बिहारी लाल के बारे में :
कवी बिहारी या बिहारी लाल को महाकवि बिहारीलाल के नाम से जाना जाता है और
इनका जन्म १६०३ को हुआ था। बिहारी लाल का जन्म ग्वालियर में हुआ था। उनके
पिता का नाम केशवराय था। इनकी जाती चौबे माथुर थी। ८ वर्ष की आयु में
केशवराय उन्हें अपने साथ ओरछा ले आये थे उनका बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत
हुआ था। बिहारी लाल के गुरु का नाम नरहरिदास था।
Bihari Ke Dohe,Dohe
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल॥
इस
दोहे ने किसी मंत्र की तरह से कार्य किया और राजा की आँखे खोल दी वह प्रजा
पर ध्यान देने लग गए और उन्होंने बिहारी लाल को अपना राज कवी बनाया।बिहारी
लाल को दोहे लिखने के लिए राजा ने ही कहा और उनसे वायदा किया की प्रत्येक
दोहे पर उन्हें सोने की एक अशर्फी दी जायेगी। उनके प्रशय के कारन बिहारी
लाल को खूब सम्मान और धन मिला। बिहारी की रचनाओं को सतसई में संजोया गया है
जो की उनके द्वारा रचित एक मात्र कृति है। उस समय उत्तर भारत में ब्रज
भाषा प्रमुखता से बोली जाती थी और ब्रज भाषा में ही उन्होंने सतसई को लिखा।
सतसई को तीन प्रकार के दोहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पठान नीति
विषयक, भक्ति और
अध्यात्म भावपरक, तथा शृगांरपपरक। इनमें से शृंगारात्मक भाग अधिक है।बिहारी
लाल ने श्री कृष्ण भक्ति से सबंधित दोहे लिखे जो जन मानस में शीघ्र ही
लोकप्रिय हो गए। उनके द्वारा रचित दोहों से यह स्पष्ट है की वे श्री कृष्ण
के उपासक थे।
लखि लोइन लोइननु कौं को इन होइ न आज। कौन गरीब निवाजिबौ कित तूठ्यौ रतिराज॥ अर्थ: यह देखकर कि राधा की आँखें (दृष्टि) कृष्ण पर टिकी हुई हैं, कोई भी व्यक्ति उनकी महानता को नकार नहीं सकता। राधा का प्रेम इस बात का प्रमाण है कि वह सच में गरीब (दुखियों) के सहायक और प्रेम के देवता हैं।
मन न धरति मेरौ कह्यौ तूँ आपनैं सयान। अहे परनि पर प्रेम की परहथ पारि न प्रान॥ अर्थ: मेरे प्रिय, तुमने मुझे सलाह दी कि मैं अपनी समझ से काम लूं, लेकिन मैं समझता हूं कि प्रेम में पराई बातों को सहन करना, अपनी जान को दांव पर लगाने जैसा है।
बहकि न इहिं बहिनापुली जब-तब बीर बिनासु।
बचै न बड़ी सबीलहूँ चील-घोंसुआ मांसु॥ अर्थ: जैसे चील और घोंसले के शिकार (मांस) को नहीं छोड़ते, वैसे ही वीरता बिना अनुशासन के विनाश की ओर जाती है।
मैं तोसौं कैबा कह्यौ तू जिनि इन्हैं पत्याइ। लगालगी करि लोइननु उर में लाई लाइ॥ अर्थ: मैंने तुमसे कहा था कि तुम इन आँखों पर विश्वास मत करो, क्योंकि ये प्रेम की लहरों से भरी हुई हैं और हृदय में जगह बना लेती हैं।
सनु सूक्यौ बीत्यौ बनौ ऊखौ लई उखारि। हरी-हरी अरहरि अजौं धर धरहरि जिय नारि॥ अर्थ: समय बीत चुका है, गन्ने का रस समाप्त हो गया और उसे उखाड़ लिया गया, लेकिन अब भी वह नारियल (आत्मा) हरियाली की आशा में लगी हुई है।
जौ वाके तन को दसा देख्यौ चाहत आपु। तौ बलि नैंकु बिलोकियै चलि अचकाँ चुपचापु॥ अर्थ: यदि आप उसके शरीर की दशा देखना चाहते हैं, तो बिना बोले चुपचाप उसकी ओर देख लीजिए। प्रेम की गहराई स्वयं दिख जाएगी।
कहा कहौं बाकी दसा हरि प्राननु के ईस। बिरह-ज्वाल जरिबो लखैं मरिबौ भयौ असीस॥ अर्थ: मैं क्या कहूं कि विरह के कारण व्यक्ति की दशा कैसी हो जाती है। भगवान के प्राणों के स्वामी (प्रेमी) इसे देखकर यही आशीर्वाद देते हैं कि वे ऐसी दशा में कभी न पड़ें।
नैंकु न जानी परती यौ पर्यौं बिरह तनु छामु। उठति दियैं लौं नाँदि हरि लियैं तिहारो नामु॥ अर्थ: बिना किसी कारण के भी विरह की पीड़ा सहते हुए यह शरीर सूख गया है। दीया बुझने से पहले भी, केवल तुम्हारा नाम ही जपा जा रहा है।
दियौ सु सोस चढ़ाइ लै आछी भाँति अएरि। जापैं सुखु चाहतु लियौ ताके दुखहिं न फेरि॥ अर्थ: जिसने सुख की कामना की और उसे प्राप्त किया, उसे दुःख भी उसी तरह स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि सुख-दुख जीवन के चक्र का हिस्सा हैं।
Author - Saroj Jangir
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