स्वागत है मेरे पोस्ट में। इस पोस्ट में हम एक प्रेरणादायक कहानी जानेंगे। यह कहानी हमें सिखाती है कि कैसे सही बुद्धि और चतुराई से हम जीवन में अपने अधिकार को हासिल कर सकते हैं। यह कहानी हमें बताती है कि दूसरों के प्रति जैसा व्यवहार हम करते हैं, वैसा ही लौटकर हमारे पास आता है। आइए इस दिलचस्प और मनोरंजक कहानी को पढ़ें और समझें कि कैसे एक साधारण व्यक्ति ने अपनी चतुराई से अपने हक को प्राप्त किया।
प्रेरणादायक कहानी जैसे को तैसा
सीतापुरी नामक गांव में जीर्णधन नाम का एक साधारण बनिया रहता था। उसके व्यवसाय में उसे सफलता नहीं मिल रही थी, और आर्थिक तंगी से परेशान होकर उसने विदेश जाकर धन कमाने का निश्चय किया। उसके पास कोई बहुमूल्य चीज़ नहीं थी। उसके पास एक लोहे का तराजू था। विदेश जाते समय उसने वह तराजू अपने गाँव के एक साहूकार के पास धरोहर के रूप में छोड़ दिया और कुछ रुपये उधार ले लिए। जीर्णधन ने साहूकार से वादा किया कि लौटकर वह अपना कर्ज चुकाकर तराजू वापस ले लेगा।दो साल बाद जब जीर्णधन विदेश से लौटा और साहूकार से अपना तराजू वापस माँगा, तो साहूकार ने बहाना बना दिया कि वह तराजू तो चूहों ने खा लिया। जीर्णधन तुरंत समझ गया कि साहूकार उसे धोखा देना चाहता है। उसने साहूकार को बेनकाब करने के लिए एक योजना सोची। उसने साहू के साहूकार के साथ सामान्य व्यवहार किया और अपनी तराजू प्राप्त करने के लिए एक योजना बनाई।
जीर्णधन ने मुस्कुराते हुए साहूकार से कहा कोई बात नहीं इसमें आपकी कोई गलती नहीं है यह तो सारा दोष चूहों का ही है। फिर उसने साहूकार से कहा कि वह नदी में स्नान करने जा रहा है और साथ ही साहूकार के बेटे को भी अपने साथ नहलाने ले जाने का प्रस्ताव रखा। साहूकार ने जीर्णधन को भला आदमी मानकर अपने बेटे को उसके साथ भेज दिया।
जीर्णधन साहूकार के बेटे को नदी के किनारे से थोड़ा दूर ले गया और पास की एक गुफा में उसे बंद कर दिया। गुफा के दरवाजे पर उसने बड़ा पत्थर रख दिया ताकि लड़का बाहर न निकल सके। इसके बाद वह अकेला साहूकार के पास लौट आया।
साहूकार ने उसे अकेला देखकर चिंतित होकर अपने बेटे के बारे में पूछा। जीर्णधन ने साहूकार से कहा, "माफ कीजिए आपके बेटे को एक विशाल चील उठाकर ले गई।" साहूकार ने आश्चर्य से कहा, "ये कैसे संभव है? इतनी बड़ी चील किसी बच्चे को कैसे उठा सकती है?" इस पर जीर्णधन ने चतुराई से उत्तर दिया, "अगर चूहे लोहे का तराजू खा सकते हैं, तो चील भी बच्चे को उठा सकती है।"
साहूकार को अब अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने तुरंत जीर्णधन का तराजू लौटा दिया। जीर्णधन ने भी वादा निभाते हुए साहूकार के बेटे को सुरक्षित घर भेज दिया। इस प्रकार जीर्णधन ने अपने बुद्धि का उपयोग कर तराजू वापस प्राप्त कर लिया।
जीर्णधन साहूकार के बेटे को नदी के किनारे से थोड़ा दूर ले गया और पास की एक गुफा में उसे बंद कर दिया। गुफा के दरवाजे पर उसने बड़ा पत्थर रख दिया ताकि लड़का बाहर न निकल सके। इसके बाद वह अकेला साहूकार के पास लौट आया।
साहूकार ने उसे अकेला देखकर चिंतित होकर अपने बेटे के बारे में पूछा। जीर्णधन ने साहूकार से कहा, "माफ कीजिए आपके बेटे को एक विशाल चील उठाकर ले गई।" साहूकार ने आश्चर्य से कहा, "ये कैसे संभव है? इतनी बड़ी चील किसी बच्चे को कैसे उठा सकती है?" इस पर जीर्णधन ने चतुराई से उत्तर दिया, "अगर चूहे लोहे का तराजू खा सकते हैं, तो चील भी बच्चे को उठा सकती है।"
साहूकार को अब अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने तुरंत जीर्णधन का तराजू लौटा दिया। जीर्णधन ने भी वादा निभाते हुए साहूकार के बेटे को सुरक्षित घर भेज दिया। इस प्रकार जीर्णधन ने अपने बुद्धि का उपयोग कर तराजू वापस प्राप्त कर लिया।
कहानी से सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हम खुद के लिए चाहते हैं। जो लोग दूसरों को धोखा देते हैं, वे स्वयं भी मुश्किलों में फंस सकते हैं। इसलिए दूसरों के साथ न्यायपूर्ण और ईमानदार व्यवहार करना हमेशा हमारे लिए हितकारी होता है।
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