जॉर्ज इवानोविच गुर्जिएफ़ प्रेरक विचार

जॉर्ज इवानोविच गुर्जिएफ़ (1866-1949) एक प्रभावशाली आध्यात्मिक शिक्षक और दार्शनिक थे, जिन्होंने मानव चेतना और आत्म-विकास के गहन पहलुओं पर प्रकाश डाला। उनकी शिक्षाएँ आत्म-जागरूकता, आत्म-अवलोकन, और आंतरिक विकास पर केंद्रित थीं। यहाँ उनके कुछ प्रमुख विचार प्रस्तुत हैं:


आत्म-ज्ञान की आवश्यकता: "सच्चे ज्ञान और अस्तित्व की खोज करने वालों के लिए सुकरात के शब्द 'स्वयं को जानो' सदैव प्रासंगिक हैं।"
 
विज्ञान की प्रत्येक शाखा अपने लिए एक सटीक भाषा विकसित करने का प्रयास करती है, लेकिन कोई सार्वभौमिक भाषा नहीं है। सटीक समझ के लिए सटीक भाषा आवश्यक होती है। यह नई भाषा सापेक्षता के सिद्धांत पर आधारित है; अर्थात, यह सभी अवधारणाओं में सापेक्षता को सम्मिलित करती है और इस प्रकार विचार के कोण का सटीक निर्धारण संभव बनाती है—जिससे तुरंत यह स्थापित किया जा सकता है कि क्या कहा जा रहा है, किस दृष्टिकोण से और किस संदर्भ में। इस नई भाषा में सभी विचार एक केंद्रीय विचार के इर्द-गिर्द केंद्रित होते हैं। यह केंद्रीय विचार विकास का विचार है... और मनुष्य का विकास उसकी चेतना का विकास है।

मुक्ति के दो चरण: "बाहरी प्रभावों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए, पहले आंतरिक प्रभावों से मुक्ति आवश्यक है।"
 

1866

Gurdjieff was born in Alexandropol (now Gyumri), Armenia.

1880s

Traveled extensively through Asia, the Middle East, and Africa in search of spiritual knowledge.

1913

Gurdjieff founded the "Fourth Way" teachings and began sharing his ideas.

1922

Established the Institute for the Harmonious Development of Man in France.

1924

After a serious car accident, shifted focus to writing and teaching in smaller groups.

1949

Passed away in Paris, leaving a legacy of teachings and writings.

गुरजिएफ़ के विचारों के अनुसार, कुछ जिज्ञासु मन होते हैं जो हृदय की सच्चाई की खोज में रहते हैं, जीवन द्वारा प्रस्तुत समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करते हैं, वस्तुओं और घटनाओं की वास्तविकता में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं, और स्वयं के भीतर गहराई से झांकते हैं। यदि कोई व्यक्ति तार्किक रूप से सोचता है, तो इन समस्याओं को हल करने के किसी भी मार्ग पर चलते हुए, वह अनिवार्य रूप से स्वयं पर लौटेगा और यह समझने का प्रयास करेगा कि वह स्वयं क्या है और उसके चारों ओर की दुनिया में उसका स्थान क्या है। बिना इस आत्म-ज्ञान के, उसकी खोज में कोई केंद्र बिंदु नहीं होगा। सॉक्रेटीस के शब्द "अपने आप को जानो" उन सभी के लिए प्रासंगिक हैं जो सच्चे ज्ञान और अस्तित्व की खोज में हैं। 

धर्म का वास्तविक अर्थ: "धर्म केवल विचार या भावना नहीं है; यह क्रियात्मक होना चाहिए, अन्यथा यह केवल कल्पना या दर्शन है।"
 
गुरजिएफ़ कहते थे कि एक गुरु का मुख्य कार्य दूसरों की मदद करना है, चाहे वह पारंपरिक नैतिक मानदंडों का उल्लंघन ही क्यों न करे। उनका दृष्टिकोण यह था कि "यदि एक संत मदद नहीं कर सकता, तो उसका यहां होना व्यर्थ है।" यह विचार एक गुरु की जिम्मेदारी और उसके कार्यों की प्राथमिकता को समझाता है।

