बिना किसी इच्छा या स्वार्थ के कर्म करते हैं, तो वह निष्काम कर्म कहलाता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए धर्म, नैतिकता, और सत्य का पालन करना चाहिए। क्योंकि जैसा कर्म व्यक्ति करता है, उसका फल भी वैसा ही होता है, यह सुनिश्चित है। इसलिए मनुष्य को सदैव अच्छे और धर्म के मार्ग पर चलकर कर्म करना चाहिए।स्वयं का आकलन
श्रीकृष्ण के अनुसार, आत्म-आकलन (स्वयं का आकलन) जीवन में बहुत महत्वपूर्ण विचार है। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है कि व्यक्ति खुद को सबसे बेहतर जान सकता है क्योंकि कोई भी अन्य व्यक्ति हमारी आंतरिक स्थिति, भावनाएं, इच्छाएं और कमजोरियों को पूरी तरह नहीं समझ सकता। इसलिए, व्यक्ति को अपने गुणों और कमियों का साक्षात्कार करना चाहिए, मनन करना चाहिए और कमजोरियों को चिन्हित करना चाहिए। जब हम अपनी क्षमताओं और सीमाओं को पहचानते हैं, तो हम अपने व्यक्तित्व को सही दिशा में ढाल सकते हैं और खुद को बेहतर बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।मन पर नियंत्रण करना चाहिए।
गीता में श्रीकृष्ण ने मन पर नियंत्रण को बल दिया है। उन्होंने कहा है कि मनुष्य का मन ही उसके दुखों और अशांति का कारण होता है, क्योंकि मन निरंतर इच्छाओं, चिंताओं और विकारों से भरा रहता है, इसलिए मन को नियंत्रित करना हितकर होता है। जब व्यक्ति अपने मन को नियंत्रण में नहीं रखता, तो वह इन इच्छाओं और चिंताओं के जाल में फंस जाता है, जिससे जीवन में अशांति और दुख बढ़ता है।श्रीकृष्ण के अनुसार, जो व्यक्ति अपने मन पर काबू पा लेता है, वह मानसिक विकारों से मुक्त होकर शांति और संतुलन प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति की मनःस्थिति स्थिर होती है, और वह व्यर्थ की इच्छाओं और चिंताओं से दूर रहता है। इस प्रकार का मानसिक संतुलन उसे जीवन के हर कार्य में सफल बनाता है, क्योंकि अब उसकी ऊर्जा और ध्यान उसके लक्ष्य की ओर सही दिशा में केंद्रित रहते हैं।क्रोध पर काबू रखना सीखना चाहिए।
गीता में श्रीकृष्ण ने क्रोध को व्यक्ति के लिए घातक बताया है। क्रोध एक ऐसा भाव है जो मनुष्य को सही-गलत का विवेक खोने पर मजबूर कर देता है, क्रोध की अवस्था में विवेक शून्य हो जाता है। जब व्यक्ति क्रोधित होता है, तो वह अक्सर आवेश में आकर ऐसे कार्य कर बैठता है जिनका परिणाम उसके लिए या दूसरों के लिए हानिकारक हो सकता है। कई बार गुस्से में व्यक्ति अपने ही हितों को नुकसान पहुंचा लेता है, और बाद में पछताता है, इसलिए व्यक्ति को क्रोध का त्याग करके गंभीरता को अपने आचरण में उतारना चाहिए।गीता के अत्यंत प्रेरक विचार लिस्ट List of very inspiring thoughts of Geeta
- कर्म करो, फल की चिंता मत करो - अपने कर्तव्यों का पालन करो और परिणाम की चिंता मत करो।
- मनुष्य अपने विश्वास से बनता है - जैसा विश्वास करता है, वैसा ही बन जाता है।
- मन अशांत है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है - मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से संभव है।
- जो हुआ, वह अच्छा हुआ; जो हो रहा है, वह भी अच्छा हो रहा है; जो होगा, वह भी अच्छा होगा - हर स्थिति में सकारात्मक रहो।
- सच्चा धर्म यह है कि जो बात अपने लिए अच्छी नहीं समझते, उसे दूसरों के लिए भी प्रयोग ना करें - दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा अपने लिए चाहते हो।
- मन की शांति से बढ़कर इस संसार में कोई संपत्ति नहीं है - मन की शांति सबसे बड़ी संपत्ति है।
- जो व्यक्ति फल की इच्छा का त्याग करके केवल कर्म पर ध्यान देता है, वह अवश्य ही जीवन में सफल होता है - निष्काम कर्म ही सफलता की कुंजी है।
- कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है, जन्म से नहीं - कर्म ही व्यक्ति को महान बनाते हैं।
- जो जितना शांत होता है, वह उतनी ही गहराई से अपनी बुद्धि का प्रयोग कर सकता है - शांति से बुद्धि का सही उपयोग होता है।
- ज्ञान योग से श्रेष्ठ है, लेकिन कर्म योग से भी श्रेष्ठ है - ज्ञान और कर्म दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
- जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, वह अपने जीवन को नियंत्रित कर लेता है - मन का नियंत्रण जीवन का नियंत्रण है।
- सच्चा योगी वही है जो सभी प्राणियों में समानता देखता है - सभी में एक ही आत्मा का दर्शन करना योग है।
- जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वही सच्चा भक्त है - कर्तव्य पालन ही भक्ति है।
- संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है, सब कुछ परिवर्तनशील है - परिवर्तन ही संसार का नियम है।
- जो व्यक्ति अपने अहंकार को त्याग देता है, वही सच्चा ज्ञानी है - अहंकार का त्याग ज्ञान की निशानी है।
- सच्चा सुख वही है जो आत्मा से प्राप्त होता है - आत्मिक सुख ही सच्चा सुख है।
