बिहारी के दोहे Bihari Ke Dohe

बिहारी के दोहे Bihari Ke Dohe बिहारी के दोहे हिंदी में

लखि लोइन लोइननु कौं को इन होइ न आज।
कौन गरीब निवाजिबौ कित तूठ्यौ रतिराज॥

मन न धरति मेरौ कह्यौ तूँ आपनैं सयान।
अहे परनि पर प्रेम की परहथ पारि न प्रान॥

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बहकि न इहिं बहिनापुली जब-तब बीर बिनासु।
बचै न बड़ी सबीलहूँ चील-घोंसुआ मांसु

मैं तोसौं कैबा कह्यौ तू जिनि इन्हैं पत्याइ।
लगालगी करि लोइननु उर में लाई लाइ॥

सनु सूक्यौ बीत्यौ बनौ ऊखौ लई उखारि।
हरी-हरी अरहरि अजौं धर धरहरि जिय नारि॥

जौ वाके तन को दसा देख्यौ चाहत आपु।
तौ बलि नैंकु बिलोकियै चलि अचकाँ चुपचापु॥

कहा कहौं बाकी दसा हरि प्राननु के ईस।
बिरह-ज्वाल जरिबो लखैं मरिबौ भयौ असीस॥

नैंकु न जानी परती यौ पर्‌यौं बिरह तनु छामु।
उठति दियैं लौं नाँदि हरि लियैं तिहारो नामु॥

दियौ सु सोस चढ़ाइ लै आछी भाँति अएरि।
जापैं सुखु चाहतु लियौ ताके दुखहिं न फेरि॥


बिहारी लाल के बारे में : कवी बिहारी या बिहारी लाल को महाकवि बिहारीलाल के नाम से जाना जाता है और इनका जन्म १६०३ को हुआ था। बिहारी लाल का जन्म ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता का नाम केशवराय  था। इनकी जाती चौबे माथुर थी। ८ वर्ष की आयु में केशवराय उन्हें अपने साथ ओरछा ले आये थे उनका बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ था। बिहारी लाल के गुरु का नाम नरहरिदास था।
 
मान्यता है की तात्कालिक जयपुर के शासक मिर्जा राजा सवाई जयसिंह थे जो की अपनी रानी के प्रेम में डूबे रहते थे। इस कारन से उनके राज्य में अफरा तफरी का माहौल बन गया था और प्रजा बहुत दुखी थी। राजा के डर से कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था। बिहारी लाल ने साहस करके राजा को एक चिट्ठी लिखी जिसमे उन्होंने लिखा की ना तो इस समय मीठे पराग का समय है और ना ही शहद अभी मीठा हुआ है, यदि अभी भी भंवरा कली के आगोश में खोया रहता है तो ना जाने आगे उसका क्या हाल होगा। यह व्यंग्य था राजा पर जिसके माध्यम से वो राजा सवाई सिंह को यह सन्देश देना चाहते थे की प्रजा पर ध्यान दिया जाय और वे अपना राज धर्म निभाए।
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल॥

इस दोहे ने किसी मंत्र की तरह से कार्य किया और राजा की आँखे खोल दी वह प्रजा पर ध्यान देने लग गए और उन्होंने बिहारी लाल को अपना राज कवी बनाया।बिहारी लाल को दोहे लिखने के लिए राजा ने ही कहा और उनसे वायदा किया की प्रत्येक दोहे पर उन्हें सोने की एक अशर्फी दी जायेगी। उनके प्रशय के कारन बिहारी लाल को खूब सम्मान और धन मिला। बिहारी की रचनाओं को सतसई में संजोया गया है जो की उनके द्वारा रचित एक मात्र कृति है। उस समय उत्तर भारत में ब्रज भाषा प्रमुखता से बोली जाती थी और ब्रज भाषा में ही उन्होंने सतसई को लिखा। सतसई को तीन प्रकार के दोहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पठान नीति विषयक, भक्ति और अध्यात्म भावपरक, तथा शृगांरपपरक। इनमें से शृंगारात्मक भाग अधिक है।बिहारी लाल ने श्री कृष्ण भक्ति से सबंधित दोहे लिखे जो जन मानस में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए। उनके द्वारा रचित दोहों से यह स्पष्ट है की वे श्री कृष्ण के उपासक थे।

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