बन जाऊं चरणकी दासी रे
बन जाऊं चरणकी दासी रे
बन जाऊं चरणकी दासी रे
बन जाऊं चरणकी दासी रे, दासी मैं भई उदासी॥टेक॥
और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥
बन जाऊं चरणकी दासी रे, दासी मैं भई उदासी॥टेक॥
और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥
मन प्रभु के चरणों की दासी बनने को आतुर है, जहां उदासी भी उनके प्रेम का रंग लिए है। हरि के सिवा कोई देवता मन को नहीं भाता, उनके बिना हृदय खाली है। गंगा, यमुना, प्रयाग, काशी—किसी तीर्थ का जल नहीं, केवल प्रभु के चरणों का अमृत ही प्यास बुझाता है। मीरां का मन गिरधर के चरणकमलों में डूबा है, जहां भक्ति की तृष्णा ही जीवन का सार है। यह प्रेम का वह समर्पण है, जो आत्मा को प्रभु के निकट ले जाता है।
अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
राम का नाम ही मन का एकमात्र सहारा है। माता, पिता, भाई, सगे-संबंधी—सब छूट गए, साधु-संगति में लोक-लाज खो गई। सत्य को देख मन दौड़ पड़ता है, संसार को देख आंसू बहते हैं। प्रेम के आंसुओं से अमर बेल बोई गई, जो मार्ग में संत और राम के मिलन से फलती है। संतों का आशीर्वाद सिर पर, राम हृदय में बसे हैं। संसार का ताना-बाना छोड़, विष का प्याला भी मस्ती में पी लिया। मीरां का मन गिरधर में रमा है, जो होनी को स्वीकार कर प्रभु के प्रेम में डूबा है। यह भक्ति का वह मार्ग है, जहां राम का नाम ही जीवन का आधार है।
अब तौ हरी नाम लौ लागी।
सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्यो बैरागीं॥
कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
गौर कृष्ण की दासी मीरां, रसना कृष्ण बसै॥
सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्यो बैरागीं॥
कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
गौर कृष्ण की दासी मीरां, रसना कृष्ण बसै॥
हरी का नाम मन से ऐसा जुड़ा कि संसार का माखनचोर अब वैरागी बन गया। मोहन ने मुरली, गोपियों को छोड़ा, मुंडन कर, कटि में डोर और माथे टोपी धरी। यशोदा ने माखन के लिए जिनके पांव बांधे, वह श्यामकिशोर अब चैतन्य बन गौर-रूप में प्रकट हुआ। पीतांबर का भाव लिए, कटि में कौपीन बांधे, वह प्रभु अब भी मन को मोहता है। मीरां उनकी दासी है, जिसकी रसना पर कृष्ण का नाम बसा है। यह भक्ति का वह रस है, जहां प्रभु का नाम और प्रेम ही आत्मा का आलंबन है।
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इस संसार से सभी वैभव छोड़कर मीरा ने श्री कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। राजसी ठाठ बाठ छोड़कर मीरा कृष्ण भक्ति और वैराग्य में अपना वक़्त बिताती हैं। भक्ति की ये अनूठी मिशाल है। मीरा के पदों में आध्यात्मिक अनुभूति है और इनमे दिए गए सन्देश अमूल्य हैं। मीरा के साहित्य में राजस्थानी भाषा का पुट है और इन्हे ज्यादातर ब्रिज भाषा में रचा गया है।
मीरा का जन्म : मीरा बाई सौलहवी सताब्दी की कृष्ण भक्त कवियत्री थी। मीरा बाई का जन्म रतन सिंह के घर हुआ था। बाल्य काल में ही मीरा की माता का देहांत हो गया था और उन्हें राव दूदा ने ही पाला था। इनकी माता का नाम विरह कुमारी था। इनका विवाह राजा भोजराज के साथ हुआ था, जो उदयपुर के कुंवर थे और महाराणा सांगा के पुत्र थे। मीरा के जन्म की जानकारी विस्तार से मीरा चरित से प्राप्त होती है। बाल्य काल से ही मीरा कृष्ण की भक्ति में रमी थी, अक्सर कृष्ण की मूर्ति के आगे नाचती थी और भजन भाव में अपना ध्यान लगाती थी। श्री कृष्ण को वे अपना पति मानती थी। पति के परलोक जाने के बाद मीरा अपना सारा समय कृष्ण भक्ति में लगाती थी। पति के देहांत हो जाने के बाद उन्हें सती करने का प्रयास किया किसी तरह मीरा बाई इस से बच पायी।