- जो व्यक्ति अपने इंद्रियों को वश में कर लेता है, वही सच्चा योगी है - इंद्रियों का नियंत्रण योग है।
- सच्चा ज्ञान वही है जो आत्मा का ज्ञान है - आत्मज्ञान ही सच्चा ज्ञान है।
- जो व्यक्ति अपने कर्मों का फल भगवान को अर्पित कर देता है, वही सच्चा भक्त है - कर्म फल का अर्पण भक्ति है।
- जो व्यक्ति अपने मन को शांत रखता है, वह सभी समस्याओं का समाधान पा सकता है - शांति से समाधान मिलता है।
- सच्चा योगी वही है जो सभी प्राणियों के सुख-दुःख को समान रूप से अनुभव करता है - समानुभूति योग है।
- जो व्यक्ति अपने कर्मों को भगवान के प्रति समर्पित करता है, वह सच्चा भक्त है - समर्पण भक्ति है।
- जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, वह सभी इंद्रियों को नियंत्रित कर लेता है - मन का नियंत्रण इंद्रियों का नियंत्रण है।
- सच्चा ज्ञान वही है जो आत्मा का ज्ञान है - आत्मज्ञान ही सच्चा ज्ञान है।
- जो व्यक्ति अपने अहंकार को त्याग देता है, वही सच्चा ज्ञानी है - अहंकार का त्याग ज्ञान की निशानी है।
- सच्चा सुख वही है जो आत्मा से प्राप्त होता है - आत्मिक सुख ही सच्चा सुख है।
- जो व्यक्ति अपने इंद्रियों को वश में कर लेता है, वही सच्चा योगी है - इंद्रियों का नियंत्रण योग है।
- सच्चा योगी वही है जो सभी प्राणियों में समानता देखता है - सभी में एक ही आत्मा का दर्शन करना योग है।
- जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वही सच्चा भक्त है - कर्तव्य पालन ही भक्ति है।
- संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है, सब कुछ परिवर्तनशील है - परिवर्तन ही संसार का नियम है।
- जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, वह अपने जीवन को नियंत्रित कर लेता है - मन का नियंत्रण जीवन का नियंत्रण है।
- ज्ञान योग से श्रेष्ठ है, लेकिन कर्म योग से भी श्रेष्ठ है - ज्ञान और कर्म दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
- मनुष्य अपने विश्वास से बनता है - जैसा विश्वास करता है, वैसा ही बन जाता है।
- कर्म करो, फल की चिंता मत करो - अपने कर्तव्यों का पालन करो और परिणाम की चिंता मत करो।
- मन अशांत है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है - मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से संभव है।
- सच्चा धर्म यह है कि जो बात अपने लिए अच्छी नहीं समझते, उसे दूसरों के लिए भी प्रयोग ना करें - दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा अपने लिए चाहते हो।
- मन की शांति से बढ़कर इस संसार में कोई संपत्ति नहीं है - मन की शांति सबसे बड़ी संपत्ति है।
- कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो : मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं।
- आत्मसंयम महत्वपूर्ण है : जिसने अपने मन को नियंत्रित कर लिया, उसने संसार को जीत लिया।
- अहंकार से दूर रहो : अहंकार व्यक्ति के ज्ञान और विवेक को नष्ट कर देता है।
- समता का अभ्यास करो : सफलता और असफलता, लाभ और हानि में समान रहना ही सच्चा योग है।
- ज्ञान ही सर्वोच्च धरोहर है : अज्ञानता से बड़ा कोई शत्रु नहीं, और ज्ञान से बड़ी कोई शक्ति नहीं।
- आत्मा अमर है : आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है, यह शाश्वत और अजर-अमर है।
- इच्छाओं का त्याग करो : अनियंत्रित इच्छाएं दुख का कारण बनती हैं, उनसे मुक्त रहो।
- क्रोध विनाशकारी है : क्रोध से भ्रम पैदा होता है, और भ्रम से बुद्धि का नाश होता है।
- भक्ति में शक्ति है : जो व्यक्ति अनन्य भाव से मेरी भक्ति करता है, उसे मैं जीवन के सभी संकटों से बचाता हूँ।
- निष्काम कर्म योग का अभ्यास करो : बिना किसी स्वार्थ के कर्म करना ही सबसे उत्तम मार्ग है।
- परिवर्तन संसार का नियम है : संसार में जो कुछ भी है वह परिवर्तनशील है, केवल आत्मा अचल और शाश्वत है।
- स्वधर्म का पालन करो : अपने धर्म और कर्तव्यों का पालन करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है।
- मृत्यु एक नया आरंभ है : मृत्यु केवल इस शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं।
- दूसरों के दोष देखने से पहले अपने दोष देखो : दूसरों की आलोचना से पहले आत्मनिरीक्षण करो और अपने दोषों को सुधारो।
- सत्य का पालन करो : सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं, सत्य पर चलने वाला व्यक्ति सदा विजयी होता है।
- अहिंसा परम धर्म है : किसी भी जीव पर हिंसा करना सबसे बड़ा पाप है, अहिंसा में ही शांति है।
- संकल्प में दृढ़ रहो : जो व्यक्ति अपने संकल्पों में अडिग रहता है, वह किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
- धैर्य और संयम से काम लो : जीवन में आने वाले संकटों को धैर्य और संयम से पार करना ही सच्ची सफलता है।
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