धरणी से लेकर असमाना, नदी निर्झर पर्वत पाषाणा घट घट में राम समाना, कण कण में राम समाना।
झोपडपटी महल मकाना, मंदिर मस्जिद देवस्थाना
सब जाति मज़हब घराना, मुढ ढोर ज्ञानी गुणवाना
खग विहग पशु परवाना, सभी कब्र घाट श्मशाना
शास्त्र वेद कुराण बखाना, कोई कोई संत पहचाना
कहे रमेश वो जाने भगवाना, जिन भीतर आतम ज्ञाना
Ghat Ghat Mein Raam Samaana, Kan Kan Mein Raam Samaana.
राम का नाम और उनकी मौजूदगी सृष्टि के हर कण में बसी है, जैसे सागर की हर बूँद में जल। धरती से आकाश तक, नदी, पहाड़, पत्थर, झोपड़ी, महल, मंदिर, मस्जिद—सबमें राम समाए हैं। हर जाति, मजहब, प्राणी, और यहाँ तक कि श्मशान तक में उनकी छवि है। शास्त्र, वेद, और कुरान उनकी महिमा गाते हैं, पर सच्चा संत वही है, जो आत्म-ज्ञान से उन्हें हृदय में पहचान लेता है। रमेश की यह वाणी सिखाती है कि राम बाहर नहीं, बल्कि घट-घट में बसे हैं, और जो उन्हें भीतर देख लेता है, वही सच्चा भगवान को जानने वाला है। यह भक्ति का रस है, जो मन को हर जगह राम की उपस्थिति का बोध कराता है, और आत्मा को उनके प्रेम में लीन कर देता है।