1. अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी
अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी।
घहराय कै कारी घटा उनई, इतनेई में गागरि सीस धरी।
रपटयो पग, घाट चढयो न गयो, कवि मंडन ह्वै कै बिहाल गिरी।
चिर जीवहु नंद के बारो, अरी, गहि बाँह गरीब ने ठाढ़ी करी।
2. माहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै
माहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै
नीठि चलै जल वास अचै, लपटाइ लता तरु मारग मैं कै
पोंछत सीतन तैं श्रम स्वेदन, खेद हरै सब राति रमै कै
आवत जाति झरोखन कैं मग, सीतल बात प्रभात समै कै।
3. है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
अंध कै गंध बढ़ाय लै जात है, मंजुल मारुत कुंज गली कौ
कैसेहुँ भोर मुठी मैं पर्यौ, समुझैं रहियौ न छुट्यौ नहिं नीकौ
देखति बेलि उतैं बिगसी, इत हौ बिगस्यौ बन बौलसरी कौं।।
4. बौरसरी मधुपान छक्यौ, मकरन्द भरे अरविन्द जु न्हायौ
बौरसरी मधुपान छक्यौ, मकरन्द भरे अरविन्द जु न्हायौ
माधुरी कुंज सौं खाइ धका, परि केतकि पाँडर कै उठि धायौ
सौनजुही मँडराय रह्यौ, बिनु संग लिए मधुपावलि गायौ
चंपहि चूरि गुलाबहिं गाहि, समीर चमेलिहि चूँवति आयौ।।
5. जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी ।।
6. खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
प्यार जनाय घरैंनु सौं लै, भरि मूँठि गुलाल दुहूँ दृग दीनौ
लोचन मीडै उतै उत बेसु, इतै मैं मनोरथ पूरन कीनौ
नागर नैंक नवोढ़ त्रिया, उर लाय चटाक दै चूँबन लीनौ।
7. नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली
नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली,
लटुन सी साँवरी रजनि सरसान दै,
नूपुर उतारन किंकनी खोल डारनि दै
धारन दै भूषन कपूर पान खान दै,
सरस सिंगार कै बिहारी लालै बसि करौ
बसि न करि सकै ज्यौं आन प्रिय प्रान दै,
तौ लगि तू धीर धर एतौ मेरौ कह्यौ करि
चलिहौं कन्हैया पै जुन्हैया नैंकु जानि दै।।
8. जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै
जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै
तुम तौ बधात ही तै वहै नाँध नाध्यौ है।
लीजिये न छेहु निरगुन सौं न होइ नेहु
परबस देहु गेहु ये ही सुख साँध्यौ है।
गोकुल के लोग पैं गुपाल न बिसार्यौ जाइ
रावरे कहे तौ क्यौं हूँ जोगो काँध काँध्यौ है।
कीजिए न रारि ऊधौ देखिये विचारि काहु
हीरा छोड़ि डारि कै कसीरा गाँठि बाँध्यौ है।।
9. वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली
वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली।
साँप फुकारन सीस रसारनु है सबसे जिय ऊपर खेली।
बाइक एक ही बार उजारि कै मारि सबै ब्रज नारि नवेली।
मोहन संग तू लै जसुरी, बसु (री) बँसुरी ब्रज आइ अकेली।।
10. बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी
बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी।
घर तैं लखि चन्द्रमुखीन चली, चलि माह अन्हान कछू जु सदी।
पहिलैं ही सहेलनि तैं सबके, बरजें हसि घाइ घसौ अबदी।
परस्यौ कर जाइ न न्हाय सु कौन, री अंग लगे उफनान नदी।।
11. सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै
सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै।
मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू ,सु कहयौ कछु ये सुति साँभलिए।
भौर ते साँझि भई न अजौं, घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।
रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ, उर लागी दुहून चलौ चलिए।।
12. केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
बरनीं न जाइ अवरन बै गई।
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,
उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव
चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय
जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।
13. रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ।
प्रेम छकी रसबस अलसाड़ी, जाणे कमलकी पाँखड़ियाँ॥
सुंदर रूप लुभाई गति मति, हो गईं ज्यूँ मधु माँखड़ियाँ।
रसिक बिहारी वारी प्यारी, कौन बसी निस काँखड़ियाँ॥
14. हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ।
साराँ देखे लाज मराँ छाँ आवाँ किण जतनाँ॥
छैल अनोखो कह्यो न मानै लोभी रूप सनाँ।
रसिक बिहारी नणद बुरी छै हो लाग्यो म्हारो मनाँ॥
15. मैं अपनौ मनभावन लीनों
