कहानी फरिश्ता
अस्पताल के गलियारे में तेज़ी से चलते हुए, ऑन-ड्यूटी नर्स ने चिंतित युवा सेना के कप्तान अर्जुन को बिस्तर के पास ले जाकर धीरे से कहा,
"आपका बेटा आया है।"
बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले नर्स को ये शब्द दो-तीन बार दोहराने पड़े। दिल के दौरे से जूझ रहे उस बूढ़े आदमी ने बेहोशी की हालत में अपनी पलकों को हल्का सा झपकाया और ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े वर्दीधारी अर्जुन को देखा।कप्तान अर्जुन ने धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया, जैसे वह अपने प्रेम और स्नेह को उस नाजुक देह तक पहुंचाना चाहता हो। उन्होंने कांपते हाथों को अपनी मजबूत उंगलियों में कसकर पकड़ लिया और हल्की मुस्कान के साथ उनका अहसास दिलाया कि वह अकेले नहीं हैं।नर्स तुरंत एक कुर्सी ले आई, ताकि अर्जुन आराम से बैठ सके।"धन्यवाद, बहन," अर्जुन ने नम्रता से कहा और कुर्सी पर बैठकर बुजुर्ग का हाथ अपने हाथ में थामे रखा।सारी रात वह वहीं बैठा रहा। खराब रोशनी वाले वार्ड में, जहाँ ऑक्सीजन मशीन की गड़गड़ाहट गूँज रही थी, अर्जुन बस उनके हाथ को पकड़कर धीमे-धीमे दिलासा देता रहा।बीच-बीच में नर्स ने आग्रह किया कि वह कुछ देर आराम कर ले, पर हर बार अर्जुन हल्की मुस्कान के साथ मना कर देता। बाहर स्टाफ की हंसी, अन्य मरीजों की कराहटें, मशीनों की आवाज़—कुछ भी उसे विचलित नहीं कर पा रहा था।उसने बस एक बेटे की तरह अपना फर्ज निभाया। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, बस पूरी रात अर्जुन का हाथ थामे रखा।सुबह की पहली किरण के साथ, बुजुर्ग ने अंतिम सांस ली। अर्जुन ने धीरे से उनके बेजान हाथों को छोड़ा और नर्स को सूचित करने चला गया।नर्स जब सांत्वना देने के लिए कुछ कहने लगी, तो अर्जुन ने उसे रोकते हुए पूछा,"कौन थे ये बुजुर्ग?"नर्स चौंक गई, "वह आपके पिता थे, न?"अर्जुन हल्के से मुस्कुराया और सिर हिला दिया। "नहीं, मैंने इन्हें पहले कभी नहीं देखा।"नर्स की आंखें आश्चर्य से फैल गईं। "तो जब मैंने आपको इनके पास लाकर कहा कि आपका बेटा आया है, तब आपने कुछ कहा क्यों नहीं?"अर्जुन ने गहरी सांस ली और शांत स्वर में कहा, "जब मैंने पहली बार इन्हें देखा, तभी समझ गया था कि कोई गलती हुई है। लेकिन उनकी हालत देखकर मुझे एहसास हुआ कि इस समय उन्हें अपने बेटे की जरूरत थी, और उनका बेटा यहाँ नहीं था। इसलिए मैं उनके लिए वही बन गया जो उन्हें चाहिए था।" You may also like
नर्स चुपचाप सुनती रही।"दरअसल, मैं यहाँ श्री रमेश मल्होत्रा को खोजने आया था। उनके बेटे की कल रात सीमा पर शहादत हो गई थी, और मुझे उन्हें यह खबर देने के लिए भेजा गया था।"नर्स स्तब्ध रह गई। "लेकिन जिनका हाथ आप पूरी रात पकड़े रहे... वो ही श्री रमेश मल्होत्रा थे।"कुछ देर तक दोनों मौन खड़े रहे।इस एहसास के साथ कि किसी के लिए आखिरी वक्त में बस यह अहसास कि कोई उसका अपना पास है, दुनिया की सबसे बड़ी सांत्वना हो सकती है।जब अगली बार किसी को आपकी ज़रूरत हो, तो बस उनके साथ रहिए। आपका साथ, आपके शब्द, आपका आश्वासन शायद उनके जीवन की सबसे बड़ी राहत बन जाए।
इस कहानी का संदेश मानवता और संवेदनशीलता की गहराई को दर्शाता है। कभी-कभी किसी को दिलासा देने और सहारा देने के लिए खून का रिश्ता होना ज़रूरी नहीं होता, बल्कि सिर्फ़ इंसानियत की भावना काफ़ी होती है। अर्जुन ने अपनी ड्यूटी से परे जाकर एक अनजान व्यक्ति को अपने अंतिम समय में वह प्यार और सहारा दिया, जिसकी उसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। यह हमें यह सिखाता है कि कभी-कभी किसी के साथ बस चुपचाप खड़े रहना भी एक बड़ी मदद हो सकती है। जब किसी को आपके साथ की ज़रूरत हो, तो बस एक फरिश्ता बनकर वहां मौजूद रहिए—शब्दों से ज्यादा, आपकी मौजूदगी ही उसकी सबसे बड़ी ताकत हो सकती है।