गुरजिएफ़ को आलोचना का सामना करना पड़ा क्योंकि लोग उन्हें या तो अत्यंत दुष्ट या अत्यंत महान मानते थे। उनके बारे में कहा गया, "वह एक पवित्र पापी या एक पापी संत थे।" यह विचार यह दिखाता है कि एक सच्चे गुरु का व्यक्तित्व जटिल और साधारण सोच से परे होता है।
 
गुरजिएफ़ का मानना था कि कभी-कभी एक गुरु को झूठ का सहारा लेना पड़ता है ताकि शिष्यों को उनकी गहरी नींद से जगाया जा सके। "यह सत्य नहीं है कि आपके पास आत्मा नहीं है, लेकिन अगर मैं यह कहूं तो मैं आपको नींद से जगा सकता हूं और आपको खोजने के लिए प्रेरित कर सकता हूं।" यह विचार दर्शाता है कि एक महान गुरु अपने उद्देश्य के लिए कभी-कभी असामान्य तरीकों का उपयोग कर सकता है।

प्रार्थना का महत्व: "जैसे अन्य चीज़ों को सीखना पड़ता है, वैसे ही प्रार्थना करना भी सीखना आवश्यक है। उचित एकाग्रता के साथ की गई प्रार्थना परिणाम देती है।"

पड़ोसी के कल्याण के लिए प्रयास: "मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य अपने पड़ोसी के कल्याण के लिए प्रयास करना है, और यह अपने स्वयं के हितों का सचेत त्याग करके ही संभव है।"

स्वयं के प्रति ईमानदारी: "यदि आप स्वयं के प्रति ईमानदार नहीं हैं, तो आप किसी और के प्रति भी ईमानदार नहीं हो सकते।"

चेतना का विकास: "मनुष्य का विकास उसकी चेतना के विकास के समानुपाती है।"
 
गुरजिएफ़ ने कहा कि हमें हमेशा अपने अंदर एक "प्रेक्षक" को याद करना चाहिए। यह प्रक्रिया आत्म-जागरूकता को बढ़ाने में मदद करती है। लेकिन इसमें एक खतरा यह है कि लोग आत्म-जागरूकता के बजाय आत्म-अहंकार (self-consciousness) में फंस सकते हैं, जिससे उनका "स्व" अहंकारी बन सकता है।
 
गुरजिएफ़ कहते हैं, "आप केवल शरीर हैं, और जब शरीर मरता है, तो आप भी मर जाएंगे। केवल वही व्यक्ति मृत्यु के बाद जीवित रहता है, जिसने अपने जीवन में आत्मा का निर्माण किया है। एक बुद्ध या एक यीशु जीवित रहते हैं, लेकिन आप नहीं।" इस विचार का उद्देश्य हमें आत्मा के महत्व को समझाना है और यह प्रेरित करना है कि आत्म-जागरूकता और आत्मा का विकास जीवन का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए।
 
गुरजिएफ़ कहते हैं, "आपको बताया गया है कि आप पहले से ही आत्मा हैं, लेकिन मैं कहता हूं कि आप पहले से आत्मा नहीं हैं। आप केवल एक अवसर हैं। आप इस अवसर का उपयोग कर सकते हैं या इसे खो सकते हैं।" यह विचार लोगों की झूठी सांत्वनाओं को तोड़ने और आत्मा की खोज के प्रति जागरूक करने के लिए था।

स्वचालित जीवन से मुक्ति: "अधिकांश लोग स्वचालित रूप से जीते हैं; जागरूकता के बिना जीवन अधूरा है।"

आंतरिक संघर्ष का महत्व: "आंतरिक संघर्ष आत्म-विकास के लिए आवश्यक है; यह आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है।"