मैं अपनौ मनभावन लीनों॥
इन लोगनको कहा कीनों मन दै मोल लियो री सजनी।
रत्न अमोलक नंददुलारो नवल लाल रंग भीनों॥
कहा भयो सबके मुख मोरे मैं पायो पीव प्रवीनों।
रसिक बिहारी प्यारो प्रीतम सिर बिधना लिख दीनों॥
16. पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है
पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है।
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है॥१॥
हरिया तरवर सरवर भरिया जमुना नीर कलोलै है।
मन मोलै है, बागोंमें मोर सुहावणो बोलै है॥२॥
आभा माहीं बिजली चमकै जलधर गहरो गाजै है।
रितु राजै है, स्यामकी सुंदर मुरली बाजै है॥३॥
(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारीजी री चूनर सारी है।
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है॥४॥
अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी।
घहराय कै कारी घटा उनई, इतनेई में गागरि सीस धरी।
रपटयो पग, घाट चढयो न गयो, कवि मंडन ह्वै कै बिहाल गिरी।
चिर जीवहु नंद के बारो, अरी, गहि बाँह गरीब ने ठाढ़ी करी।
2. माहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै
माहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै
नीठि चलै जल वास अचै, लपटाइ लता तरु मारग मैं कै
पोंछत सीतन तैं श्रम स्वेदन, खेद हरै सब राति रमै कै
आवत जाति झरोखन कैं मग, सीतल बात प्रभात समै कै।
3. है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
अंध कै गंध बढ़ाय लै जात है, मंजुल मारुत कुंज गली कौ
कैसेहुँ भोर मुठी मैं पर्यौ, समुझैं रहियौ न छुट्यौ नहिं नीकौ
देखति बेलि उतैं बिगसी, इत हौ बिगस्यौ बन बौलसरी कौं।।
4. बौरसरी मधुपान छक्यौ, मकरन्द भरे अरविन्द जु न्हायौ
बौरसरी मधुपान छक्यौ, मकरन्द भरे अरविन्द जु न्हायौ
माधुरी कुंज सौं खाइ धका, परि केतकि पाँडर कै उठि धायौ
सौनजुही मँडराय रह्यौ, बिनु संग लिए मधुपावलि गायौ
चंपहि चूरि गुलाबहिं गाहि, समीर चमेलिहि चूँवति आयौ।।
5. जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी ।।
6. खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
प्यार जनाय घरैंनु सौं लै, भरि मूँठि गुलाल दुहूँ दृग दीनौ
लोचन मीडै उतै उत बेसु, इतै मैं मनोरथ पूरन कीनौ
नागर नैंक नवोढ़ त्रिया, उर लाय चटाक दै चूँबन लीनौ।
7. नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली
नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली,
लटुन सी साँवरी रजनि सरसान दै,
नूपुर उतारन किंकनी खोल डारनि दै
धारन दै भूषन कपूर पान खान दै,
सरस सिंगार कै बिहारी लालै बसि करौ
बसि न करि सकै ज्यौं आन प्रिय प्रान दै,
तौ लगि तू धीर धर एतौ मेरौ कह्यौ करि
चलिहौं कन्हैया पै जुन्हैया नैंकु जानि दै।।
8. जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै
जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै
तुम तौ बधात ही तै वहै नाँध नाध्यौ है।
लीजिये न छेहु निरगुन सौं न होइ नेहु
परबस देहु गेहु ये ही सुख साँध्यौ है।
गोकुल के लोग पैं गुपाल न बिसार्यौ जाइ
रावरे कहे तौ क्यौं हूँ जोगो काँध काँध्यौ है।
कीजिए न रारि ऊधौ देखिये विचारि काहु
हीरा छोड़ि डारि कै कसीरा गाँठि बाँध्यौ है।।
9. वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली
वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली।
साँप फुकारन सीस रसारनु है सबसे जिय ऊपर खेली।
बाइक एक ही बार उजारि कै मारि सबै ब्रज नारि नवेली।
मोहन संग तू लै जसुरी, बसु (री) बँसुरी ब्रज आइ अकेली।।
10. बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी
बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी।
घर तैं लखि चन्द्रमुखीन चली, चलि माह अन्हान कछू जु सदी।
पहिलैं ही सहेलनि तैं सबके, बरजें हसि घाइ घसौ अबदी।
परस्यौ कर जाइ न न्हाय सु कौन, री अंग लगे उफनान नदी।।
11. सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै
सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै।
मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू ,सु कहयौ कछु ये सुति साँभलिए।
भौर ते साँझि भई न अजौं, घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।
रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ, उर लागी दुहून चलौ चलिए।।
12. केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
बरनीं न जाइ अवरन बै गई।
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,
उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव
चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय
जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।
13. रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ।
प्रेम छकी रसबस अलसाड़ी, जाणे कमलकी पाँखड़ियाँ॥
सुंदर रूप लुभाई गति मति, हो गईं ज्यूँ मधु माँखड़ियाँ।
रसिक बिहारी वारी प्यारी, कौन बसी निस काँखड़ियाँ॥
14. हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ
हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ।
साराँ देखे लाज मराँ छाँ आवाँ किण जतनाँ॥
छैल अनोखो कह्यो न मानै लोभी रूप सनाँ।
रसिक बिहारी नणद बुरी छै हो लाग्यो म्हारो मनाँ॥
15. मैं अपनौ मनभावन लीनों
मैं अपनौ मनभावन लीनों॥
इन लोगनको कहा कीनों मन दै मोल लियो री सजनी।
रत्न अमोलक नंददुलारो नवल लाल रंग भीनों॥
कहा भयो सबके मुख मोरे मैं पायो पीव प्रवीनों।
रसिक बिहारी प्यारो प्रीतम सिर बिधना लिख दीनों॥
16. पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है
पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है।
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है॥१॥
हरिया तरवर सरवर भरिया जमुना नीर कलोलै है।
मन मोलै है, बागोंमें मोर सुहावणो बोलै है॥२॥
आभा माहीं बिजली चमकै जलधर गहरो गाजै है।
रितु राजै है, स्यामकी सुंदर मुरली बाजै है॥३॥
(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारीजी री चूनर सारी है।
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है॥४॥
बिहारी लाल के बारे में : कवी बिहारी या बिहारी लाल को महाकवि बिहारीलाल के नाम से जाना जाता है बिहारी लाल हिंदी साहित्य के रीति काल के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। उन्हें "कविकुलगुरु" और "बिहारी" के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 1603 में ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता का नाम केशवराय था और उनकी माता का नाम राधिका देवी था। बिहारी लाल की जाति चौबे माथुर थी।
बिहारी लाल का बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ। उन्होंने अपने गुरु नरहरिदास से संस्कृत, व्याकरण, दर्शन और साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया। बिहारी लाल ने अपने जीवन में कई रचनाएँ कीं, जिनमें "सतसई" उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। सतसई में बिहारी लाल ने श्रृंगार रस पर आधारित कविताएँ लिखी हैं। उनकी अन्य रचनाओं में "दोहावली", "शकुंतला", "अष्टयाम" और "विरह-विलाप" शामिल हैं।
बिहारी लाल की रचनाओं में भाषा का प्रयोग अत्यंत सुंदर और प्रभावशाली है। उन्होंने अपने काव्य में अनेक अलंकारों का प्रयोग किया है, जिनमें श्लेष, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, अतिशयोक्ति आदि प्रमुख हैं। बिहारी लाल की रचनाओं में मानवीय प्रेम, विरह, सौंदर्य और हास्य का सुंदर चित्रण मिलता है। बिहारी लाल की रचनाओं का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनकी रचनाओं को आज भी पढ़ा और सराहा जाता है। बिहारी लाल को हिंदी साहित्य का एक अमर कवि माना जाता है।
बिहारी लाल का बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ। उन्होंने अपने गुरु नरहरिदास से संस्कृत, व्याकरण, दर्शन और साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया। बिहारी लाल ने अपने जीवन में कई रचनाएँ कीं, जिनमें "सतसई" उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है। सतसई में बिहारी लाल ने श्रृंगार रस पर आधारित कविताएँ लिखी हैं। उनकी अन्य रचनाओं में "दोहावली", "शकुंतला", "अष्टयाम" और "विरह-विलाप" शामिल हैं।
बिहारी लाल की रचनाओं में भाषा का प्रयोग अत्यंत सुंदर और प्रभावशाली है। उन्होंने अपने काव्य में अनेक अलंकारों का प्रयोग किया है, जिनमें श्लेष, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, अतिशयोक्ति आदि प्रमुख हैं। बिहारी लाल की रचनाओं में मानवीय प्रेम, विरह, सौंदर्य और हास्य का सुंदर चित्रण मिलता है। बिहारी लाल की रचनाओं का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनकी रचनाओं को आज भी पढ़ा और सराहा जाता है। बिहारी लाल को हिंदी साहित्य का एक अमर कवि माना जाता है।
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