सुत मुख देखि जसोदा फूली हिंदी मीनिंग
सुत-मुख देखि जसोदा फूली।
हरषित देखि दूध की दंतुली प्रेम-मगन तन की सुधि भूली॥
बाहिर तें तब नंद बुला देखौं धौ सुन्दर सुखदा।
तनक-तनक-सी दूध-दंतुलियां देखौ नैन सफल करौं आ॥
आनंद सहित महर तब आये मुख चितवत दो नैन अघा।
सूर स्याम किलकत द्विज देखे मानों कमल पर बिज्जु जमा॥२॥
इस पद में सूरदास जी श्रीकृष्ण के बाल रूप की सुंदरता का वर्णन करते हैं, जो की अत्यंत ही सुन्दर वर्णन है। श्रीकृष्ण के दाँत दूध के थे (कच्चे दांत), जो बहुत ही सुंदर थे। श्रीयशोदा जी उन्हें देखकर फूली नहीं समाती थीं। वे अपने पुत्र के प्रेम में इतनी डूब गई थीं कि उन्हें अपने शरीर की भी सुध नहीं रह गई थी।
श्रीकृष्ण के दाँत बहुत छोटे थे, जैसे कि तार पर मोतियों की माला। श्रीयशोदा जी ने अपने पति नन्द को बुलाया और उन्हें अपने पुत्र की सुंदरता दिखाई। नन्द जी भी अपने पुत्र को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण के दाँत देखकर गोपियाँ भी बहुत प्रसन्न हुईं। वे अपने पति को बुलाकर उन्हें भी अपने पुत्र की सुंदरता दिखाई।
सूरदास जी कहते हैं कि श्रीकृष्ण की शिशु अवस्था की लीलाएँ अपरंपार हैं। वे साक्षात भगवान् विष्णु के अवतार थे।
इस पद में सूरदास जी श्रीकृष्ण के बाल रूप की सुंदरता का वर्णन करते हुए मातृ-पुत्रीय प्रेम का भी वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि श्रीयशोदा जी अपने पुत्र श्रीकृष्ण से कितनी प्रेम करती थीं। यह पद भक्ति की पराकाष्ठा को भी दर्शाता है। एक माँ अपने पुत्र के लिए कितना कुछ करती है। इसी प्रकार, भगवान् के भक्त भी उनके लिए अपना सब कुछ अर्पण करने को तैयार रहते हैं।
यशोदा अपने पुत्र कृष्ण का मुख देखकर आनंद से फूल उठती हैं। उनकी दूध-सी सफेद दांतों की झलक देखकर वह प्रेम में इतनी मग्न हो जाती हैं कि अपने तन-मन की सुध भूल जाती हैं। बाहर से नंद उन्हें बुलाते हैं, कहते हैं, "आओ, इस सुंदर और सुख देने वाले बालक को देखो। इन छोटी-छोटी दूध-सी दांतों को देखकर अपनी आंखों को सफल कर लो।" महर (यशोदा) आनंद में डूबी आती हैं और अपने दोनों नेत्रों से कृष्ण के मुख को निहारती हैं, मानो कभी तृप्त न हों। सूरदास कहते हैं, श्याम की किलकारी और दांतों की चमक देखकर ऐसा लगता है, जैसे कमल पर बिजली चमक रही हो।
प्रेम की पराकाष्ठा वह क्षण है, जब मां अपने लाल के मुख को निहारती है। यशोदा का हृदय उस समय आनंद के सागर में डूब जाता है, जब वह कृष्ण की मुस्कान और दूध-सी दांतों की झलक देखती है। यह प्रेम इतना गहरा है कि वह अपने अस्तित्व को भूल जाती है, जैसे सारी सृष्टि उस एक मुस्कान में समा जाए।
यह केवल मां का प्रेम नहीं, बल्कि हर उस आत्मा की पुकार है, जो प्रभु के दर्शन में खो जाना चाहती है। जैसे नंद अपने लाला के सौंदर्य को देखकर सबको बुलाते हैं, वैसे ही सच्चा सुख दूसरों को बांटने से बढ़ता है। कृष्ण का वह बाल-रूप, जिसमें किलकारी और दांतों की चमक है, सृष्टि का सबसे मनोहर चित्र है—जैसे कमल पर बिजली की चमक, जो क्षणिक होकर भी मन को हमेशा के लिए बांध लेती है।
यह लीला सिखाती है कि सच्चा आनंद सादगी में है, एक निश्छल मुस्कान में है। यशोदा की तरह, जब मन प्रेम में डूबता है, तो संसार की सारी चिंताएं गौण हो जाती हैं। यह प्रेम ही जीवन का सार है, जो हर पल को अमृत-सा बना देता है, और आत्मा को प्रभु के चरणों में लीन कर देता है।
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