सपनों की वास्तविकता: "यदि आप स्वयं को याद रखते हैं, तो तथाकथित वास्तविकता भी एक सपना बन जाती है।"

ज्ञान की सीमाएँ: "सच्चा ज्ञान यह समझने में है कि हम वास्तव में कुछ नहीं जानते।"

आत्म-अवलोकन की कला: "स्वयं का अवलोकन करना सीखें; यह आत्म-ज्ञान की पहली सीढ़ी है।"
 
बुद्ध का मानना था कि "स्व" का कोई अस्तित्व नहीं है। यह केवल भाषा और व्याकरण का एक हिस्सा है। उन्होंने कहा, "सिर्फ अपने अनुभवों और भावनाओं को देखो, और वे धीरे-धीरे गायब हो जाएंगी।" इस दृष्टिकोण में प्रेक्षक (observer) को भी भुला देना शामिल है, जिससे केवल शांति बचती है।

प्रयास का महत्व: "बिना प्रयास के कुछ भी मूल्यवान प्राप्त नहीं होता; प्रयास आत्म-विकास की कुंजी है।"

समय का सदुपयोग: "समय सबसे मूल्यवान संपत्ति है; इसे जागरूकता के साथ व्यतीत करें।"

भावनाओं का संतुलन: "सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं के बीच संतुलन बनाना आत्म-विकास के लिए आवश्यक है।"
 
गुरजिएफ़ के आत्म-स्मरण और बुद्ध के आत्म-भूलने के बीच बुद्ध का तरीका अधिक सुरक्षित है। बुद्ध का कहना था, "क्रोध, दुख, और अन्य भावनाओं को बस देखो, बिना उन्हें 'मेरा' कहे। जब वे भावनाएं समाप्त हो जाती हैं, तो केवल मौन और शांति बचती है।"

सपनों से परे जाना: "यदि आप सपने में 'मैं हूँ' याद रख सकते हैं, तो अचानक सपना सिर्फ एक सपना बन जाता है।"

आत्म-स्मरण की शक्ति: "आत्म-स्मरण में लगातार स्थिर रहें, 'मैं हूँ, मैं हूँ, मैं हूँ।' इसे मत भूलना।"
 
गुरजिएफ़ की महानता से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन लोग अक्सर यह समझने में असमर्थ रहते हैं कि वह संत हैं या शैतान। वह जानबूझकर ऐसा व्यवहार करते थे जिससे लोगों के मन में यह दुविधा बनी रहे। इसका उद्देश्य था केवल उन्हीं लोगों को अपने पास रखना, जो अपने आत्मविश्वास और प्रयास से खुद को बदलने के लिए तैयार हों।

विचारों की स्पष्टता: "स्पष्ट विचार आत्म-जागरूकता की दिशा में पहला कदम है।"

आत्म-नियंत्रण का महत्व: "आत्म-नियंत्रण के बिना, सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती।"

जीवन का उद्देश्य: "जीवन का उद्देश्य आत्म-विकास और उच्च चेतना की प्राप्ति में है।"
 
गुरजिएफ़ के साथ समर्पण का अर्थ यह था कि यह निर्णय व्यक्ति की अपनी ताकत और आत्मविश्वास से प्रेरित हो। वह किसी को आसानी से भरोसा नहीं दिलाते थे, बल्कि कठिनाईयां खड़ी करते थे। इसके विपरीत, रामण महर्षि जैसे संतों के साथ समर्पण आसान होता है, क्योंकि उनकी सरलता और पवित्रता स्वतः ही लोगों को समर्पण की ओर ले जाती है। गुरजिएफ़ के साथ समर्पण आपकी आंतरिक ताकत को दर्शाता है और गहरा परिवर्तन लाता है।

गुर्जिएफ़ के ये विचार आत्म-जागरूकता और आत्म-विकास की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें अपने भीतर गहराई से झांकने और जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए प्रेरित करती हैं।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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